नई दिल्ली (New Delhi) । जलवायु खतरों से जूझ रही पूरी दुनिया की निगाह भारत (India) की अध्यक्षता में हो रहे G-20 शिखर सम्मेलन (G-20 summit) पर लगी हुई। इसमें जलवायु खतरों (climate threat) से निपटने का एजेंडा वैसे तो शीर्ष पर है लेकिन इसके लिए जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) के इस्तेमाल को सीमित करने के मुद्दे पर सहमति बनने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, जी-20 शिखर सम्मलेलन में जीवाश्म ईंधन के मुद्दे पर विकसित देशों और विकासशील तथा तेल उत्पादक देशों के बीच स्पष्ट रूप से मतभेद उभर सकते हैं। जहां विकसित देश जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से सीमित करने के पक्ष में हैं और वे जी-20 के मंच से इसका ऐलान करने के पक्ष में भी हैं।
वहीं, जीवाश्म ईधन उत्पादक देश और विकासशील देश इससे पूरी तरह से सहमत नहीं हैं। तेल उत्पादक देशों के जहां सीधे अपने हित प्रभावित होते हैं। साथ ही विकासशील देशों की चिंताएं अपनी अन्य चुनौतियां हैं। उनके पास इसके लिए अपेक्षित निवेश की भी कमी है।
शिखर सम्मेलन में जीवाश्म ईधन उत्पादक और विकासशील देश जिनमें रूस, सऊदी अरब, चीन, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और भारत इस बात पर जोर दे सकते हैं कि जीवाश्म ईधन को कम करने के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों के जरिये कार्बन कैप्चर पर भी जोर दिया जाए।
क्या है कार्बन कैप्चर
यह एक ऐसी विधि है जिसमें उद्योगों से निकलने वाले कार्बन को एकत्र कर उसका सुरक्षित भंडारण किया जा सकता है। इस प्रकार उसे वायुमंडल में जाने से रोक दिया जाता है। हालांकि विकसित देश कार्बन कैप्चर को ज्यादा तरजीह देने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि इससे भंडार के साथ-साथ उसके निपटान से जुड़ी अन्य चुनौतियां पैदा होंगी।
जुलाई में सहमति नहीं बन सकी
ऊर्जा को लेकर जी-20 देशों के मंत्री समूहों की बैठक जुलाई में हो चुकी है। उसमें भी जीवाश्म ईंधन को हतोत्साहित करने के मुद्दे पर कोई सहमति नहीं बन पाई थी। इसी प्रकार एक मुद्दा 2030 तक हरित ऊर्जा के उत्पादन को तीन गुना तक करना भी है, लेकिन जीवाश्म ईंधन उत्पादक देश इसके लिए भी तैयार नहीं हैं।
2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य
बता दें कि ज्यादातर देशों ने 2050 तक नेट जीरो के लक्ष्य रखा है, लेकिन यदि हरित ऊर्जा उत्पादन में तेजी नहीं आई और जीवाश्म ईंधन को हतोत्साहित नहीं किया गया तो फिर इसे हासिल करने में मुश्किल होगी। जी-20 देश दुनिया की 80 फीसदी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए इसमें बनने वाली सहमति पूरी दुनिया के लिए निर्णायक साबित होती है।
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