इंदौर (Indore)। कांग्रेस से भाजपा में गए तुलसी सिलावट अपनी परछाइयों, यानी समर्थकों को भी साथ ले गए और यही परछाइयां उन भाजपाइयों पर हावी हो गईं, जो बरसों से भाजपा से जुड़े हुए थे। सांवेर में तुलसी ब्रिगेड इस कदर हावी हुई कि विधायक सोनकर को सोनकच्छ भिजवा दिया तो क्षेत्र के सरपंच से लेकर जनपद अध्यक्ष भी इसी ब्रिगेड के बोझ तले दबते चले गए। अब हालत यह है कि सांवेर में शक्ति का विकेंद्रीकरण तुलसी भाजपा के हाथों में है तो चुनाव जितवाने और दरियां उठाने का जिम्मा बरसों से पद-प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष करते भाजपाइयों के माथे है। इस समीकरण के चलते उपेक्षित भाजपाई इस कदर नराज हैं कि उसका खामियाजा तुलसी सिलावट को भुगतना पड़ सकता है।
सांवेर में तीन सालों में नई भाजपा अवतरित हो चुकी है, जिसकी कप्तानी तुलसी सिलावट कर रहे हैं। सरकार बनाने के उत्साह में भाजपाइयों ने उपचुनाव तो सिलावट को जीता दिया, उसके बाद तुलसी समर्थकों ने भाजपाइयों पर हावी होकर अपना रुतबा दिखाया। उसके बोझ तले भाजपाई दबते चलते गए। सांवेर नगर परिषद अध्यक्ष तो संदीप संघोडिय़ा हैं, लेकिन परिषद पर पूरा कब्जा तुलसी समर्थक दिलीप चौधरी का है, जो कांग्रेस से तुलसी के साथ भाजपा में आए और नेताजी ने उन्हें ग्रामीण उपाध्यक्ष बनाकर भाजपाइयों के सिर पर बिठा दिया। इसी तरह जनपद अध्यक्ष रीना सतीश मालवीय हैं, लेकिन कमान कांग्रेस से भाजपा में आए तुलसी समर्थक भरतसिंह चिमली संभालते हैं। इसी तरह शहर के वार्ड क्रमांक 35 और 36 में तुलसी समर्थक पप्पू शर्मा का रुतबा है। ऐसे और कई महत्वपूर्ण पदों पर या तो तुलसी समर्थकों का कब्जा है या फिर भाजपाइयों पर तुलसी समर्थक हावी हैं। क्षेत्र में तुलसी पुत्र चिंटू सिलावट मंत्री की भूमिका में रहते हैं और भाजपाई उनकी भी जी-हुजूरी करते हैं। मंत्री रहते सिलावट ने करोड़ों के कामों के भूमिपूजन तो करवाए, लेकिन कई काम शुरू ही नहीं हो पाए। क्षेत्र में आज भी सडक़ की जगह धूल और नलों में पानी का टोटा है। कुल मिलाकर भाजपाई जहां अपने नए नेता को स्वीकारने और खुद को नकारने की दुविधा से जूझ रहे हैं, वहीं जनता भी केवल उद्घाटनों के झुनझुने बजा रही है। यदि मंत्रीजी को अपनी विजय पताका फहरानी है तो नाराज भाजपाइयों को मनाना होगा और आश्वस्त भी करना होगा, वरना कांग्रेस प्रत्याशी को इसका पूरा फायदा मिलेगा।
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