काठमांडू: पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) में एक बार फिर अशांति का माहौल (atmosphere of unrest) है और उसके लिए चीन की दखलअंदाजी को जिम्मेदार माना जा रहा है, जिसने पहले भी किसी सरकार को हिमालयी देश (Himalayan country) में स्थिर होने की इजाजत नहीं दी है और लगातार अड़चनें पैदा की हैं. भारतीय खुफिया संस्थानों के शीर्ष अधिकारियों (Top officials of Indian intelligence agencies) ने यह जानकारी दी. इस सप्ताह की शुरुआत में, नेपाल में दंगा-रोधी पुलिस ने नेपाल के पूर्व राजा के हजारों समर्थकों (thousands of supporters of the former king) को रोकने के लिए लाठियों और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, जिन्होंने राजशाही की बहाली और देश की हिंदू राज्य की पूर्व स्थिति की मांग के लिए राजधानी के केंद्र तक मार्च करने का प्रयास किया था.
प्रदर्शनकारी, राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के समर्थन में नारे लगाते हुए, काठमांडू में एकत्र हुए और शहर के केंद्र की ओर बढ़ने का प्रयास किया. हालांकि, दंगा-रोधी पुलिस ने उन्हें रोक दिया और बांस के डंडों से पीटने के साथ ही आंसू गैस और पानी की बौछार की, जिसमें दोनों पक्षों को मामूली चोटें आईं. एक भारतीय खुफिया अधिकारी ने कहा, “यह अशांति नेपाल में लगातार चीनी हस्तक्षेप के कारण है. उन्होंने एक भी सरकार को टिकने नहीं दिया. नेपाल के लोग बेचैन हैं क्योंकि यह चारों तरफ से दूसरे देशों की जमीन से घिरा देश है और बाकी दुनिया पर निर्भर है.”
अधिकारी ने आगे कहा, “लेकिन राजनीतिक दलों और राजनेताओं के भ्रष्ट आचरण के कारण, स्थानीय लोग और जनता पीड़ित हैं. अब वे चीन जाने को मजबूर हैं जो उनकी संस्कृति नहीं है. हवाई अड्डे और राजमार्ग चीन को बेच दिए गए हैं. स्थानीय जनता चाहती है कि नेपाल एक आदेश और नियंत्रण यानी उनके राजा के अधीन चले. वे एक हिंदू राज्य चाहते हैं, न कि ऐसा राज्य जो उपनिवेश के रूप में चीन के निकट हो.”
2008 में समाप्त की गई राजशाही की वापसी की मांग करने के लिए गुरुवार को पूर्व राजा के समर्थक देश भर से काठमांडू आए. उन्होंने सरकार और राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार और विफल शासन का आरोप लगाया. 2006 में कई हफ्तों तक सड़क पर विरोध प्रदर्शन के कारण तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र को अपना सत्तावादी शासन छोड़ने और लोकतंत्र लागू करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. दो साल बाद, एक नवनिर्वाचित संसद ने राजशाही को खत्म करने के लिए मतदान किया और नेपाल को राष्ट्रपति के साथ राज्य प्रमुख के रूप में एक गणतंत्र घोषित किया.
तब से, ज्ञानेंद्र बिना किसी शक्ति या राज्य संरक्षण के एक निजी नागरिक के रूप में रह रहे हैं. उन्हें अभी भी लोगों के बीच कुछ समर्थन हासिल है, लेकिन सत्ता में वापसी की संभावना कम है. प्रदर्शनकारियों ने यह भी मांग की कि नेपाल को वापस हिंदू राज्य बनाया जाए. हिमालयी राष्ट्र को 2007 में एक अंतरिम संविधान द्वारा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था.
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