नई दिल्ली (New Delhi) । रक्षा उपकरणों (defense equipment) का देश में निर्माण सिर्फ गौरव, आत्मनिर्भरता या रोजगार सृजन तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे सरकार को भारी बचत भी होती है। एकदम से यकीन नहीं होता, लेकिन महज 351 किस्म के नट-बोल्ट जैसे छोटे-छोटे उपकरणों के देश में ही निर्माण से रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) को पिछले एक साल के दौरान करीब तीन हजार करोड़ रुपए की बचत हुई है। यह राशि दो राफेल विमानों, 4 प्रीडेटार एमक्यू9बी ड्रोन या 200 बोफोर्स टैंकों की कीमत के बराबर है।
नट बोल्ट के लिए विदेशों पर ही निर्भरता थी
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ सालों के दौरान बड़े रक्षा उपकरण तो देश में बनने शुरू हो गए, लेकिन उनमें इस्तेमाल होने वाले छोटे-छोटे कल पुर्जों एवं नट बोल्ट के लिए विदेशों पर ही निर्भरता थी। ये बहुत छोटे उपकरण थे जिनका निर्माण देश में संभव था। इसके लिए सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई। कंपनियों ने खुद पहल इसलिए नहीं की क्योंकि सरकार के अलावा इनका बाजार में कोई खरीदार नहीं था।
रक्षा मंत्रालय ने 2021 में 2500 उपकरणों की एक सूची तैयार की, जिनका रक्षा उपकरणों के निर्माण एवं रखरखाव में काफी इस्तेमाल होता है, लेकिन वह विदेशों से आयात हो रहे थे। सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों, निजी कंपनियों को इन्हें बनाने के लिए प्रेरित किया तथा यह निर्णय लिया कि इनकी खरीद देश में ही की जाएगी। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि 2022 में इनमें से 351 उपकरणों का निर्माण देश में ही होने लगा। सृजन पोर्टल पर बाकायदा इनका ब्योरा है।
ढाई हजार उपकरण बनने लगे तो बचत कई गुना बढ़ेगी
अभी महज 351 उपकरणों के बनने से इतना लाभ हुआ है जब सभी 2500 उपकरण बनने लगेंगे तो यह बचत कई गुना और बढ़ जाएगी। भविष्य में और भी कई कल पुर्जों का निर्माण देश में ही करने की योजना है। इससे धन की बचत के अलावा आयात में लगने वाले समय की भी बचत होती है।
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