नई दिल्ली (New Delhi) । इसी महीने 18 सितंबर से शुरू होने वाले संसद (parliament) के विशेष सत्र (special session) को लेकर घमासान मचा हुआ है। इस संबंध में कांग्रेस संसदीय दल (congress parliamentary party) की प्रमुख सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Modi) को पत्र लिखा। उन्होंने पत्र में कहा, “मैं इस बात का उल्लेख करना चाहूंगी कि संसद का विशेष सत्र राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श किए बिना बुला लिया गया। इस सत्र के एजेंडे के बारे में हमें जानकारी नहीं है।’’ अब सोनिया गांधी के पत्र के जवाब में संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि वह संसद के कामकाज का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रही हैं।
क्या बोली सरकार?
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री ने सोनिया गांधी पर ‘लोकतंत्र के मंदिर’ के कामकाज का भी राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हुए कहा कि स्थापित प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद ही 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र आहूत किया गया है। सोनिया गांधी के पत्र का जवाब उन्हें पत्र लिखकर देते हुए जोशी ने कहा, ‘‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप संसद, हमारे लोकतंत्र के मंदिर के कामकाज का भी राजनीतिकरण करने और जहां कोई विवाद नहीं है वहां अनावश्यक विवाद उत्पन्न करने का प्रयास कर रही हैं।’’ उन्होंने संसद सत्र बुलाए जाने की प्रक्रिया का हवाला देते हुए कहा कि ‘पूर्ण रूप से स्थापित प्रक्रिया’ का पालन करते हुए ही संसदीय कार्य संबंधी मंत्रिमंडल समिति के अनुमोदन के पश्चात राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्म द्वारा 18 सितंबर से आरंभ होने वाला सत्र बुलाया गया है।
मंत्री ने कहा, ‘‘शायद आपका परंपराओं की ओर ध्यान नहीं है। संसद सत्र बुलाने से पहले ना कभी राजनीतिक दलों से चर्चा की जाती है और ना कभी मुद्दों पर चर्चा की जाती है।’’ उन्होंने गांधी को याद दिलाया कि सत्र आरंभ होने के पहले सभी दलों के नेताओं की बैठक होती है जिसमें संसद में उठने वाले मुद्दों और कामकाज पर चर्चा होती है। जोशी ने कहा कि वैसे तो मौजूदा सरकार ‘किसी भी मुद्दे’ पर हमेशा चर्चा करने के लिए तैयार रहती है लेकिन जिन मुद्दों का उल्लेख गांधी ने अपने पत्र में किया है, उन सभी मुद्दों को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मानसून सत्र में उठाया गया था।
तो, संसद कैसे और कब बुलाई जाती है?
सरकार का कहना है कि विशेष संसद सत्र बुलाने से पहले पार्टियों से परामर्श करना जरूरी नहीं है। संवैधानिक नियमों के मुताबिक भी संसद का सत्र बुलाने की शक्ति सरकार के पास होती है। यह निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया जाता है, और राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है। राष्ट्रपति के नाम पर सांसदों को एक सत्र के लिए बुलाया जाता है। तो यह स्पष्ट है कि सत्ताधारी पार्टी को किसी दूसरी पार्टी से परामर्श लेना आवश्यक नहीं है।
कब-कब होते हैं संसद सत्र?
भारत में कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर नहीं है। परंपरा के अनुसार, संसद की बैठक एक वर्ष में तीन सत्रों के लिए होती है। सबसे लंबा, बजट सत्र, जनवरी के अंत में शुरू होता है, और अप्रैल के अंत या मई के पहले सप्ताह तक समाप्त होता है। सत्र में मध्यावकाश होता है ताकि संसदीय समितियां बजटीय प्रस्तावों पर चर्चा कर सकें।
दूसरा सत्र तीन सप्ताह का मॉनसून सत्र है, जो आमतौर पर जुलाई में शुरू होता है और अगस्त में समाप्त होता है। संसदीय वर्ष का समापन तीन सप्ताह लंबे शीतकालीन सत्र के साथ होता है, जो नवंबर से दिसंबर तक आयोजित होता है। यानी संसद का तीसरा सत्र शीतकालीन सत्र कहलाता है। 1955 में लोकसभा की सामान्य प्रयोजन समिति द्वारा बैठकों की एक सामान्य योजना की सिफारिश की गई थी। इसे जवाहरलाल नेहरू सरकार ने स्वीकार कर लिया था, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।
संविधान क्या कहता है?
संसद को बुलाना संविधान के अनुच्छेद 85 में निर्दिष्ट है। कई अन्य अनुच्छेदों की तरह, पहले यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधान पर आधारित था। अधिनियम के मुताबिक केंद्रीय विधायिका को वर्ष में कम से कम एक बार बुलाया जाना चाहिए, और दो सत्रों के बीच 12 महीने से अधिक का समय नहीं होना चाहिए। हालांकि, डॉ. बी आर अम्बेडकर ने कहा कि उस प्रावधान का उद्देश्य केवल राजस्व इकट्ठा करने के लिए विधायिका को बुलाना था, और साल में एक बार बैठक का उद्देश्य विधायिका द्वारा सरकार की जांच से बचना था। बाद में जब अम्बेडकर ने इसके प्रोविजन (प्रावधान) को ड्राफ्ट किया तो उन्होंने सत्रों के बीच के अंतर को छह महीने तक कम कर दिया, और निर्दिष्ट किया कि संसद को वर्ष में कम से कम दो बार बुलाना चाहिए। उन्होंने संविधान सभा की बहस के दौरान कहा था कि विधायिका को खंड में दिए गए प्रावधान से अधिक बार बुलाए जाने से नहीं रोका जा रहा है। उन्होंने कहा, “असल में, अगर मैं कहूं तो मेरा डर यह है कि संसद के सत्र इतने बार-बार और इतने लंबे होंगे कि विधायिका के सदस्य शायद स्वयं ही सत्रों से थक जाएंगे।”
बिहार के प्रोफेसर के टी शाह की राय थी कि बीच-बीच में अंतराल के साथ संसद की बैठक पूरे साल चलनी चाहिए। प्रोफेसर शाह यह भी चाहते थे कि दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को कुछ परिस्थितियों में संसद बुलाने का अधिकार दिया जाए। इन सुझावों को स्वीकार नहीं किया गया। पिछले कुछ वर्षों में संसद की बैठकों में कमी आई है। संसद के पहले दो दशकों के दौरान, लोकसभा की बैठकें वर्ष में औसतन 120 दिन से कुछ अधिक होती थीं। पिछले दशक में यह घटकर लगभग 70 दिन रह गया है।
संसद के विशेष सत्र का क्या प्रावधन है?
केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। विशेष सत्र यानी नियमित रूप से निर्धारित बजट, मॉनसून और शीतकालीन सत्र के अलावा। यह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा आयोजित दूसरा विशेष सत्र होगा। पिछली बार संसद ने इस तरह का विशेष सत्र 2017 में आयोजित किया था। लोकसभा और राज्यसभा दोनों की आधी रात की बैठक में, सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया था। केंद्र ने इसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार बताया था। यह पहली बार था कि कोई विधायी अधिनियम के लिए विशेष सत्र मध्यरात्रि में आयोजित किया गया था। इससे पहले विशेष सत्र ऐतिहासिक महत्व की घटनाओं को मनाने के लिए रात में आयोजित किए गए थे। भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए पहले 15 अगस्त 1997 को मध्यरात्रि सत्र आयोजित किए गए थे। 9 अगस्त 1992 को भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर भी रात में सत्र आयोजित किया था।
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