नई दिल्ली: भारतीय अरबपति गौतम अडानी के लिए बड़ी खबर सामने आई है. यह खबर अडानी ग्रुप के श्रीलंका की राजधानी में चल रहे पोर्ट प्रोजेक्ट को लेकर है. इस प्रोजेक्ट के लिए अमेरिका ने अडानी ग्रुप को 553 मिलियन डॉलर यानी 4600 करोड़ रुपए देने की बात कही है. इस खबर के बाद चीन सकते में आ गया है. अमेरिका की श्रीलंका में एंट्री से चीन की मनमानी पर रोक लग सकती है. साथ ही समुद्र से घिरे इस देश पर चीन का असर भी कम होगा. दूसरी ओर अडानी की कंपनियों के शेयरों में जबरदस्त तेजी का अनुमान लगाया जा रहा है.
अडानी पोर्ट के शेयर 2 फीसदी से ज्यादा की तेजी के साथ कारोबार कर रहे हैं. यह निवेश ऐसे समय पर आया है जब गौतम अडानी का साथ अमेरिकी बैंक देने को तैयार नहीं है. अडानी को मिडिल ईस्ट पर निर्भर रहना पड़ रहा है. इस खबर से अमेरिकी और यूरोपीय बैंकों में गौतम अडानी और अडानी ग्रुप का विश्वास बढ़ेगा. साथ ही निवेशकों पर भी ग्रुप का सिक्का जमेगा. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप और गौतम अडानी की काफी फजीहत हुई है. बैंकों और निवेशकों का भरोसा टूटा है. वैसे रिपोर्ट में लगाए गए सभी आरोपों से गौतम अडानी ने इनकार किया है.
अडानी ग्रुप कोलंबो में डीप वॉटर वेस्ट कंटेनर टर्मिनल बना रहा है. जिसमें अमेरिका की एजेंसी इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कार्पोरेशन 4600 करोड़ रुपए की फंडिंग काररने जा रही है. अमेरिका की इस सरकारी एजेंसी का एशिया में यह अब तक का सबसे बड़ा इंवेस्टमेंट माना जा रहा है. डीएफसी ने एक बयान में कहा, यह श्रीलंका की आर्थिक वृद्धि और “दोनों देशों के प्रमुख भागीदार भारत सहित इसके रीजनल इकोनॉमिक इंटीग्रेशन को बढ़ावा देगा.
पिछले साल आर्थिक मंदी से पहले कोलंबो द्वारा चीनी पोर्ट और हाईवे प्रोजेक्ट्स पर खर्च किए जाने के बाद अमेरिकी फंडिंग श्रीलंका पर बीजिंग के असर को कम करने का प्रयास है. श्रीलंका पर चीन का भारी कर्ज है. ऐसे में कोलंबो को हमेशा बीजिंग की बात माननी पड़ रही थी. वहीं भारत भी अपने पड़ोसी देश की मदद कर अपनी ओर करना चाहता है. इसका प्रमुख कारण चीन के हिंद महासागर में बढ़ते प्रभुत्व को रोकना भी है.
चीन ने श्रीलंका में लगभग 2.2 बिलियन डॉलर का निवेश किया हुआ है. चीन श्रीलंका के लिए सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक भी है. अमेरिकी अधिकारियों ने खुलेआम श्रीलंका के पोर्ट की आलोचना की है और इसे चीन के “डेट ट्रैप डिप्लोमैसी” का हिस्सा बताया है. इसी वजह से चीन के प्रभुत्व को खत्म करने के लिए अमेरिकी सरकार ने यहां पर निवेश करने का फैसला लिया है.
डीएफसी ने कहा कि वह अपने “लोकल एक्सपीरियंस और हाई क्वालिटी स्टैंडर्ड” पर भरोसा करते हुए स्पांसर जॉन कील्स होल्डिंग्स पीएलसी और अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड के साथ काम करेगा. इंटरनेशनल शिपिंग रूट्स के करीब होने के कारण कोलंबो पोर्ट हिंद महासागर में सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक है. सभी कंटेनर जहाजों में से लगभग आधे इसके वॉटर एरिया से होकर गुजरते हैं. डीएफसी ने कहा कि वह दो सालों से 90 फीसदी से अधिक उपयोग पर काम कर रहा है और उसे नई क्षमता की आवश्यकता है.
भले ही अडानी पर अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने गंभीर आरोप लगाए हों, लेकिन अमेरिकी फंडिंग अडानी ग्रुप को नई उड़ान दे सकती है. इस प्रोजेक्ट में अडानी की हिस्सेदारी 51 फीसदी से ज्यादा है. ऐसे में इस फंडिंग का सबसे ज्यादा फायदा गौतम अडानी और उनकी फर्म को होगा. हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप पर शेयर में हेर फेर और अकाउंटिंग फ्रॉड जैसे आरोप लगाए थे. जिसके बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में बड़ी गिरावट देखने को मिली थी. उस समय अडानी ग्रुप के मार्केट कैप में 150 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ था. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. सेबी को जांच के आदेश दिए. जिस पर रेगुलेटर ने अपनी अंतरित रिपोर्ट सौंप दी है.
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