– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
इंडी एलायंस का मंसूबा विफल हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कमजोर समझने की उनकी गलतफहमी दूर हुई। राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के हाथ से निकल गए। मध्य प्रदेश में कांग्रेस पहले से ज्यादा कमजोर हो गई। जातिगत जनगणना का राग निष्प्रभावी साबित हुआ। विपक्ष ने इसे ट्रम्प कार्ड के रूप में प्रयुक्त किया था। इसके साथ ही लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष के पास अब कोई कारगर मुद्दा नहीं बचा है। इंडी एलायंस सेमी फाइनल में ही निरर्थक हो गया। विपक्षी गठबंधन ने बहुत उम्मीद के साथ अपना नाम बदला था। वस्तुतः यूपीए की बदनामी के चलते उन्हें ऐसा करना पड़ा। गहन विचार-विमर्श के बाद उन्होंने ऐसा नाम धरा जिसे शॉर्ट फॉर्म में इंडिया कहा जा सकता था। इसके बाद तो गठबंधन के नेता इंडिया शब्द का ऐसे प्रयोग करने लगे जैसे वह पूरे देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उस समय भी अनेक लोगों ने इंडिया शब्द के चुनावी राजनीति की दृष्टि से प्रयोग को अनुचित बताया था। कुछ ही महीने में विपक्षी गठबंधन की वास्तविकता सामने आ गई। इन्होंने इंडिया शब्द का अनुचित प्रयोग किया था। इनका बिखराव तो पांच राज्यों के चुनाव से पहले ही शुरू हो गया था। अब इनको जनता ने भी आईना दिया है।
जातिवाद और परिवारवाद को जनता ने नकार दिया है। जोड़-तोड़ कर इन्होंने अपना नामकरण किया था– इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस। जबकि जनमानस का सभ्यतागत संघर्ष भारत और इंडिया के आसपास केंद्रित है। अंग्रेजों ने हमारे देश का नाम इंडिया रखा। इस नामकरण के चलते विपक्षी दलों की जवाबदेही बढ़ गई थी। अब उन्हें यह बताना चाहिए था कि डेवलपमेंट के मुद्दे पर उनकी कितनी विश्वसनीयता है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन संप्रग को दस वर्ष सरकार चलाने का अवसर मिला। पश्चिम बंगाल में डेढ़ दशक से तृणमूल की सरकार है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को भी अवसर मिला है। बताया गया कि गठबंधन बैठक में शामिल हुए दलों की 11 प्रदेशों में सरकारें हैं। लेकिन बिडंबना यह कि किसी ने भी अपनी सरकार के विकास कार्यों पर एक शब्द भी नहीं कहा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी गठबंधन को घमंडिया नाम दिया था। उन्होंने कहा था कि अगर सपनों को पूरा करना है, संकल्पों को सिद्ध करना है, तो भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण के खिलाफ पूरे सामर्थ्य के साथ लड़ना होगा। पहली बुराई भ्रष्टाचार है जो हमारे देश की सभी समस्याओं की जड़ में है। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए हर क्षेत्र और हर सेक्टर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई समय की मांग है। दूसरी बुराई वंशवादी राजनीति है। वंशवादी व्यवस्था ने देश को जकड़ लिया था और देश के लोगों के अधिकार छीन लिए थे। तीसरी बुराई तुष्टिकरण है। तुष्टिकरण ने देश की मूल सोच,समरस राष्ट्रीय चरित्र पर भी दाग लगाया है। इन लोगों ने सब कुछ नष्ट कर दिया और इसलिए इन तीन बुराइयों के विरुद्ध अपनी पूरी शक्ति से लड़ना होगा। भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण- ये चुनौतियां पनपीं जिन्होंने हमारे देश के लोगों की आकांक्षाओं को दबा दिया। दूसरी तरफ विपक्षी नेताओं ने जातिगत जनगणना को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। इसके अलावा वह लोकतंत्र और संविधान पर हमले के आरोप लगा रहे थे।
