नई दिल्ली: चीन और सऊदी अरब के बीच एक अहम समझौता हुआ है. जिसका असर आने वाले समय में अमेरिका पर पड़ सकता है. दरअसल, दोनों देशों के बीच लगभग 7 अरब डॉलर का मुद्रा विनिमय (करेंसी स्वैप) समझौता हुआ है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और सहज बनाने के लिए, सऊदी सेंट्रल बैंक और पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने तीन साल के मुद्रा विनिमय समझौते पर सहमति जताई है.
दोनों बैंकों ने आने वाले तीन सालों में अधिकतम 50 अरब युआन तक का व्यापार करेंसी स्वैप एग्रीमेंट के तहत करने का फ़ैसला किया है. सऊदी सेंट्रल बैंक के मुताबिक़, करेंसी स्वैप समझौते से दोनों देशों के बीच वित्तीय सहयोग मज़बूत होगा. साथ ही स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा. छोटा दिख रहा यह सौदा प्रतीकात्मक रूप से बड़ा हो सकता है क्योंकि सऊदी अरब दुनिया का शीर्ष तेल निर्यातक है और अधिकांश वैश्विक तेल व्यापार डॉलर में किये जाते हैं.
अमेरिकी डॉलर पर पड़ेगा असर
दरअसल, करेंसी यानी मुद्रा स्वैप का मतलब है, मुद्रा विनिमय. यानी दोनों देश अपनी मुद्रा में भी कारोबार करेंगे. जिससे निश्चित तौर पर अतंरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर का प्रभाव कम होगा. गौरतलब है कि वैश्विक व्यापार में कई देश दशकों से अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही चीन डॉलर के प्रभाव को कम करने और अपनी करेंसी युआन को अंतर्राष्ट्रीयकरण स्तर पर बढ़ावा देने हेतु लगा हुआ है.
चीन बढ़ा रहा है युआन का प्रभाव
बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले महीने, आरबीसी ने बताया कि चीन के अलावा अन्य देशों के साथ रूस का 25% व्यापार रॅन्मिन्बी के साथ तय हुआ था. सितंबर में जेपी मॉर्गन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अधिक से अधिक तेल व्यापार डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं के साथ हो रहा है. द हिंदू बिज़नेसलाइन के मुताबिक़, साल 2020 तक 41 देशों के साथ चीन का करेंसी स्वैप अग्रीमेंट था. इसमें मध्य-पूर्व के देश भी शामिल हैं.
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