नई दिल्ली (New Delhi) । लोकसभा (Lok Sabha) और सभी राज्यों के विधानसभाओं (Assemblies) में महिलाओं के प्रतिनिधित्व (women’s representation) को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार (Central government) ने मंगलवार को संसद में ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ पेश किया। इस विधेयक के जरिए सरकार ने लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित किए जाने का प्रावधान किया है।
संसद में इस ऐतिहासिक विधेयक के पेश होने के बाद लोगों के जेहन में यह सवाल उठने लगा है कि यह कब और कैसे लागू होगा। क्या यदि संसद के दोनों से सदनों से यह कानून पारित हो जाता है तो यह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में लागू होगा। कानून के जानकार बता रहे हैं कि कानून बन जाने के बाद चुनाव में महिला आरक्षण को लागू करने के लिए परिसीमन और जनगणना की जरूरत है। इससे पहले इसे लागू नहीं किया जा सकता है।
संवैधानिक मामलों के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता ने बताया कि चुनाव में महिला आरक्षण को लागू करने के लिए परिसीमन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सीटों का परिसीमन करने के लिए जनगणना कराना भी अनिवार्य है। गुप्ता ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद-81 और 82 में संसद के दोनों सदनों की सीटें तय करने का प्रावधान है और पिछली बार 1971 में हुई जनगणना के आधार पर लोकसभा का 543 सीटों का निर्धारण हुआ था।
सीटों का निर्धारण प्रति 10 लाख की आबादी पर हुआ था। उन्होंने कहा कि 2026 में संसद की सीटों का परिसीमन होना है और इससे पहले जनगणना भी जरूरी है। अधिवक्ता गुप्ता ने कहा कि यदि जनगणना कराए बगैर सरकार परिसीमन करती है या इस तरह का कोई भी प्रयास संविधान के अनुरूप नहीं होगा। ऐसे में, इसके खिलाफ कई राज्यों के साथ-साथ लोग निजी तौर पर सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटा सकते हैं।
वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के जानकार संजय पारिख ने भी कहा कि महिला आरक्षण को लागू करने और कौन सी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होगा, इसके लिए परिसीमन कराना होगा। उन्होंने कहा कि परिसीमन कराए जाने की स्थिति में 2024 के लोकसभा चुनाव में, इसे लागू करना मुश्किल होगा।
क्या महिलाओं को लोकसभा और राज्यों के विधानसभा में 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए नारीशक्ति वंदन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद राज्यों की सहमति जरूरी है?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने बताया कि ‘भले ही यह संविधान संशोधन के जरिए यह विधेयक लाया गया है, बावजूद इसके, इसे सहमति के लिए राज्यों को भेजने की जरूरत नहीं है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि आर्थिक आधार पर ईडब्ल्यूएस आरक्षण भी केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन के जरिए ही लाया था, लेकिन इसे राज्यों की सहमति के बगैर ही देशभर में लागू किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता पारिख ने कहा कि जब एक बार संसद से पारित हो जाएगा तो उसे सभी राज्यों को लागू करना होगा।
हालांकि इस सवाल पर, अधिवक्ता गुप्ता ने कहा कि सरकार को इसे लागू करने के लिए आधे से अधिक राज्यों की सहमति की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार को इसे राज्यों के पास भेजना चाहिए क्योंकि महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण से विधानसभा प्रभावित हो रही है। जबकि ईडब्ल्यूएस विधेयक विधानसभा प्रभावित नहीं थी।
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