भोपाल, रवीन्द्र जैन। ग्वालियर-चंबल संभाग (Gwalior-Chambal Division) का प्रशासन इतिहास से सबक लेने को तैयार नहीं है। 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले 2 अप्रैल 2018 को ग्वालियर (Gwalior) में हुए दलित आन्दोलन ने भाजपा को भारी नुकसान पहुंचाया था। दोनों संभागों की सात में से छह दलित सीटों पर भाजपा हार गई थी। उस घटना के बाद दलित वर्ग आज तक भाजपा से दूरी बनाए हुए है। 2023 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाग (Gwalior-Chambal Division) में तेज होते गुर्जर आन्दोलन से भाजपा को भारी नुकसान होने की संभावना है।
ग्वालियर-चंबल संभाग में प्रशासन जातिगत आन्दोलनों से सही तरीके से निपटने में पूरी विफल साबित हो रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले हुए दलित आन्दोलन से न तो शिवराज सरकार ने सबक लिया है और न ही स्थानीय प्रशासन इससे निपटने में कारगर साबित हो रहा है। पिछले महीने 25 सितंबर को ग्वालियर में हुए गुर्जर आन्दोलन और उसके बाद भडक़ी हिंसा के बाद उम्मीद की जा रही थी कि प्रशासन गुर्जर नेताओं के साथ बैठकर समस्या का समाधान तलाशेगा, लेकिन प्रशासन ने तमाम गुर्जर नेताओं को जेल में ठंूस दिया है। 11 गुर्जर नेताओं पर 5-5 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया है। कल गुर्जर समाज ने अपने नेताओं की रिहाई के लिए जेलभरो आन्दोलन की घोषणा की थी। बेशक प्रशासन ने पुलिस के डंडे के दम पर इस आन्दोलन को विफल कर दिया है, लेकिन गुर्जर समाज में शासन-प्रशासन के प्रति गुस्से को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। खास बात यह है कि चंबल संभाग के सबसे बड़े गुर्जर नेता पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह भी भाजपा से अपना टिकट कटने से खासे नाराज हैं। उन्होंने बेटे राकेश सिंह को मुरैना से निर्दलीय चुनाव में उतारने का मन बना लिया है। ऐसे में भाजपा को दोगुना नुकसान होने की संभावना है। ग्वालियर-चंबल संभाग में गुर्जर समाज 10 से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका में है।
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