नई दिल्ली (New Delhi)। आज विश्व पटल (world stage) पर भारत (India) एक सशक्त परमाणु संपन्न देश (powerful nuclear country ) के तौर पर मजबूती से खड़ा है, लेकिन इसकी नींव पड़ी थी देश की आयरन लेडी (Iron Lady) कही जाने वाली पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (First woman Prime Minister Indira Gandhi) के जमाने में. 19 नवंबर की तारीख है और इसी दिन 1917 को इंदिरा गांधी का जन्म हुआ था।
उनके पिता देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (country’s first Prime Minister Jawaharlal Nehru) थे. दादा मोतीलाल नेहरू ने इंदिरा नाम दिया था और देश के लिए किए गए उनके साहसिक फैसलों की वजह से दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें “दुर्गा” कहकर संबोधित किया था।
वह इंदिरा गांधी ही थी जिन्होंने पूरे एशिया का भूगोल बदल दिया, पाकिस्तान के दो टुकड़े किए, भारत को परमाणु संपन्न देश बनाया और ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत खालिस्तान की कमर तोड़ दी थी. हालांकि 31 अक्टूबर 1984 को उनके सिख बॉडीगार्ड्स ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. उनके साहसिक फैसलों की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें दुर्गा कह कर संबोधित किया था. आज उनकी जयंती पर हम आपको बताएंगे इंदिरा गांधी के लिए उन सभी साहसिक फैसलों के बारे में जिन्होंने देश को नई दिशा दी।
11 दिनों में पाकिस्तान के किए दो टुकड़े
देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने पाकिस्तान को ऐसा जख्म दिया जो कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. मोरारजी देसाई ने उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहा था लेकिन अपने साहसिक फैसलों की वजह से वह ‘आयरन लेडी’ बन कर उभरीं।
देश की आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान नाम से दो मुल्क भारत के अलावा बने थे. हालांकि पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना बांग्ला भाषी लोगों पर अत्याचार कर रही थी, जिसके बाद भाषा के आधार पर 70 के दशक में पाकिस्तान के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में विरोध की आग जल रही थी. वर्ष 1971 में मौके की नजाकत को देख इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान का समर्थन किया और इंडियन आर्मी को पाकिस्तान में घुसकर बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ रही मुक्ति वाहिनी का साथ देने का आदेश दे दिया था।
इंदिरा के आदेश पर 5 दिसंबर को भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सैनिकों पर टूट पड़ी और महज 11 दिनों में 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों को सरेंडर करने पर मजबूर किया. पाक सेना के घुटने टेकने के बाद इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराकर बांग्लादेश के रूप में स्थापित करवा दिया. खास बात यह है कि इस सैन्य अभियान में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया था।
पोखरण परमाणु परीक्षण
इंदिरा गांधी के जमाने में ही भारत परमाणु संपन्न देश बना था. वर्ष 1974 में भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाने के लिए इंदिरा गांधी ने पोखरण में देश का पहला परमाणु परीक्षण करने की अनुमति दी दूसरी सफलता से पूरे विश्व में तहलका मच गया था. इसके बाद भारत की धाक पूरी दुनिया में बढ़ गई. यह इंदिरा गांधी की ही वजह से हुआ कि परमाणु परीक्षण के बाद भारत की ओर किसी ने आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं की।
बैंकों का नेशनलाइजेशन
पाकिस्तान के दो टुकड़े करने जैसे साहसिक फैसलों के बाद दुनिया भर में भारत की चर्चा तेज हो गई थी. तब इंदिरा गांधी ने देश की आर्थिक मजबूती के लिए कदम उठाया और सभी बैंकों का राष्ट्रीकरण करके अर्थव्यवस्था को मजबूती दी. वह तारीख 19 जुलाई 1969 की है, जब इंदिरा गांधी ने देश भर की 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके तहलका मचा दिया था. इन बैंकों पर बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों का कब्जा था. दूसरी बार 1980 में सात अन्य बैंकों का भी राष्ट्रीयकरण किया।
खालिस्तान की कमर तोड़ी
पाकिस्तान के दो टुकड़े होने के बाद वर्ष 1980 में पंजाब में पृथक खालिस्तान के नाम पर उग्रवाद इंदिरा गांधी की सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गया था. यहां जनरैल सिंह भिंडरावाला के नेतृत्व में खालिस्तान की मांग पर हिंसक आंदोलन होने लगे. इंदिरा गांधी ने यहां भी कमान संभाली और कड़ा कदम उठाने का आदेश दे दिया. खालिस्तानी आतंकियों ने स्वर्ण मंदिर में छुपकर खूनी खेल खेलने का बड़ा प्लान बनाया था. इसमें पाकिस्तान की इसी का भी बड़ा हाथ था।
इसकी भनक लगते ही इंदिरा गांधी ने “ऑपरेशन ब्लू स्टार” का आदेश दिया. 3-6 जून 1984 को रातों-रात भारतीय सेना के स्पेशल कमांडो जूते उतारकर और सिर में कपड़े बांधकर सिख परंपरा का सम्मान करते हुए स्वर्ण मंदिर के अंदर घुसे और खालिस्तानियों को गोलियों से भून दिया. इसके बाद चार दशकों तक पंजाब में खालिस्तान सिर नहीं उठा पाया।
देश को दिया आपातकाल का जख्म
सियासत की माहिर इंदिरा के जो सबसे विवादित फैसले रहे उसमें 1975 में देश में लगाया गया आपातकाल लोकतंत्र के सीने पर एक जख्म के समान रहा. प्रधानमंत्री के रूप में उनकी सिफारिश पर देश में लगाए गए आपातकाल की वजह से उन्हें अपनी सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा।
इसी तरह का एक विवादित फैसला अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में खालिस्तानी आतंकियों को खत्म करने के लिए सैन्य कार्रवाई भी थी. इससे सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुई थी और ऐसा संदेश गया था कि सिखों के सबसे पवित्र स्थल पर सरकारी आदेश पर धर्मस्थल को अपवित्र किया गया. जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई की कीमत उन्हें 31 अक्टूबर 1984 को अपने सिख अंगरक्षकों के हाथों जान गंवाकर चुकानी पड़ी।
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