नई दिल्ली (New Delhi)। भारत (India) ने वर्ष 1993 से 2021 के बीच बचपन में ब्याही (childhood marriage girls) जा रही लड़कियों की संख्या में 50 लाख की कमी (50 lakh reduction) की है। इसी अवधि में अकेले यूपी ने 16.7 लाख लड़कियों के बाल विवाह (UP forced child marriage of 16.7 lakh girls) घटाए, जो कुल गिरावट का करीब एक-तिहाई (about one-third of the total decline) है। हालांकि इसी अवधि में 7 राज्यों में यह संख्या बढ़ भी गई, वरना गिरावट का प्रदर्शन और बेहतर होता।
लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में एक ताजा अध्ययन ने 1993 से 2021 तक 5 बार हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर यह दावे किए हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय और भारत सरकार से जुड़े अध्ययनकर्ता भी इस विश्लेषण में शामिल थे। रिपोर्ट के अनुसार 1993 में 49.4 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह हो रहा था, 2021 में यह 22.3 प्रतिशत रह गया है।
उत्तर प्रदेश में आई कमी, बंगाल में अब भी परेशानी
इसी तरह 2006 में 7.1 प्रतिशत लड़कों का बाल विवाह हो रहा था, जो 2021 में 2.2 प्रतिशत रह गया है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकारों के प्रयास बाल विवाह घटाने में सबसे अहम हैं। उत्तर प्रदेश का उदाहरण देकर कहा कि यहां राज्य सरकार नाटकीय ढंग से बड़े स्तर पर कमी लाई है। वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल जैसे राज्य संघर्ष कर रहे हैं। इस मामले में सरकार की कैश ट्रांसफर योजनाएं भी अच्छे परिणाम नहीं दे रही हैं। विश्लेषण में 2021 में 20 से 24 साल आयु वर्ग में आने वाले 1.34 करोड़ महिलाओं और 14.54 लाख पुरुषों के आंकड़े शामिल किए गए, जिनके बाल विवाह हुए थे। यह भी सामने आया कि हर 5 में से 1 लड़की और 6 में से एक लड़के का बाल विवाह हुआ था।
इसी वजह से गिरावट में ठहराव
रिपोर्ट के अनुसार देश से एक बड़ी सामाजिक बुराई बाल विवाह को खत्म करने की रफ्तार में ठहराव आ गया है। बताया, 1993 से 1999 के बीच 6 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में लड़कियों के बाल विवाह बढ़े थे। 1999 से 2006 के बीच 15 में ऐसा हुआ। वहीं 2016 से 2021 के बीच 6 में यह संख्या बढ़ी।
बाल विवाहों में हिस्सेदारी
रिपोर्ट का अनुमान है कि बाल विवाह कर गई लड़कियों में 2021 में बिहार की हिस्सेदारी 16.7 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल की 15.2, उत्तर प्रदेश की 12.5 और महाराष्ट्र की 8.2 प्रतिशत थी। देश की कुल संख्या में 50 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं 4 राज्यों का है। लड़कों के मामले में गुजरात का हिस्सा 29 प्रतिशत, बिहार का 16.5, पश्चिम बंगाल का 12.9 और उत्तर प्रदेश का 8.2 प्रतिशत है। यानी बचपन में ब्याह दिए गए लड़कों में इन्हीं 4 राज्यों का 60 प्रतिशत हिस्सा है।
लड़कों के बाल विवाह गुजरात में सबसे ज्यादा बढ़े
लड़कों में बाल विवाह 2006 से 2016 के बीच 3 राज्यों में तो 2016 से 2021 के बीच 8 राज्यों में बढ़े। साल 1993 के मुकाबले 2021 तक अकेले गुजरात में लड़कों के बाल विवाह 121.9 प्रतिशत बढ़े।
यहां बाल विवाह कर दिए गए लड़कों की 2021 में संख्या 2.31 लाख थी। इसी तरह साल 2016 से 2021 के दौरान बाल विवाह किए गए लड़कों की संख्या हरियाणा, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में बढ़ गई।
समस्याएं कई
यूनिसेफ के अनुसार बाल विवाह मानवाधिकार उल्लंघन है।
इसकी वजह से बच्चों का पूर्ण विकास अवरुद्ध हो जाता है।
लड़कियों को लैंगिक असमानता भी सहनी पड़ती है।
सतत विकास लक्ष्यों में से लक्ष्य 5.3 में 2030 तक बाल विवाह खत्म करने की बात कही गई है, इसमें भारत का योगदान सबसे बड़ा हो सकता है।
दुनिया में यूएन के अनुसार बाल विवाह घटे, लेकिन कोविड की वजह से गिरावट की रफ्तार में कमी आई।
2020 के बाद विश्व में अगले 10 साल में 1 करोड़ लड़कियों के बाल विवाह हो सकते हैं।
बंगाल में 32.3 व झारखंड में 53.1 फीसदी वृद्धि
रिपोर्ट का दावा है कि 1993 से 2021 के बीच पश्चिम बंगाल में बाल विवाह की गई लड़कियों की संख्या 5 लाख बढ़ी। यहां 18 साल में 32.3 प्रतिशत वृद्धि हुई। झारखंड में सबसे ज्यादा 53.1 प्रतिशत वृद्धि हुई, यहां 1.86 लाख ज्यादा लड़कियों के बाल विवाह हुए। असम और बिहार में भी लड़कियों के करीब 50 हजार ज्यादा बाल विवाह होने की बात कही गई। वहीं हाल में यानी, साल 2016 से 2021 के दौरान बाल विवाह कर दी गई लड़कियों की संख्या पश्चिम बंगाल के साथ-साथ पंजाब, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा और दमन व दीव और दादरा व नगर हवेली में भी बढ़ी है।
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