बस्तियों के वार्डों में कम वोट मिलते थे, इस बार फोकस वहीं
इंदौर। इस बार पांच नंबर विधानसभा में कांटे का मुकाबला था, लेकिन जिस तरह से बस्तियों में भाजपा ने अपनी रणनीति तैयार की, उससे उसे फायदा मिला। श्रमिक क्षेत्र की ऐसी कुछ बस्तियां थीं, जिन पर कांग्रेस अपनी लीड मानकर चल रही थी, लेकिन यहां से उसे कम वोट मिले। इनमें से कुछ वार्ड निगम में भाजपा हार चुकी थी।
पिछली बार विधानसभा चुनाव में करीब 1300 वोटों से ही महेन्द्र हार्डिया ने जीत हासिल की थी, लेकिन इसे इस बार इसे दस गुना कर दिया गया। सालभर पहले ही नगर निगम चुनाव हुए थे और इन वार्डों में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। इन वार्डों में कांग्रेस के पार्षद हैं, लेकिन यहां इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा को फायदा मिला है। दरअसल चुनाव हारने के बाद ही इन बस्तियों में रहने वाले लोगों से भाजपाइयों ने सतत संपर्क बनाए रखा और जब लाडली बहना योजना तथा तीर्थदर्शन योजना की बारी आई तो यहीं से कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में फार्म भरवाए थे। इस बार 45, 46 और 47 नंबर वार्ड की जवाबदारी एमआईसी सदस्य नंदकिशोर पहाडिय़ा और उनकी टीम को दी थी। चूंकि 47 नंबर वार्ड तो भाजपा के पास है, लेकिन श्रमिक बस्ती के 45 और 46 में चुनौती थी और इसी को लेकर वहां दिन-रात लोगों से संपर्क किया गया। 46 नंबर वार्ड हर विधानसभा चुनाव में भाजपा हारती रही है, लेकिन इस बार यह वार्ड 1691 वोटों से जीते। 47 नंबर वार्ड में ही रहने वाले कांग्रेस के एक कद्दावर नेता भी इस बार घर से निकलकर खुलेआम मैदान में थे, लेकिन यहां भी कांग्रेस को शिकस्त मिली। इसके साथ ही 45 नंबर वार्ड से भी 1519 वोटों से भाजपा ने अपनी लीड बनाई। इन बस्तियों से मिली लीड का फायदा यह हुआ कि हार्डिया को जिन मुस्लिम इलाकों से वोट नहीं मिले, उनकी क्षतिपूर्ति होती गई।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved