नई दिल्ली (New Delhi) । अफ्रीकी संघ (african union) को जी-20 का सदस्य (G-20 member) बनाने के बाद इस साल दूसरी बार भारत (India) के नेतृत्व में वाइस ऑफ ग्लोबल साउथ सम्मेलन (Voices of Global South Conference) का आयोजन होना बेहद महत्वपूर्ण है। इस सम्मेलन का आयोजन जहां वैश्विक कूटनीतिक मंच पर भारत के बढ़ते प्रभाव को प्रदर्शित करेगा, वहीं वैश्विक दक्षिण देशों के बीच चीन के प्रभुत्व को भी कम करेगा। जबकि भारत इन देशों में अपने नए सहयोगी तैयार कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शुक्रवार को वर्चुअल रूप से सम्मेलन का आयोजन होगा, जिसमें कुल दस सत्र होंगे। इनमें प्रमुख रूप से विदेश (दो सत्र), शिक्षा, वित्त, पर्यावरण, ऊर्जा, स्वास्थ्य तथा मंत्रालयों के होंगे, जिनमें इन विभागों के मंत्री शिरकत करेंगे। सम्मेलन में 100 से अधिक देशों के हिस्सा लेने की संभावना है। करीब सवा सौ देशों को आमंत्रित किया गया है।
इसी साल जनवरी में हुए सम्मेलन में 120 देश आमंत्रित किए गए थे, जिनमें से ज्यादातर ने शिकरत की। वैश्विक दक्षिण देशों में प्रमुख रूप से अफ्रीकी, लातिन अमेरिकी और कैरेबियन देश शामिल हैं। इनमें 54 अफ्रीकी देश, 33 लातिन अमेरिकी देश तथा 13 कैरेबियाई देश शामिल हैं। इसके अलावा, कुछ एशियाई एवं ओसियन देश भी शामिल हैं।
भारत की धाक बढ़ी
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत ने जिस प्रकार ग्लोबल साउथ देशों को पिछले कुछ सालों के दौरान लगातार नेतृत्व प्रदान किया है और जी-20 में भी इनसे जुड़े मुद्दों को उठाया तथा अफ्रीकी संघ को उसका सदस्य बनाया है, उससे वैश्विक मंच पर भारत की धाक बढ़ी है। यह भविष्य में सयुक्त राष्ट्र में सुधारों खासकर सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी के हिसाब से भी महत्वपूर्ण है। ये देश भारत का समर्थन कर सकते हैं। क्योंकि इनकी संख्या काफी है। इसके अलावा, भारत छोटे देशों के साथ कारोबारी संबंधों को भी बढ़ा रहा है। जिस प्रकार से आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसके मद्देनजर आने वाले समय में दवा तथा तकनीकी क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ेगा और ये देश भारत के लिए निर्यात केंद्र बन सकते हैं।
वैश्विक मंच पर भारत ने आवाज उठाई
भारत ने वैश्विक मंच पर इन देशों की आवाज उठाने के साथ-साथ कई अन्य तरीके से भी इन देशों के साथ प्रगाढ़ता बढ़ाई है। भारत के मंत्रियों यहां तक कि प्रधानमंत्री ने भी इनमें से कई देशों की यात्राएं की हैं। जिन देशों में भारतीय मिशन नहीं है, वहां उनकी स्थापना की जा रही है। कारोबारी रिश्ते बढ़ाए जा रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान भी कई देशों को मदद प्रदान की थी। इससे इन देशों में चीन का जो प्रभुत्व कायम हुआ तो वह कमजोर हुआ है, क्योंकि चीन ने कभी उनकी आवाज को वैश्विक मंच पर नहीं उठाया। जबकि भारत उनकी आवाज को भी उठा रहा है। ग्लोबल साउथ की आवाज उठाकर भारत ने वसुधैव कुटुंबकम की भावना को भी बढ़ावा दिया है।
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