– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 30 दिनों तक विदेशी नेताओं के साथ बैठकें कर जो संवाद स्थापित किया, उसने आज अपने आप में एक रिकार्ड बना लिया है। भारत को छोड़ कर दुनिया का शायद ही कोई देश होगा, जिसके प्रधानमंत्री या राष्ट्र प्रमुख ने एक माह में 85 देशों के प्रमुख नेताओं से संपर्क साधा और कूटनीति की कुर्सी पर अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उससे अपने लाभ के नितिगत निर्णयों में हां करवाई होगी।
वस्तुत: इस संदर्भ में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया भी कि कैसे पिछले 30 दिन में भारत की कूटनीति एक नयी ऊंचाई पर पहुंची है। जी-20 से पहले दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स सम्मेलन हुआ और भारत के प्रयास से ब्रिक्स समुदाय में छह नए देश शामिल किए गए। दक्षिण अफ्रीका के बाद वह यूनान गए जो गत 40 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। पीएम मोदी ने बताया कि जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले उन्होंने इंडोनेशिया में भी विश्व के अनेक नेताओं के साथ बैठकें कीं। इस तरह से देखें तो गत 30 दिनों के अल्प समय में 85 देशों के नेताओं से उन्होंने न सिर्फ संपर्क किया बल्कि सार्थक संवाद के माध्यम से उन्हें भारत के हितों में उनके हित निहित हैं इस बात से ठीक तरह से अवगत करा दिया है। निश्चित ही इससे आज भारत की कूटनीति एक नयी ऊंचाई पर पहुंची है।
सच पूछिए तो प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति की इस पहल से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वास्तविक क्षमता और भूमिका को महसूस किया जा सकता है। आज वे दिन याद आते हैं जब प्रधानमंत्री मोदी मई 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पहला विदेश दौरा अगस्त 2014 में जापान का किया था। वहां पीएम मोदी ने अपने जापानी समकक्ष शिंजो आबे के साथ तालमेल स्थापित किया। पिछले साल जुलाई में जब उनके दोस्त की हत्या हुई तो पीएम मोदी को गहरा दुख हुआ था। वह अपने दोस्त के राजकीय अंतिम संस्कार में शामिल होने जापान गए थे।
विदेश नीति और कूटनीति के स्तर पर उन्होंने सार्क देशों के सभी प्रमुखों की उपस्थिति में अपना पहला कार्यकाल शुरू किया और दूसरे की शुरुआत में बिम्सटेक नेताओं को आमंत्रित किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनके संबोधन की हर बार दुनिया भर में सराहना हुई है । पीएम मोदी 17 साल की लंबी अवधि के बाद नेपाल, 28 साल के बाद ऑस्ट्रेलिया, 31 साल के बाद फिजी और 34 साल के बाद सेशेल्स और यूएई के द्विपक्षीय दौरे पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने।
पदभार संभालने के बाद से मोदी ने यूएन, ब्रिक्स, सार्क और G-20 समिट में भाग लिया और अपने यहां भी सफलतम आयोजन कराया, जिसकी कि आज पूरी दुनिया में प्रशंसा हो रही है। ”वसुधैव कुटुम्बकम्” की दृष्टि विश्व को देना हो या यह नारा कि वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर अर्थात् एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य करते हुए समस्त विश्व को एक छाते के नीचे लाना जिसमें कि अफ्रीकी संघ का जी-20 में स्थायी सदस्य के रूप में सम्मिलित करने के मोदी के प्रयासों को मिली सफलता को आज प्रमुखता से देखा जा सकता है।
कई अफ्रीकी देशों की प्रतिक्रिया अभूतपूर्व है, किसी ने कहा, ”भारत दुनिया की पांचवीं महाशक्ति है, इस कारण अफ्रीका में हिंदुस्तान के लिए पर्याप्त जगह है। हम यह भी जानते हैं कि इंडिया इतना शक्तिशाली है कि वो स्पेस पर पहुंच गया, हमें बस समन्वय करने की जरूरत है, भारत अब चीन से आगे है।” तो कोई यह बोला कि ‘जी-20 में शामिल किये जाने की हम लंबे समय से वकालत कर रहे थे, किंतु सफलता भारत के प्रधानमंत्री मोदी के कारण मिली। जी-20 में एयू की भागीदारी से अफ्रीकी महाद्वीप की आवाज को वैश्विक मंच पर अधिक प्रभावशाली तरीके से रखा जा सकेगा।’ इसके साथ यह भी प्रतिक्रिया सामने आई कि अफ्रीकी और अन्य विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों के रूप में, हमें गरीबी, असमानता और बेरोजगारी जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों के बीच अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की बाध्यता का सामना करना पड़ता है, लेकिन अब हमारे साथ ऐसा नहीं होगा, यह उम्मीद की जा सकती है।
