उज्जैन। शिप्रा नदी के रामघाट क्षेत्र में गोताखोर और निगरानी के लिए कर्मचारी रहते हैं लेकिन बड़े पुल और शिप्रा के अन्य घाटों पर न तो गोताखोर हैं और ना ही सुरक्षा के इंतजाम, जबकि यहाँ बीते दस माह में आठ लोग खुदकुशी कर चुके हैं। नदी में पानी की गहराई का अंदाजा नहीं होने के कारण 15 से अधिक लोगों की पानी में डूबने से मौत हो चुकी है। बावजूद इस पर न तो नगर निगम ध्यान दे रहा है ना ही जिला प्रशासन।
उल्लेखनीय है कि उज्जैन में आने वाले पर्यटकों के लिए शिप्रा नदी के घाट सबसे पसंदीदा जगहों में से एक है। चाहे वह रामघाट क्षेत्र हो या नृसिंह घाट या शिप्रा के अन्य घाट। पर्व स्नान के दिनों में श्रद्धालुओं की सबसे ज्यादा भीड़ यहीं लगती है लेकिन रामघाट घाट से लेकर नृसिंह घाट एवं उसके आसपास के घाटों पर सुरक्षा के पर्याप्त साधन नहीं हैं। नतीजा स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के डूबने का खतरा हमेशा बना रहता हैं। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक शिप्रा नदी में पानी की गहराई का अंदाजा नहीं होने के कारण पिछले 10 माह में 15 से अधिक लोगों की पानी में डूबने से मौत हो चुकी है और 500 से ज्यादा लोगों को घाट पर मौजूद तैराकों ने डूबने से बचाया हैं। पूर्व में घटनाएँ सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने शिप्रा के तट को गंगा माडल पर बनाने की बात कही थी जिसकी प्रतीक्षा है।
एनाउंसमेंट माइक बंद, खतरे के निशान भी नहीं
शिप्रा के घाटों पर 24 घंटे गोताखोरों की उपस्थिति होना चाहिए लेकिन एक तरफ शिप्रा के घाटों पर नगर निगम के एनाउंसमेंट माइक बंद पड़े हैं, तो दूसरी तरफ नदी में खतरे के निशान भी नहीं लगे हैं, इसी के चलते शिप्रा के घाटों पर लगातार श्रद्धालुओं के डूबने की घटनाएं बढ़ रही हैं। जिन्हें रोकने में न तो नगर निगम के अधिकारी गंभीरता दिखा रहे हैं और ना ही जिला प्रशासन के अफसर। ऐसे में शिप्रा के कई घाट सुसाइट पॉइंट में तब्दील होते जा रहे हैं।
पिछले साल भी 20 लोगों ने गंवाई थी जान
शिप्रा नदी के अलग-अलग घाटों पर पानी की गहराई भी अलग है। देश भर से आने वाले लोगों को गहराई का अंदाजा नहीं होता हैं, इसी कारण डूबने से लोगों की मौत होती है। महाकाल थाने से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले साल भी 20 लोगों की मौत शिप्रा नदी में डूबने से हुई, हालांकि इनमें कुछ लोग नदी में कूदकर खुदकुशी करने वाले भी हैं।
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