• img-fluid

    काशी की मनु कैसे बनी झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई, ये थी उनकी आखिरी इच्छा

  • October 01, 2023

    हमारे देश की स्वतंत्रता (Freedom) के लिए अनेक राजाओं ने लड़ाइयाँ लड़ी और इस कोशिश में हमारे देश की वीर तथा साहसी स्त्रियों ने भी उनका साथ दिया। झांसी एक ऐतिहासिक शहर है। वह शहर, जिसका जिक्र होते ही याद आती हैं झांसी की रानी (Queen of Jhansi) और 1857 के स्वाधीनता संग्राम की रौंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी। झांसी को दुनिया में विशिष्ट पहचान दिलाने का श्रेय वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई (Veerangana Maharani Laxmibai) को जाता है। 181 वर्ष पहले 14 साल की काशी की मनु झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई बन गई थी। ‘बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान (Poet Subhadra Kumari Chauhan) की कविता की ये लाइनें सुनते ही देश के हर आदमी की जहन में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की यादें ताजा हो जाती है।

    महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म (Birth of Maharani Laxmibai) एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में सन 1828 में काशी में हुआ, जिसे अब वाराणसी के नाम से जाना जाता हैं। उनके पिता मोरोपंत ताम्बे बिठुर में न्यायलय में पेशवा थे और इसी कारण वे इस कार्य से प्रभावित थी और उन्हें अन्य लड़कियों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता भी प्राप्त थी। देश को आजादी 1947 में मिली, लेकिन 1857 की क्रांति में देश को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराने का बिगुल बजा दिया गया था, जिसमें झांसी की रानी रानी लक्ष्मीबाई का बड़ा योगदान था। जो देश के खातिर अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गईं थीं। जिनके शौर्य की गाधाएं पूरा देश गाता है।

    रानी लक्ष्मीबाई का नाम जन्म के बाद मणिकर्णिका रखा गया था, जबकि प्यार से सब उन्हें मनू कहकर बुलाते थे, वह बचपन से ही बहुत बहादुर थी। मराठा ब्राह्मण से आने वाली मणिकर्णिका बचपन से ही शास्त्रों और शस्त ज्ञान की धनी थीं। लक्ष्मीबाई बचपन से ही साहसी और निडर स्वभाव की थी और उन्हें शास्त्र और शस्त्र दोनों का ज्ञान था। 1850 में उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवलकर से हुआ था। जहां विवाह के बाद वे से ही वे झांसी की महारानी बन गई और उन्हें लक्ष्मी बाई के नाम से पहचाने जाने लगा। 1851 में उनको पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. लेकिन पुत्र के जन्म के 4 माह बाद ही उनके बेटे का निधन हो गया, इससे सारी झांसी शोक में डूब गई। हालांकि उन्होंने एक दत्तक पुत्र को गोद ले लिया। जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। लेकिन अपने बेटे की मौत से आहत राजा गंगाधर राव बीमार रहने लगे और 21 नवंबर 1853 को उनका निधन हो गया। जिससे पूरे राज्य की बागडोर रानी लक्ष्मीबाई के हाथ में आ गई।


    राजा गंगाधर राव की मौत के बाद अंग्रेजों ने सोचा की अब झांसी में राजा नहीं है ऐसे में झांसी को वह अपने ब्रिटिश शासन के तहत लाना चाहते थे। अंग्रेजों ने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और रानी लक्ष्मीबाई को झांसी का किला खाली करने के लिए कहा। जैसे ही रानी को यह हुक्म सुनाया गया तो उन्होंने अंग्रेजों का ललकारते हुए उनका फरमान को मानने से इनकार कर दिया। रानी ने अंग्रजों के खिलाफ बगावत कर दी।

    रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से कहा कि वह मरते दम तक अपनी झांसी किसी को नहीं देगी। रानी का फरमान सुनने के बाद अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। लेकिन अंग्रेजों के मंसूबों पर रानी ने पानी फेर दिया और झांसी पर हुए आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया। हालांकि अंग्रेजों के सामने रानी की सेना बहुत छोटी थी, ऐसे सन् 1857 तक झांसी दुश्मनों से घिर चुकी थी लेकिन रानी ने झांसी को बचाने का जिम्मा लिया था। उन्होंने अपनी महिला सेना तैयार की और इसका नाम दिया ‘दुर्गा दल’। रानी ने कई बार अंग्रेजों को धूल चटाई।

    हालांकि 1858 में युद्ध के दौरान अंग्रेज़ी सेना ने पूरी झांसी को घेर लिया और पूरे राज्य पर कब्जा जमा लिया, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई भागने में सफल रहीं और वहां से निकलर वह तात्या टोपे से मिली। जहां रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 18 जून 1858 को जब झांसी की रानी दतिया और ग्वालियर फतह करते-करते सिंधिया किले पर मदद के लिए पहुंची और वहां से खाली हाथ लौटने लगी, तभी अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया और अपनी तलवार से गोरों की गर्दन कलम करते हुए उन्होंने घोड़े को किले से नीचे उतार दिया, उसी समय एक अंग्रेज सैनिक ने उनपर भाले से हमला कर दिया, जिससे वो बुरी तरह घायल हो गईं और उनका घोड़ा भी घायल हो गयी, यह पूरा मामला उस वक्त जब गंगादास की कुटिया में रहने वाले साधुओं को पता लगा, तो वे रानी को उठाकर कुटिया में ले आए. हालांकि वह बुरी तरह से घायल हो गई थी ऐसे में उन्होंने संत गंगा दास की कुटिया में अपने प्राण त्याग दिए।


    गंगादास की कुटिया में रहने वाले साधुओं ने रानी को कुटिया में लाकर उनका इलाज करना शुरू किया, लेकिन रानी को आभास हो गया था की, अब शायद वो बच नहीं पाएंगी, इसीलिए उन्होंने साधु गंगादास से कहा कि, बाबा मेरे शरीर को गोरे अंग्रेजों को नहीं छूने देना। बस इतना कहते ही रानी लक्ष्मीबाई ने प्राण त्याग दिए. तभी अंग्रेजों ने कुटिया पर हमला बोल दिया। लेकिन रानी की आखिरी इच्छा के लिए साधु भी युद्ध में उतर गए और रानी के शव की रक्षा करते हुए 745 नागा साधु शहीद हो गए। जब बाबा गंगा दास को लगा की, अब निहत्थे साधुआ के दम पर अंग्रेजों से रानी के शव को बचाया नहीं जा सकता, तो उन्होंने रानी की इस अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए घास फूस की बनी कुटिया में ही उनका संस्कार कर दिया, लेकिन मरते दम तक उनका शव भी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने दिया और रानी की आखिरी इच्छा को पूरा किया।

    Share:

    इन टीमों के बीच होगा वर्ल्ड कप 2023 का फाइनल, 12 क्रिकेट पंडितों ने की भविष्यवाणी

    Sun Oct 1 , 2023
    नई दिल्‍ली (New Dehli) । आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 (ICC Cricket World Cup 2023)की शुरुआत होने को है। इस टूर्नामेंट के वॉर्मअप (Tournament Warmup)मैच खेले जा रहे हैं। इस बीच वर्ल्ड कप के ऑफिशियल (Official)ब्रॉडकास्टर पर क्रिकेट पंडितों (pundits)ने अपनी-अपनी भविष्यवाणी की है। इन क्रिकेट एक्सपर्ट्स ने बताया है कि कौन-कौन सी टीम वर्ल्ड […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    सोमवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved