नई दिल्ली: भारत हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी के बीच लंबी दूरी के मिसाइल डेवलपमेंट के काम को तेज गति से कर रहा है. इससे भारतीय नौसेना को अधिक दूरी तक मार करने की क्षमता मिलेगी. भारत के इस कदम की एक वजह देश की नौसेना को ताकतवर बनाना है लेकिन उससे भी बड़ी वजह चीन की हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती दखलंदाजी है.
चीनी अनुसंधान सर्वेक्षण जहाज शि यान 6 ने श्रीलंका के तट पर अपना सर्वेक्षण पूरा किया है और वह 2 दिसंबर को सिंगापुर पहुंचा है. इसके बाद बीजिंग (चीन) ने कोलंबो और माले से एक और जहाज को अपने बंदरगाहों पर डॉक करने और गहरे पानी की खोज करने की इजाजत मांगी है. ऐसा लगता है कि चीन 5 जनवरी से मई 2024 के अंत तक दक्षिण हिंद महासागर में रिसर्च के बहाने भारत की जासूसी करना चाहता है.
चीन की चाल को भांपते हुए भारत ने श्रीलंका और मालदीव दोनों के सामने आपत्ति जताई है और उनसे चीनी जहाज को भविष्य के सैन्य अभियानों के लिए हिंद महासागर में रिसर्च की अनुमति नहीं देने को कहा है. चीन का जहाज जियांग यांग होंग 3 फिलहाल दक्षिण चीन सागर में ज़ियामेन के तट से दूर है और इजाजत मिलने के बाद मलक्का के रास्ते इन देशों की यात्रा करेगा.
हिंद महासागर में चीनी नौसेना की बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है. इस कारण भारत ने भी अपनी रक्षा के लिए तैयारियों को तेज कर दिया है. लिहाजा भारतीय नौसेना तेजी से लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. उसको कुछ इस तरह समझा जा सकता है:-
अगर भारतीय नौसेना को ये हथियार मिल जाते हैं तो हिंद महासागर में उसकी रेंज काफी ज्यादा बढ़ जाएगी.
चीनी रिसर्च जहाज शि यान 6 श्रीलंका के तट पर अपना सर्वेक्षण पूरा करने के बाद 2 दिसंबर को सिंगापुर पहुंचा था. लेकिन उसके बाद फिर से चीन ने कोलंबो और माले से एक और अनुसंधान सर्वेक्षण जहाज को अपने बंदरगाहों पर डॉक करने और गहराई से संचालन करने की अनुमति मांगी है. 5 जनवरी से मई 2024 के अंत तक दक्षिण हिंद महासागर में जल की खोज उसका मकसद है.
भारत पहले ही श्रीलंका और मालदीव दोनों के सामने आपत्ति जता चुका है और उनसे चीनी जहाज को भविष्य के सैन्य अभियानों के लिए हिंद महासागर में रिसर्च की अनुमति नहीं देने को कहा है. श्रीलंका और अब मालदीव में चीन समर्थक सरकार द्वारा चीनी बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकर्स और अनुसंधान निगरानी जहाजों को अनुमति दिए जाने पर भारतीय चिंताएं इस बात को लेकर हैं कि बीजिंग समुद्री रिसर्च के नाम पर भारत की जासूसी करने के लिए इन जहाजों का उपयोग न करने लगे.
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