नई दिल्ली (New Delhi)। मध्यप्रदेश (MP election results) की सत्ता पर एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) काबिज होते दिख रही है। प्रदेश से शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) कr विदाई का रास्ता देख रहे विरोधियों को भी करारा जवाब मिला है। चौहान एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी (Return to power with overwhelming majority) कर रहे हैं। चुनाव में भले ही केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज को चेहरा न बनाया हो, बावजूद इसके शिवराज ही केंद्र में नजर आए। 230 विधानसभा सीटों में से 160 सीटों पर उन्होंने ताबड़तोड़ रैलियां और सभाएं कीं। शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहन योजना (Ladli Behna scheme.) चुनाव में गेम चेंजर साबित हुई। इस बंपर जीत के पीछे महिला वोटरों की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है। आइये जानते है किस तरह से चार बार मुख्यमंत्री रहे चुके शिवराज ने सत्ता विरोधी लहर को दूर किया और एमपी का मैदान अपने नाम कर लिया।
महिलाओं में शिवराज ही लोकप्रिय
शिवराज की वापसी में सबसे अहम रोल लाड़ली बहन योजना ने निभाया। इस योजना ने चौहान की राजनीतिक किस्मत बदल कर रख दी है। लाड़ली बहना योजना के तहत मध्यप्रदेश की 1.31 करोड़ महिलाओं को 1250 रुपये हर महीने दिये जा रहे हैं। एमपी की 7 करोड़ आबादी में लाड़ली बहना योजना की लाभार्थियों ने शिवराज को भर भर कर वोट दिया है। महिलाओं और लड़कियों के लिए शिवराज का नाम एक भरोसा था, इस पर उन्होंने यकीन किया। इस चुनाव में शिवराज ने न सिर्फ अपने इस स्कीम को प्रचारित किया बल्कि अपने पुराने रिकॉर्ड का भी हवाला दिया और अपने 18 साल के शासन की दुहाई दी। मध्यप्रदेश में भाजपा ने सीएम चेहरा किसी को घोषित नहीं किया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान चुनाव को लीड कर रहे थे। शिवराज बनाम कमलनाथ के बीच यह जंग मानी जा रही थी। ऐसे में शिवराज की लोकप्रियता कमलनाथ पर भारी पड़ी है। एग्जिट पोल सर्वे में भी शिवराज पहली पसंद बनकर उभरे हैं। इसी का भाजपा को चुनाव में फायदा मिल। महिलाओं के बीच शिवराज की अपनी एक लोकप्रियता है, जबकि कमलनाथ की उस तरह से पकड़ नहीं है।
मामा का इमोशनल कार्ड
इस चुनाव में भाजपा ने मध्यप्रदेश में शिवराज को बतौर सीएम उम्मीदवार नहीं उतारा। चुनाव प्रचार के दौरान इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि अगर एमपी में भाजपा जीतती भी है, तो शिवराज सीएम नहीं बनेंगे। इससे ये संदेश गया कि शिवराज की स्थिति कमजोर है। लेकिन इस मुद्दे पर शिवराज इमोशनल कार्ड खेल गए। शिवराज ने प्रचार के दौरान साफ साफ मतदाताओं-महिलाओं से पूछा कि क्या आप नहीं चाहते हैं कि आपका मामा, आपका भाई मुख्यमंत्री बने? शिवराज के इस सवाल पर वोटर्स ने भारी शोर के साथ उनके पक्ष में जवाब दिया। अब तो आंकड़े ये भी बता रहे हैं कि न सिर्फ मतदाताओं ने जवाब दिया, बल्कि शिवराज को भारी वोट दिया।
शिवराज खुद बने ब्रांड
मध्यप्रदेश में 16 साल तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज वोटर के सामने खुद भी ब्रांड बन गए। इस दौरान उन्होंने एमपी को बीमारू राज्यों की कैटेगरी से बाहर निकला है। कई शहरों का कायाकल्प किया। लोगों ने काम करने के इस तरीके को पसंद किया, उन्हें ब्रांड शिवराज पर भरोसा नजर आया, इसलिए लोगों ने शिवराज को वोट दिया। यहां भाजपा का डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर का सिद्धांत शिवराज के काम आया। जब योजनाओं का फायदा सीधे जनता के हाथ में पहुंचता है, तो सरकार और सिस्टम पर उनका यकीन बढ़ जाता है। यही वजह रही कि जनता उन्हें 5 बार वोट दे रही है।
हिंदुत्व ब्रांड और बुलडोजर फैक्टर
मध्यप्रदेश में संघ और हिंदुत्व की जड़ें काफी गहरी हैं। यही वजह है कि कथित सेकुलर कांग्रेस को भी एमपी में सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे चलना पड़ा। लेकिन मतदाताओं को जब चुनने की जरूरत हुई, तो उन्होंने भाजपा के ब्रांड वाले हिंदुत्व को चुना। शिवराज से लेकर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ सहित भाजपा के तमाम दिग्गज नेताओं ने हिंदुत्व का एजेंडा सेट किया। यही वजह थी कि भाजपा ने इस बार एमपी में एक भी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया। सीएम योगी और अमित शाह अपनी हर एक रैली में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का जिक्र करते हुए नजर आए। इसके अलावा अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने का न्योता भी लोगों को दिया। भाजपा के लिए सियासी मुफीद साबित हुआ है। इसके अलावा शिवराज ने राज्य के चार मंदिरों- सलकनपुर में देवीलोक, ओरछा में रामलोक, सागर में रविदास स्मार्क और चित्रकूट में दिव्य वनवासी लोक के विस्तार और स्थापना के लिए 358 करोड़ रुपये का बजट दिया है। शिवराज ने उत्तर प्रदेश की तरह अपने यहां भी बुलडोजर ब्रांड की राजनीति का जमकर इस्तेमाल किया।
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