• img-fluid

    दुनिया में गूंज रहा है स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

  • September 11, 2023

    – योगेश कुमार गोयल

    युवाओं के प्रेरणास्रोत तथा आदर्श व्यक्तित्व के धनी स्वामी विवेकानंद को उनके ओजस्वी विचारों और आदर्शों के कारण ही जाना जाता है। सही मायनों में वे आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि थे। विशेषकर भारतीय युवाओं के लिए तो भारतीय नवजागरण का अग्रदूत उनसे बढ़कर अन्य कोई नेता नहीं हो सकता। कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को जन्मे स्वामी विवेकानंद अपने 39 वर्ष के छोटे से जीवनकाल में समूचे विश्व को अपने अलौकिक विचारों की ऐसी बेशकीमती पूंजी सौंप गए, जो आने वाली अनेक शताब्दियों तक समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन करती रहेगी। वे एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिनकी ओजस्वी वाणी सदैव युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत बनी रही। उन्होंने देश को सुदृढ़ बनाने और विकास पथ पर अग्रसर करने के लिए सदैव युवा शक्ति पर भरोसा किया। दरअसल युवा वर्ग से उन्हें बहुत उम्मीदें थी।

    स्वामी विवेकानंद ने 11 सितम्बर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म पर अपने प्रेरणात्मक भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ के साथ की तो बहुत देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। अपने उस भाषण के जरिये उन्होंने दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाया। विदेशी मीडिया और वक्ताओं द्वारा भी स्वामीजी को धर्म संसद में सबसे महान व्यक्तित्व और ईश्वरीय शक्ति प्राप्त सबसे लोकप्रिय वक्ता बताया जाता रहा। स्वामी विवेकानंद की चर्चा जब भी होती है तो अमेरिका के शिकागो की धर्म संसद में वर्ष 1893 में दिए गए उनके उस ओजस्वी भाषण की चर्चा अवश्य होती है। उसी ओजस्वी भाषण को यादगार बनाए रखने और युवाओं को उस भाषण के जरिये ऊर्जावान बनाए रखने के लिए ही प्रतिवर्ष 11 सितम्बर का दिन ‘शिकागो वक्तृता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह स्वामी विवेकानंद का अद्भुत व्यक्तित्व ही था कि वे यदि मंच से गुजरते भी थे तो तालियों की गड़गड़ाहट होने लगती थी।


    युवाओं की अहम भावना को खत्म करने के उद्देश्य से ही स्वामी विवेकानंद ने अपने एक भाषण में कहा था कि यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ेगा। इसलिए यदि सफल होना चाहते हो तो सबसे पहले अपने अहम् का नाश कर डालो। उनका कहना था कि मेरी भविष्य की आशाएं युवाओं के चरित्र, बुद्धिमत्ता, दूसरों की सेवा के लिए सभी का त्याग और आज्ञाकारिता, खुद को और बड़े पैमाने पर देश के लिए अच्छा करने वालों पर निर्भर है।

    युवा शक्ति का आह्वान करते हुए स्वामी विवेकानंद ने अनेक मूलमंत्र दिए, जो देश के युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। उनका कहना था, ‘‘ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। वो हम ही हैं, जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है। मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी से मेरे कार्यकर्ता आ जाएंगे। डर से भागो मत, डर का सामना करो। यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं। जो भी कार्य करो, वह पूरी मेहनत के साथ करो। दिन में एक बार खुद से बात अवश्य करो, नहीं तो आप संसार के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति से मिलने से चूक जाओगे। उच्चतम आदर्श को चुनो और उस तक अपना जीवन जियो। सागर की तरफ देखो, न कि लहरों की तरफ। महसूस करो कि तुम महान हो और तुम महान बन जाओगे। काम, काम, काम, बस यही आपके जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। धन पाने के लिए कड़ा संघर्ष करो पर उससे लगाव मत करो। जो गरीबों में, कमजोरों में और बीमारियों में शिव को देखता है, वो सच में शिव की पूजा करता है। पृथ्वी का आनंद नायकों द्वारा लिया जाता है, यह अमोघ सत्य है, अतः एक नायक बनो और सदैव कहो कि मुझे कोई डर नहीं है। मृत्यु तो निश्चित है, एक अच्छे काम के लिए मरना सबसे बेहतर है। कुछ सच्चे, ईमानदार और ऊर्जावान पुरुष तथा महिलाएं एक वर्ष में एक सदी की भीड़ से अधिक कार्य कर सकते हैं। विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।’’

    युवा शक्ति का आह्वान करते हुए स्वामी जी ने एक मंत्र दिया था, ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ अर्थात् ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि मंजिल प्राप्त न हो जाए।’ ऐसा अनमोल मूलमंत्र देने वाले स्वामी विवेकानंद ने सदैव अपने क्रांतिकारी और तेजस्वी विचारों से युवा पीढ़ी को ऊर्जावान बनाने, उसमें नई शक्ति एवं चेतना जागृत करने और सकारात्कमता का संचार करने का कार्य किया। उनका कहना था कि अधिकांश लोग तो भेड़ों के झुंड के समान हैं। यदि आगे की एक भेड़ गड्ढे में गिरती है तो पीछे की सभी भेड़ें भी उसमें गिरती जाती हैं। इसी प्रकार समाज का मुखिया भी जब कोई बात कहता है तो दूसरे लोग भी उसका अनुकरण करने लगते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि वे कर क्या रहे हैं। जब मनुष्य को ये सांसारिक बातें निस्सार प्रतीत होने लगती हैं, तब वह सोचता है कि वह अपनी वृत्ति के हाथों का खिलौना बन चुका है और उस समय वह चाहता है कि खिलौना बनकर वह उसके बहकावे में न आए क्योंकि यह तो गुलामी है। स्वामी जी ने एक मई 1897 को कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन तथा नौ दिसम्बर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। इसी रामकृष्ण मठ में चार जुलाई, 1902 को ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर वो चिरनिद्रा में लीन हो गए।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

    Share:

    Eng vs NZ: इंग्लैंड ने दूसरे ODI में न्यूजीलैंड को 79 रनों से हराया, सीरीज में की बराबरी

    Mon Sep 11 , 2023
    साउथम्पटन (Southampton)। इंग्लैंड क्रिकेट टीम (England cricket team) ने दूसरे वनडे मैच (second ODI match) में न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम (New Zealand cricket team) को 79 रन से हराकर 4 मैचों की सीरीज में फिलहाल 1-1 से बराबरी की है। बारिश के खलल के चलते यह मैच 34-34 ओवर का खेला गया, जिसमें इंग्लैंड ने पहले […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    सोमवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved