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    कान्हा की नगरी में मटकी फोड़ के आयोजन कम हुए तो कृष्णा ग्रुप ने कमान संभाली

  • September 07, 2023

    • 17 वर्षों से शहीद पार्क पर होने वाला मटकी फोड़ पहचान बन गया 1 लाख रुपए का पुरस्कार

    उज्जैन। एक समय था जब कान्हा की नगरी उज्जैन में गली-गली में जन्माष्टमी पर मटकी फोड़ कार्यक्रम आयोजित होते थे। ऊंचाई पर मटकी बांधने की होड़ लगी रहती थी तो उतनी ही होड़ सबसे पहले मटकी फोडऩे की ग्वालों की टोलियों में रहती थी, लेकिन समय के साथ-साथ इस परंपरा को विराम सा लगने लगा। तब कृष्णा ग्रुप आगे आया और 17 साल पहले शहीद पार्क पर भव्य मटकी फोड़ कार्यक्रम आरंभ किया गया। आज यहां हजारों की संख्या में लोग देर रात तक डटे रहते हैं और शहर की सबसे ऊंची मटकी को फूटते देखकर ही घर जाते हैं। कृष्णा ग्रुप के संयोजक मुकेश यादव ने बताया कि कार्यक्रम इस वर्ष भी धूमधाम से आयोजित किया जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को भव्य रूप में मानने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस वर्ष भी मटकी फोड़ कार्यक्रम होगा। शहीद पार्क पर सांय 7 बजे मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव की उपस्थिति में रतलाम के काठा बंधुओं की भजन संध्या से कार्यक्रम की शुरुआत होगी। रात्रि 12 बजे मटकी फोड़ का कार्यक्रम किया जाएगा जिसमें इनाम की राशि 1 लाख रुपये होगी। उन्होंने नगर की जनता से आग्रह किया कि इस आयोजन में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर इसे सफल बनावें।



    परंपरा फीकी पड़ी तो बजरंगी आगे आए
    संयोजक यादव बजरंग दल के जिला प्रमुख रह चुके हैं। उन्हें लगातार लगता था कि शहर में मटकी फोड़ के कार्यक्रम धीरे-धीरे कम हो गए हैं। पहले हर गली में मटकी बांधी जाती थी और आसपास के भवनों पर रहने वाले लोग बाल्टियों से पानी फेंकते थे। नीचे चिकनी मिट्टी पर खड़े ग्वालों की टोलियां ऊपर से पानी की बौछार के कारण बार-बार गिरती थीं । इससे मजा और दोगुना हो जाता था, लेकिन आधुनिकता के परिवेश में यह परंपरा जब घटने लगी तो उन्होंने बजरंग दल की अपनी टोली के साथ चर्चा की। आखिरकार शहीद पार्क पर आयोजन करना तय हुआ। प्रतिवर्ष भजन संध्या भी होती है। कुछ वर्ष पहले मुंबई से 50 गोपियों की टोली भी उन्होंने बुलाई थीं । सबसे ऊंची मटकी को उन गोपियों की टोली ने पहले प्रयास में ही तोड़ दिया। उज्जैन में यह पहला अवसर था जब पुरुषों की जगह महिलाएं मटकी फोड़ रही थीं । उनके अनुसार मंत्री डॉ मोहन यादव समिति के संरक्षक हैं और उनकी प्रेरणा से प्रतिवर्ष इस परंपरा को आगे बढ़ाया जा रहा है।

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