इंदौर (Indore)। क्षेत्र क्रमांक तीन से कांग्रेस प्रत्याशी पिंटू जोशी अपने पिता की छवि को लेकर मैदान में उतरे हैं, जिन्होंने चार दशकों तक इंदौर की राजनीति पर ही नहीं, बल्कि लोगों के दिलों पर भी राज किया। पिंटू के पिता महेश जोशी राष्ट्रीय राजनीति का वो हिस्सा थे, जो उस वक्त की युवा तरुणाई का हिस्सा थी। महेश भाई उस समय गांधी ब्रिगेड से जुड़े ऐसे नेता में शुमार थे, जो देश और प्रदेश के निर्णयों में सहभागी रहे। वे न केवल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के राजनीतिक गुरु थे, बल्कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इंदौर शहर के युवाओं के लिए जहां यह जानकारी दिलचस्प होगी, वहीं पुराने लोगों के लिए भी यह अविस्मरणीय है। महेश जोशी इंदौर की वो राजनीतिक शख्सियत थीं, जो राजनीति तो इंदौर में करते थे, लेकिन संपर्क और दबदबा दिल्ली तक रखते थे। उनकी इस शहर से इस कदर आत्मीयता थी कि इमली बाजार स्थित उनके घर के एक हॉल में पूरे शहर के दु:खी-दर्दियों का जमावड़ा रहता था। महेश भाई बेहद ही अक्खड़ स्वभाव और खड़ी जुबान के राजनेता माने जाते थे। जो मुंह में आए वो बोल देते और चाहे जिस अधिकारी की लू उतार देना उनकी शख्सियत में शामिल रहा। महेश भाई की शख्सियत यह थी कि वो यदि किसी को दुत्कार देते थे तो उसका काम जरूर करते थे और यदि प्रेम से किसी को आश्वस्त करते थे तो उसका काम संशय में रहता था। उनके घर पर हर दिन सौ से दो सौ लोग अपनी गुहार लेकर पहुंचते थे और सबकी तकलीफ वो खुद सुनकर हाथोहाथ उसका निराकरण करते थे। उनकी कार्यशैली के सभी कायल थे।
फक्कड़ भी थे और बेहद ईमानदार भी
महेश भाई इतने फक्कड़ थे कि कई बार उनके पास घर खर्च के पैसे नहीं हुआ करते थे, लेकिन कभी उन्होंने ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ा। उनके पूरे राजनीतिक जीवन में उन पर कभी कोई एक पैसे का दाग नहीं लगा पाया। खुद हमेशा मुफलिसी में जीते थे, लेकिन उनके दर पर जाने वाला कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। उनके मित्रों की एक ऐसी टोली थी, जो चंदा करके लोगों की मदद करती थी। जिस व्यक्ति को मदद की जाती थी उसके पास पैसों के साथ एक पर्ची भी होती थी, जिस पर मदद करने वालों के नाम और राशि लिखी रहती थी।
बेटों के लिए कभी टिकट नहीं मांगा
महेश भाई ने कई को चुनाव लड़वाया और टिकट भी दिलवाया, लेकिन अपने भाई के बेटे, यानी अश्विन जोशी को कई बार यह कहकर टाल दिया कि अभी तुम चुनाव के लिए परिपक्व नहीं हो। जब अश्विन ने अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर ली, तब महेश भाई टिकट के लिए राजी हुए। अपने बेटे पिंटू को भी उन्होंने टिकट तो दूर लंबे समय तक राजनीतिक पद से भी दूर रखा, जबकि कई वरिष्ठ नेता पिंटू को टिकट दिलाने के लिए उनसे गुहार करते रहे। उनका कहना था कि मेरे घर से एक नेता अश्विन राजनीति में है, इसलिए दूसरे की जरूरत नहीं। महेश भाई इतने मुखर थे कि वो नेताओं से सवाल कर बैठते थे कि घर के सब लोग राजनीति करने लगेंगे तो कमाएगा कौन और घर कौन चलाएगा?
भाई रूठने-मनाने में लगे हैं… और महेश भाई का काम दा साब के बिना नहीं चलता था
अश्विन जोशी के पिता, यानी मणिशंकरजी जोशी को दा साब के नाम से जानते थे और महेश भाई के सारे साथी उन्हें बड़े भाई का सम्मान देते थे। दा साब और महेश भाई के बीच इतनी एकजुटता थी कि दोनों एक-दूसरे का कहा नहीं टालते थे। दोनों के जाने के बाद पिंटू को टिकट ंिमलने पर अश्विन के रुठने की खबरें चाहे जितनी आम हुई हैं, लेकिन पुराने लोग जानते हैं कि महेश भाई ने अश्विन और पिंटू दोनों पर समान अधिकार रखा।
कैलाश विजयवर्गीय की तरह थे महेश भाई… मित्रों को आगे बढ़ाया
छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले महेश भाई सत्तर के दशक में ही बेहद महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर चुके थे। महेश भाई से अधिकारी तो अधिकारी नेता भी थर-थर कांपते थे, इसलिए मंत्री पद के मजबूत दावेदार होने के बावजूद उन्हें कई वर्षों तक सत्ता से दूर रखा गया, लेकिन वो मिनिस्टर मेकर की भूमिका में हमेशा रहे। कैलाश विजयवर्गीय की ही तरह महेश भाई ने अपने सभी साथियों को आगे बढ़ाया। कई को निगम-मंडल का अध्यक्ष बनवाया तो कई को चुनाव लड़वाया। इंदौर में अधिकारियों की पोस्टिंग उनकी मर्जी से होती थी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनवाने से लेकर मुख्यमंत्री पद के लिए हो रही रस्साकशी में दिल्ली से वीटो करवाकर उन्हें मुख्यमंत्री बनवाया। दिग्विजयसिंह भी उनका इतना मान रखते थे कि उनकी कोई बात नहीं टालते थे।
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