देशभर में करीब 200 आयोजनों के साथ नरेंद्र मोदी की सरकार ने जी20 को पूरे भारत में दिलचस्पी के केंद्र में ला दिया। भारत ने सम्मेलन से सिलसिले में हुए आयोजनों का आर्थिक फायदा भी उठाया। देश के 200 शहरों में बैठकों के आयोजन का मतलब था, दुनिया भर के प्रतिनिधियों को उन शहरों तक ले जाना और उसके लिए न सिर्फ आयोजन और सुरक्षा की बल्कि रहने सहने की व्यवस्था करना। निश्चित तौर पर इससे पर्यटन की एक संरचना बनी जिसका फायदा भारत को मिलना शुरू भी हो गया है। वास्तव में यह भारत की विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोई छोटी उपलब्धि नहीं रही है। इस वैश्विक सम्मेलन जी20 में विभिन्न वैश्विक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर भारत के विचारों को व्यापक रूप से सराहा गया है, उसे स्वीकार्यता मिली है।
इसे मोदी का प्रभावी व्यक्तित्व माना जाएगा कि उन्हें सऊदी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘किंग अब्दुलअजीज सैश’, रूस के शीर्ष सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टले सम्मान’, फिलिस्तीन के ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन’ सम्मान, अफगानिस्तान के ‘अमीर अमानुल्ला खान अवॉर्ड’, यूएई के ‘जायेद मेडल’ और मालदीव के ‘निशान इज्जुद्दीन’ सम्मान जैसे सर्वश्रेष्ठ सम्मानों से सम्मानित किया गया है। शांति और विकास में उनके योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित सियोल शांति पुरस्कार दिया गया है।
वस्तुत: यह मोदी की कूटनीतिक क्षमता ही है कि ‘ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने के नरेन्द्र मोदी के आग्रह को संयुक्त राष्ट्र में अच्छी प्रतिक्रिया मिली। पहले दुनिया भर में कुल 177 राष्ट्रों ने एक साथ मिलकर 21 जून को संयुक्त राष्ट्र में ‘ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया और फिर उसके बाद से इसका हर साल सफलता से आयोजन पूरी दुनिया में एक साथ हो रहा है। निश्चित ही जो करिश्मा आज तक दुनिया का कोई देश नहीं कर पाया, वह भारत ने कर दिखाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर भारत की सफलता और साख के नए कीर्तिमान गढ़े हैं। उन्होंने जहां एक ओर अपनी सफल कूटनीति से अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और रूस सरीखे ताकतवर देशों को अपना मुरीद बनाया है वहीं विस्तारवादी चीन और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर करारी पटकनी दी है।
अंत में यही कि प्रधानमंत्री मोदी का एक माह में 85 देशों के नेताओं से मिलना अपने आप में बहुत मायने रखता है। राजनीतिज्ञों, राजनयिकों, अर्थशास्त्रियों और अन्य विशेषज्ञों भी यह स्वीकार्य करते हैं कि उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से भारत को वैश्विक मामलों में एक प्रमुख हितधारक बना दिया है। पीएम मोदी अपने आप में एक मजबूत नेता ही नहीं, बल्कि कहा जाए कि एक ऐसा व्यक्तित्व है, जो जिससे मिलते हैं उसे अपने सांचे में ढाल देते हैं, यही कारण है कि दुनिया भर में भारत की छवि आज शक्तिशाली देश के रूप में सामने आई है। उन्हीं के नेतृत्व में भारत की अर्थव्यवस्था जो विश्व में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है। उनके कार्यकाल में सबसे अधिक आबादी वाले इस देश से पश्चिम देश मित्रता के लिए आतुर हैं।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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