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    काश… हम रावण जैसे मानव बन पाते… जिसके मोक्ष के लिए भगवान धरती पर आते…

  • October 24, 2023

    रावण नहीं होता तो राम कैसे पूजे जाते… मानव से भगवान कैसे बन पाते… शिव भी रावण-सा परम भक्त कहां से पाते… जो एक बार नहीं दस बार अपने शिश काटकर शिव को चढ़ाए…अपनी आंतों को निकालकर माला बनाए…तप की उस इंतहा तक पहुंच जाए कि शिव खुद अवतरित होकर अमरत्व प्रदान करने पर विवश हो जाएं… ऐसे रावण को हम कैसे जला पाएं…उसे जलाना तो दूर जलता हुआ भी कैसे देख पाएं…उसे हम कैसे अहंकार का दोषी ठहराएं…जिसे ईश्वर ने वरदान दिया और जिसने मौत को जीत लिया… ऐसा इंसान अहं क्यों न जताए और अहंकार भी किसी लोभ-लालसा या वासना के लिए नहीं, बल्कि अपनी बहन के अपमान के विरुद्ध दिखाए…वो भगवान का भक्त ही नहीं, बल्कि संस्कारों और संस्कृति की मिसाल भी क्यों न कहलाए… हम हर साल रक्षाबंधन मनाते हैं…बहन की रक्षा का वचन निभाते हैं…फिर रावण को दोषी क्यों ठहराते हैं… शूपर्णखा ने विवाह का प्रस्ताव दिया था… लक्ष्मण ने इनकार किया था… उसने हठधर्मिता अपनाई तो लक्ष्मण ने नाक काटकर शक्ति बताई… दोष तो दोनों ओर से हुआ था…भाई को बहन का प्यार नजर आया… दोनों की तकरार का कारण समझ में नहीं आया…बहन की आंखों से बहते आंसुओं से उद्वेलित रावण ने माता सीता के अपहरण का दुस्साहस भले ही दिखाया, लेकिन अगवा की गईं सीता को हाथ तक नहीं लगाया…रावण की कैद में भी सीताजी उतनी सुरक्षित और सम्मानित थीं, जितनी रामजी के साथ और लक्ष्मणजी की सुरक्षा में रहती थीं…रावण का द्वंद्व राम से या रावण का द्वंद्व लक्ष्मण से था…उसे यदि अपनी शक्ति का अहंकार भी था तो शिव का वरदान उसका कारण था… जो इंसान मौत को जीत चुका हो…जो इंसान संस्कार और संस्कृति की धरोहर रहा हो…जो इंसान बहन के सम्मान की खातिर भगवान से लडऩे और मरने के लिए तैयार हो, उस रावण की मर्यादा को भगवान राम की मर्यादा से कम कैसे आंका जा सकता है…जिस रावण के सारे भाइयों ने अपने भाई के आदेश पर जान गंवाई, उसी रावण के एक भाई को लंका जीतकर भेंट में देने का लालच देकर मौत का भेद यदि राम नहीं पाते तो रावण को कैसे मार पाते…जिस रावण को मुक्ति देने के लिए भगवान राम को धरती पर अवतरित होना पड़ा…जिस रावण की शक्ति ने त्रेता युग को सार्थक किया…जिस रावण की भक्ति को स्वयं भगवान राम ने प्रणाम किया…जिस रावण ने आदर्शों और मर्यादाओं का संदेश मानव युग को दिया, उस रावण को सारा देश युगों-युगों से पुतले बनाकर जला रहा है…कलियुग के विषाद में पले काम, क्रोध, मद, लोभ, दंभ, दुर्भाव और द्वेष से भरे लोग उसे जला रहे हैं और खुद को राम का भक्त बता रहे हैं…पता नहीं हम कैसा दशहरा मना रहे हैं…बहन के अपमान से क्रोधित रावण के अहंकार की सजा जब तृष्णा और तिरस्कार से दी जा रही है तो मरने, मिटने और चंद दिनों का जीवन जीने वाले मुट््ठीभर दौलत और इलाकेभर की सल्तनत का अहंकार पालने वाले नेता रावण को फूंककर कैसे धर्म-न्याय कर पाएंगे…कैसे राम को अपना आदर्श बताएंगे…राजनीति की शिक्षा कैसे पाएंगे…पता नहीं हम कैसे समझ पाएंगे… हम राम तो बन नहीं सकते, रावण का भी एक गुण जेहन में नहीं रखते… फिर कैसे दशहरा मनाएं… जो रावण शिव की भक्ति और राम से मोक्ष पाए उसे कैसे दहन कर पर्व मनाएं…

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