उल्टे बांस बरेली… भूमाफियाओं की जमीन छोडऩे पर भी बनता प्रकरण और तब पद के दुरुपयोग के साथ आर्थिक लाभ का आरोप भी लगता सही
इंदौर। जिस जांच एजेंसी पर भ्रष्टाचार (Corruption) और अवैध कार्यों को रोकने-पकडऩे और सजा दिलवाने की जिम्मेदारी है, वही जहां गुपचुप खात्मा पेश कर देता है तो अभी भूमाफियाओं के चंगुल में फंसी एक हजार करोड़ की जमीन को सरकारी घोषित करने वाले अधिकारियों के खिलाफ ही प्रकरण दर्ज (case registered) कर एक तरह से भूमाफियाओं की मदद करने वाला नजर आ रहा है, जबकि मात्र 500 रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार करने वाले संगठन की यह कार्रवाई किसी को भी हजम नहीं हो रही है। अगर ये अधिकारी भूमाफिया के पक्ष में जमीन छोड़ते या फैसले करते तो यही लोकायुक्त (Lokayukta) उनके खिलाफ आर्थिक लाभ से लेकर पद के दुरुपयोग के मामले दर्ज करता, जो सही भी प्रतीत होते।
आए दिन अदने कर्मचारियों से लेकर अन्य को रिश्वत लेते रंगेहाथों पकडऩे की खबरें आती हैं, जिनमें 1000-500 से लेकर कुछ हजार और 2-4 लाख तक के ही मामले शामिल रहते हैं। दूसरी तरफ ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त संगठन आय से अधिक सम्पत्ति और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों-कर्मचारियों के ठिकानों पर छापे भी डालता रहा है। मगर दूसरी तरफ अभी त्रिशला गृह निर्माण संस्था की सरकारी घोषित की गई जमीन और भूमाफियाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने वाले राजस्व, सहकारिता और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ ही प्रकरण दर्ज कर लिए, जबकि इन अधिकारियों ने ये जमीन भूमाफियाओं के चंगुल से छुड़वाकर सरकारी घोषित की। यानि किसी तरह का आर्थिक लाभ हासिल नहीं किया, लेकिन अगर ये ही अधिकारी एक जेबी और बोगस संस्था, जिस पर दीपक मद्दे जैसे भूमाफियाओं ने कब्जा कर रखा था, उसकी जमीन छोड़ देते तो भी लोकायुक्त प्रकरण दर्ज करता, जो सही भी प्रतीत होता, क्योंकि तब भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए बनाए संगठन की भूमिका सही रहती। मगर अभी तो एक हजार करोड़ की जमीन भूमाफियाओं को मिल जाए, ऐसा प्रतीत हो रहा है।
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