डेस्क: धनतेरस के साथ ही दिवाली के पंचदिवसीय त्योहार की शुरुआत हो जाती है. सुख-समृद्धि और सौभाग्य बरसाने वाला धनतेरस का त्योहार कल यानी 10 नवंबर को मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर की पूजा-अर्चना भी की जाती है. इसके अलावा इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग के मुताबिक धनतेरस का ये पावन पर्व कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है.
धनतेरस पर सोना-चांदी, बर्तन या फिर नए वाहन को खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. पर क्या आप जानते हैं कि इस पर्व पर माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर को कुछ चीजें जरूर चढ़ानी चाहिए. ऐसा माना जाता है कि देवी-देवता अगर प्रसन्न हो जाए तो पूरे जीवन धन से जुड़ी किसी तरह की समस्या परेशान नहीं करती है. इसलिए इस धनतेरस पूजा में जरूर चढ़ाएं ये पांच चीजें और इससे पैसों की बरसात तक होगी.
पीले रंग का भोग : कहते हैं कि भगवान कुबेर को पीले रंग की चीजें काफी पसंद आती हैं. प्रसाद या भोग में आप भगवान कुबेर के समक्ष पीले चावल, केसर की खीर या फिर बेसन के लड्डू चढ़ा सकते हैं. मान्यता है कि भगवान कुबेर पीले रंग की चीजों के भोग से प्रसन्न हो सकते हैं.
नारियल का प्रसाद : हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य या पूजा के दौरान नारियल का पूजा सामग्री में शामिल होना अनिवार्य माना जाता है. धनतेरस के मौके पर नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश पर जरूर रखें. ऐसा करने से भगवान कुबेर प्रसन्न होते हैं और उनकी विशेष कृपा मिलती है.
हल्दी और रोली : भगवान कुबेर को पीले रंग की चीजें चढ़ाई जाती है इसलिए इस पर्व में हल्दी का भी विशेष महत्व होता है. आप धन के देवता कुबेर को हल्दी चढ़ा सकते हैं. इससे परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है.
स्वास्तिक : ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करते समय स्वास्तिक जरूर बनाना चाहिए. आप हल्दी को पानी या घी में मिलाकर स्वास्तिक बना सकते हैं. ऐसा करना बेहद शुभ होता है और इससे माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है.
चढ़ाएं दूर्वा : ये एक तरह की घास है जिसे पूजा में इस्तेमाल किया जाता है. कहते हैं कि भगवान कुबेर को दूर्वा चढ़ाने से जीवन में सुख एवं संपत्ति की वृद्धि होती है. इसके अलावा धनतेरस के दिन इसे देवी-देवताओं के समक्ष रखने से घर में पैसों की कमी हो सकती है. इसलिए दूर्वा को चढ़ाना न भूलें.
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