नई दिल्ली (New Delhi)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन (Govardhan Puja 2023) करने का विधान है। इस तिथि को अन्नकूट (Annakoot) के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन घरों में अन्नकूट का भोग (offering of Annakoot) बनाया जाता है। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2023) का पर्व दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है लेकिन इस बार अमावस्या तिथि दो दिन होने की वजह से गोवर्धन पूजन 14 नवंबर को मनाया जा रहा है।
इस दिन श्रीकृष्ण के स्वरूप गोवर्धन पर्वत (गिरिराज जी) और गाय की पूजा का विशेष महत्व होता है। गोवर्धन,वृंदावन और मथुरा सहित पूरे बृज में इस दिन जोर-शोर से अन्नकूट महोत्स (Annakoot Festival) मनाया जाता है। मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव कार्तिक प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर दिन सोमवार से दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से हो रही है और तिथि का समापन 14 नवंबर दिन मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को मानते हुए गोवर्धन पूजन 14 नवंबर को मनाया जाएगा।
गोवर्धन पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त भगवान गिरिराज की पूजा करता है तो उसके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है और गिरिराज महाराज जो भगवान श्रीकृष्ण का ही स्वरूप हैं उनका आशीर्वाद पूरे परिवार पर बना रहता है। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन भगवान की पूजा करने से जीवन में आ रहे सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। गोवर्धन की पूजा से आर्थिक समस्याएं और तंगी दूर होती हैं एवं धन धान्य, संतान और सौभाग्य की प्रप्ति होती है।
गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा करने के लिए आप सबसे पहले घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं। इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें। इसके बाद अपने परिवार सहित श्रीकृष्ण स्वरूप गोवर्धन की सात प्रदक्षिणा करें। मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से सच्चे दिल से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से एवं गायों को गुड़ व चावल खिलाने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है। इस दिन गाय की पूजा करने से सभी पाप उतर जाते हैं और मोक्ष प्राप्त होता है।
कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में इंद्र ने कुपित होकर जब मूसलाधार बारिश की तो श्री कृष्ण ने गोकुलवासियों व गायों की रक्षार्थ और इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत,छोटी अंगुली पर उठा लिया था ।उनके सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी, सभी गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुरक्षित रहे। तब ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म ले लिया है,उनसे बैर लेना उचित नहीं है। तब श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपने इस कार्य पर बहुत लज्जित हुए और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की।
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