डेस्क: नाइजर पर सेना ने तो कब्जा कर लिया, सत्ता अपने हाथ में ले ली, ‘भ्रष्ट सरकार’ को ‘उखाड़ फेंका’ लेकिन खत्म होता अनाज सैन्य शासक के गले की फांस बन गई है. यहां दाल-चावल से लेकर खाना पकाने के तेल तक की कमी हो रही है. खुद एक सरकारी अधिकारी कहते हैं कि राजधानी नियामी के मार्केट में पूरा दिन गुजारने के बाद भी खाना पकाने के लिए उन्हें तेल नहीं मिला. इस महीने के आखिरी तक नाइजर में अनाज की किल्लत हो सकती है और एक बड़ी आबादी पर जान का खतरा मंडरा रहा है.
नाइजर में विद्रोही सैनिकों द्वारा सत्ता कब्जाने के बाद पश्चिम अफ्रीकी देशों ने वित्तीय लेनदेन पर रोक लगा दी, नाइजर के साथ अपनी सीमाएं बंद कर दीं, संवैधानिक व्यवस्था को फिर से बहाल करने की जद्दोजहद में बिजली आपूर्ति काट दी. तख्तापलट करने वाले जनरल अब्दुर्रहमान त्चियानी के नेतृत्व में नए नेता हार नहीं मान रहे और उन्हें बढ़ती कीमत चुकानी पड़ रही है. प्रतिबंध और अन्य मुल्कों से बढ़ रही तल्खी नाइजर की अर्थव्यवस्था का मानो गला घोंट रही है. अनाज की कीमतें बढ़ रही है और कमी भी हो रही है, जरूरी दवाइयां खत्म हो रही हैं.
बाहरी देशों से नहीं मिल रही नाइजर को मदद
अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ौम परिवार के साथ अपने घर में कैद हैं, जो सेना की एक टुकड़ी से घिरा हुआ है और बाहर से बिल्कुल ब्लॉक है. नियामी में, कुछ लोगों ने खुले तौर पर उनके हिरासत की निंदा की और कई ऐसे भी हैं जो अब सैन्य शासकों को ही अपनी सरकार मान बैठे हैं. जैसे-जैसे खाद्य भंडार और दवाइयों की किल्लत हो रही है, वैसे-वैसे पश्चिमी अफ्रीकी देशों और फ्रांस के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है.
तख्तापलट तक, फ्रेंच सैनिक नाइजर की सेना के साथ इस्लामी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहे थे. इस बीच सेना ने उनपर विद्रोहियों से निपटने में विफल रहने और हथियारबंद गुटों से जुड़े होने का आरोप लगाया. सेना के कब्जे के बाद नाइजर के लोगों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत खाने की है, जहां प्रतिबंधों की वजह से अनाज का मिलना मुश्किल है. पश्चिमी अफ्रीकी देश और अमेरिका समेत यूरोप से नाइजर को सैन्य और विकास के क्षेत्र में मदद मिल रहे थे, अनाज की सप्लाई की जाती थी लेकिन तख्तापलट के बाद इसपर रोक लगा दी गई है.
दस लाख आबादी को हो सकती है खाने की किल्लत
दुनिया के सबसे गरीब देशों में एक नाइजर के लिए सैन्य गतिरोध के घातक परिणाम हो सकते हैं. दुनिया में तेजी से बढ़ती आबादी वाले देशों में नाइजर भी एक है, जहां आबादी तेजी से बढ़ रही है. राष्ट्रपति बज़ौम के कार्यकाल में नाइजर की अर्थव्यवस्था 12 फीसदी के हिसाब से ग्रो करने का अनुमान था. अब सैन्य कब्जे के बाद अर्थव्यवस्था चौपट हो सकती है. प्रतिबंधों की वजह से नाइजर को जाने वाली अनाज की खेप भी सीमाई इलाकों में फंसे हैं.
नाइजर सीमा पर 7,000 टन से ज्यादा अनाज फंसा है. सैन्य शासकों ने इस बीच चेतावनी दी है कि अगर सीमाएं नहीं खोली जातीं तो ढाई करोड़ की आबादी में 40 फीसदी यानी दस लाख लोगों को गंभीर संकटों का सामना करना पड़ सकता है. अनाज की किल्लत के बीच यहां मावनीय कार्यक्रम भी प्रभावित हुए हैं. वैक्सीन और मेडिकल इक्वीपमेंट्स दर्जनों कंटेनरों में देश के बाहर फंसे हुए हैं. इस बीच दवाई की तस्करी भी बढ़ गई है और ब्लैक मार्केटिंग भी चल रही है. नियामी में फार्मासिस्टों का कहना है कि उनके पास अन्य उत्पादों के अलावा इंसुलिन, पेन किलर जैसी जरूरी दवाइयों की कमी हो रही है.
अगर सेना कर सकती है सबकुछ ठीक तो हम साथ!
सैन्य शासक ऐसे तो दावा करते हैं कि जनता उनके साथ है लेकिन इस दावे की पुष्टि के लिए उन्होंने कोई रास्ते नहीं बनाए हैं. मसलन, राजनीतिक गतिविधियां बंद हैं, सरकारी अधिकारी, मंत्री हिरासत में है, राष्ट्रपति के घर पर पहरा है. अब चूंकि, फ्रांस के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है, सैन्य शासक इसे अपने समर्थकों के तौर पर देख रहे हैं. यह कहीं न कहीं सच है कि राष्ट्रपति बजौम के कार्यकाल में भी गरीबी और फूड इंसिक्योरिटी की समस्या खत्म नहीं हुई. लोग कहते हैं कि अगर सेना समस्याओं को खत्म कर सकती है तो वे थोड़े समय के लिए परेशानी उठाने को तैयार हैं.. लेकिन बात अटकी है तो बस पेट पर.
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