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    Abul Kalam Azad Birth Anniversary: आख़िर तक भारत विभाजन रोकने की कोशिश करते रहे

  • November 09, 2023

    नई दिल्ली (New Delhi)। हर साल की तरह इस बार भी पूरे देश में नेशनल एजुकेशन डे (National Education Day 2023) मनाया जा रहा है। यह खास दिन प्रतिवर्ष 11 नवंबर को देश के पहले एजुकेशन मिनिस्टर (Country’s first education minister) मौलाना अबुल कलाम आजाद (Maulana Abul Kalam Azad) की बर्थ एनिवर्सरी (Birth Anniversary) को दर्शाने के लिए मनाया जाता है।

    अपने जीवन के शुरुआती सालों में ही मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (Maulana Abul Kalam Azad) ने इतना नाम कमा लिया था कि सरोजिनी नायडू ने उनके बारे में कहा था, “आज़ाद जिस दिन पैदा हुए थे उसी दिन वो 50 साल के हो गए थे।


    जब वो बच्चे थे तो वो एक ऊंचे मंच पर खड़े होकर भाषण देते थे और अपनी बहनों से कहते थे कि वो उन्हें घेरकर उनके भाषण पर ताली बजाएं. फिर वो मंच से उतरकर नेताओं की तरह धीरे-धीरे चलते थे।

    उनका जन्म सऊदी अरब में मक्का में हुआ था. उनके पिता ख़ैरुद्दीन 1857 के विद्रोह से पहले सऊदी अरब चल गए थे. वहां उन्होंने 30 साल बिताए थे. वो अरबी भाषा के बहुत बड़े जानकार और इस्लामी धर्मग्रंथों के विद्वान बन गए थे।

    सऊदी अरब में उन्होंने एक नहर की मरम्मत में मदद की थी, अरबी में एक क़िताब लिखी थी और अरब की ही एक महिला आलिया से शादी की थी।

    ख़ैरुद्दीन अपने परिवार सहित 1895 में भारत वापस लौटकर कलकत्ता में बस गए थे. आज़ाद ने किसी स्कूल, मदरसे या विश्वविद्यालय में शिक्षा नहीं ली थी. उन्होंने सारी पढ़ाई घर पर ही की थी और उनके पिता उनके पहले शिक्षक थे. जब आज़ाद 11 साल के थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था और उसके 11 साल बाद उनके पिता भी चल बसे थे।

    मुस्लिम नेता कहलाना पसंद नहीं था आज़ाद को
    आज़ाद बहुत बड़े राष्ट्रवादी थे. महात्मा गाँधी से उनकी पहली मुलाक़ात 18 जनवरी, 1920 को हुई थी. आज़ादी की लड़ाई में उनकी भूमिका की शुरुआत ख़िलाफ़त आंदोलन से हुई थी. साल 1923 में उन्हें पहली बार कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।

    1940 में वो एक बार फिर कांग्रेस के अध्यक्ष बने.
    हाल ही में आज़ाद की जीवनी लिखने वाले सैयद इरफ़ान हबीब लिखते हैं, “आज़ाद, हकीम अजमल ख़ाँ, डाक्टर एमए अंसारी, खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान और हसरत मोहानी जैसे नेताओं की श्रेणी मे आते थे जो अपने-आप को मुस्लिम नेता कहलाना पसंद नहीं करते थे।

    सैयद इरफ़ान हबीब लिखते हैं, “निजी जीवन में ये सभी समर्पित मुस्लिम थे लेकिन ख़िलाफ़त आंदोलन के अलावा उन्होंने सार्वजनिक जीवन में अपने धर्म को कभी सामने नहीं आने दिया.”

    अबुल कलाम आज़ाद ने क़ुरान का उर्दू में अनुवाद करने का बीड़ा उठाया. 1929 तक उन्होंने क़ुरान के 30 अध्यायों में से 18 का उर्दू में अनुवाद कर डाला था.

    आज़ाद के प्रति मोहम्मद अली जिन्ना की तल्ख़ी
    जब आज़ाद दूसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तब तक मोहम्मद अली जिन्ना की अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने की मांग ज़ोर पकड़ चुकी थी. जिन्ना ने मुसलमानों से कहना शुरू कर दिया था कि वो गोरे हुक्मरानों को हिंदू हुक्मरानों से बदलने की ग़लती न करें.

    जिन्ना को समझाने की ज़िम्मेदारी आज़ाद को सौंपी गई कि हिंदुओं और मुसलमानों के सैकड़ों सालों तक साथ रहने के बाद अलग होने की मांग सकारात्मक नहीं होगी.

    आज़ाद के प्रति जिन्ना की तल्ख़ी इतनी थी कि उन्होंने उन्हें पत्र लिखकर कहा, “मैं आपके साथ न तो कोई बात करना चाहता हूँ और न ही कोई पत्राचार. आप भारतीय मुसलमानों का विश्वास खो चुके हैं. क्या आपको इस बात का अंदाज़ा है कि कांग्रेस ने आपको दिखावटी मुसलमान अध्यक्ष बनाया है? आप न तो मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हैं और न ही हिंदुओं का. अगर आप में ज़रा भी आत्मसम्मान है तो आप कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दीजिए.”

    आज़ाद ने जिन्ना के पत्र का सीधा जवाब नहीं दिया लेकिन उन्होंने जिन्ना के इस तर्क का प्रतिवाद ज़रूर किया, “हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग सभ्यताएं हैं और उनके महाकाव्य और नायक अलग-अलग हैं और अक्सर एक समुदाय के नायक दूसरे समुदाय के ख़लनायक हैं.”

    महादेव देसाई ने आज़ाद की जीवनी में लिखा, “आज़ाद ने कहा कि हज़ार साल पहले नियति ने हिंदुओं और मुसलमानों को साथ आने का मौक़ा दिया. हम आपस में लड़े ज़रूर लेकिन सगे भाइयों में भी लड़ाई होती है. हम दोनों के बीच मतभेदों पर ज़ोर देने से कोई फल नहीं निकलेगा क्योंकि दो इंसान एक जैसे ही तो होते हैं. शांति के हर समर्थक को इन दोनों के बीच समानता पर ज़ोर देना चाहिए.”

    राजमोहन गांधी अपनी क़िताब ‘एट लाइव्स: अ स्टडी ऑफ़ द हिंदू-मुस्लिम इनकाउंटर’ में लिखते हैं, “जिन्ना हमेशा पश्चिमी ढंग के महंगे सूट पहनते थे जबकि आज़ाद की पोशाक शेरवानी, चूड़ीदार पाजामा और फ़ैज़ टोपी हुआ करती थी.”

    वो लिखते हैं, “आज़ाद और जिन्ना दोनों लंबे कद के थे. दोनों सुबह जल्दी उठ जाया करते थे. दोनों चेन स्मोकर्स थे. दोनों को आम लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं था लेकिन दोनों ही अक्सर बड़ी भीड़ के सामने भाषण दिया करते थे. जब जिन्ना अकेले होते थे तो वो अपनी राजनीतिक योजनाएं बनाया करते थे जबकि आज़ाद कई भाषाओं में इतिहास की किताबें पढ़ने में अपना वक़्त बिताते थे.”

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    Abul Kalam Azad Birth Anniversary: जीवन पर्यंत की देश की सेवा

    Thu Nov 9 , 2023
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