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    कानफोड़ू प्रदूषण से गर्भपात, बहरापन, ब्रेन हेमरेज और हार्टअटैक का भी खतरा

  • October 14, 2023

    ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ स्कूल-कॉलेज में जनजागरण अभियान
    इंदौर।   स्वास्थ्य (health) के लिए सिर्फ धूल-धुंआ या प्रदूषित हवा (polluted air) ही खतरनाक नहीं है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण (noise pollution) यानि कानफोड़ू तेज साउंड (loud sound) मतलब ज्यादा शोर-शराबा भी आपकी सेहत के लिए खतरा बन सकता है। डॉक्टर रमेश मंगल का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण से सिर्फ कान से बहरे होने की समस्या ही नहीं, बल्कि गर्भपात सहित हार्टअटैक और ब्रेन हेमरेज होने का खतरा बढ़ जाता है।
    इसी संवेदनशील मुद्दे को लेकर सीईपीआरडी संस्था की टीम स्कूल से लेकर कॉलेज तक पहुंच कर ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ जनजागरण अभियान चला रही है। डॉ. दिलीप वाघेला ने बताया कि लगातार तेज आवाज अथवा कानफोड़ू शोर के कारण आसपास के लोगों का ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है, हार्टबीट तेज हो जाती है। इस वजह से ब्रेन हेमरेज, हार्टअटैक सहित कान और मस्तिष्क सम्बन्धित कई बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है।


    गर्भवती महिला, बच्चों और वृद्धजनों पर बुरा असर
    धूल-धुएं के अलावा ध्वनि प्रदूषण का सबसे ज्यादा खतरनाक असर गर्भवती महिलाओं, नवजात छोटे बच्चों और वृद्धजनों पर होता है। तेज शोर के चलते ध्वनि प्रदूषण का असर अजन्मे गर्भस्थ शिशु पर तो होता ही है, मगर कई बार तो गर्भवती महिलाओं का गर्भपात तक हो जाता है। सीईपीआरडी टीम का मानना है कि शहर में ध्वनि प्रदूषण का स्तर सितम्बर-अक्टूबर व नवंबर माह से बढऩे लगता है। गणेश उत्सव से लेकर नवरात्रि में डीजे हाईसाउंड सिस्टम, दिवाली पर तेज आवाज वाले फटाखे के फोडऩे के अलावा देवउठनी ग्यारस पर देव उठते ही शादी-ब्याह में आतिशबाजी का शोर-शराबा बढ़ जाता है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार यह शोर-शराबा स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। इसका कान व मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर पड़ता है।

    जी भर त्योहार, खुशियां मनाएं मगर…
    हम त्योहार खुशियों के लिए मनाते हैं। इसलिए उन्हें खूब उत्साह के साथ जी भर कर सारे त्योहार मनाना चाहिए। मगर इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि कानफोड़ू गीत-संगीत का बुरा असर हम और दूसरों के स्वास्थ्य पर नहीं पड़े। इसलिए पर्यावरण की राष्ट्रीय संस्था सीईपीआरडी द्वारा महाविद्यालयों के युवाओं के साथ प्रदूषणमुक्त जन-जागरण का एक बड़ा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत प्रत्येक महाविद्यालय में धूल-धुएं और शोर-शराबे से होने वाले नुकसान के अलावा मन-मस्तिष्क पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव के लिए प्रेजेंटेशन दिया जा रहा है। जागरण अभियान में स्लोगन-स्टीकर्स वितरित किए जा रहे हैं।

    अधिकतम 85 डेसिबल से ज्यादा आवाज नहीं
    ईएनटी यानि नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर्स का कहना है कि कानफोड़ू म्यूजिक, ढोल-ढमाके के कारण न सिर्फ बहरापन बढ़ रहा है, बल्कि नींद न आना जैसी कई बीमारियां बढ़ रही हैं। मानव कान के लिए एक निर्धारित ध्वनि सीमा (साउंड रेंज) 85 डेसिबल है और इससे अधिक तेज आवाज अथवा कानफोड़ू ध्वनि सुनने से कानों पर बुरा असर पडता है।

     

     

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