उनका कहना था कि भारत की संस्थाओं पर हमला हो रहा है। हमारी लड़ाई भाजपा की विचारधारा के खिलाफ है। ये लड़ाई इंडिया बनाम बीजेपी है। ये इंडिया बनाम पीएम मोदी की लड़ाई है। विपक्षी नेता कथित रूप से देश को बचाने के लिए बेकरार थे। कह रहे थे कि एक तरफ देश को नफरत से बचाना है और दूसरी तरफ एक नए इंडिया का सपना लेकर हम सब इकट्ठा हुए हैं। मोदी सरकार की बेमिसाल उपलब्धियों के सामने विपक्षी दलीलें निरर्थक साबित हुई। जबकि दो वर्ष कोरोना आपदा में बीते। उसके बाद अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गई थी। मगर भारत की अर्थव्यवस्था अब भी विकास की राह पर है। बीस लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर भारत पैकेज के सहारे भारत की विकास यात्रा को नई गति मिली है तथा देश आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ा है। आजादी के बाद सात दशकों में देश के केवल साढ़े तीन करोड़ ग्रामीण घरों में ही पानी के कनेक्शन थे। लेकिन मोदी के शासन में साढ़े चार करोड़ घरों को साफ पानी कनेक्शन दिए गए हैं। दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान लागू की गई। इसके दायरे में पचास करोड़ लोग हैं।
साढ़े नौ साल में भारत ने डिजिटल लेनदेन में दुनिया को नई दिशा दिखाने का काम किया है। रिकॉर्ड सैटेलाइट प्रक्षेपित किए जा रहे हैं। रिकॉर्ड सड़कें बनाई जा हैं। दशकों से लंबित अनेक योजनाएं पूरी की गई हैं। अनेक पुराने विवाद भी पूरी शांति और सौहार्द से सुलझाए गए हैं। पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक शांति और विकास का एक नया भरोसा जगा है। कोरोनाकाल में अस्सी करोड़ लोगों को निशुल्क राशन की व्यवस्था की गई। जन औषधि दवा केन्द्र की संख्या अस्सी से बढ़कर पांच हजार हो गई। करीब सवा सौ नये मेडिकल कालेज खुले हैं। यूपीए के दस वर्ष में भारतीय रेल ने मात्र चार सौ तेरह रेल रोड ब्रिज और अंडर ब्रिज का निर्माण किया। मोदी सरकार ने इससे तीन गुना अधिक निर्माण किया। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के पन्द्रह करोड़ से ज्यादा लाभार्थी हैं। यह दुनिया की सबसे सस्ती योजना है।
बिजली उत्पादन में चालीस प्रतिशत वृद्धि हुई। सोलर ऊर्जा में आठ गुना वृद्धि हुई। फसल बीमा योजना का लाभ पहले पचास प्रतिशत नुकसान पर मिलता था। अब किसान को 33 प्रतिशत पर भी मिल जाता है। सरकार ने यूरिया को नीम कोटेड किया जिससे इसकी कालाबाजारी खत्म हुई। देश मे अब यूरिया की कोई कमी नहीं होती। पिछली सरकारों के समय 52 सैटेलाइट लॉन्च किए गए थे। मोदी सरकार अब तक देशी-विदेशी करीब तीन सौ सैटेलाइट लॉन्च कर चुकी है। यूपीए के समय ग्रामीण सड़क से जुड़ी बस्तियां पचपन प्रतिशत थीं। अब करीब 95 प्रतिशत हैं। मोदी सरकार ने चालीस करोड़ लोगों के जनधन खाते खुलवाए। पहले ये लोग बैंकिंग सेवा से वंचित थे। आयुष्मान, उज्ज्वला और निर्धन आवास योजनाएं संचालित की गई। देश खुले में शौच से मुक्त हो गया। राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि सरकारी योजनाओं के एक रुपये में से केवल पन्द्रह पैसा ही गरीबों तक पहुंचता है। लेकिन वे बस कहकर ही रह गए, समाधान की दिशा में कुछ नहीं किया। समाधान प्रधानमंत्री मोदी ने किया। आज सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ सीधे लोगों के खातों में पहुंच रहा है। इस तरह के अनेक बदलाव की कहानी मोदी के नौ साल के कार्यकाल में लिखी गई है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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