भोपाल। मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने है। दोनों पार्टियों के बीच हमेशा सीधा मुकाबला होता रहा है। लेकिन इसबार विधानसभा चुनाव में दूसरी या कहें वोट के हिसाब छोटी पार्टियां भी अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में जुटी हैं। भले ही समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ वाली इंडिया गठबंधन का हिस्सा हो लेकिन वो भी मध्य प्रदेश में अलग से चुनावी मैदान में उतर रही है। वहीं बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो वो भी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या एसपी-बीएसपी के दखलंदाजी से भाजपा और कांग्रेस के वोट पर कोई असर पड़ेगा? क्या ये दोनों पार्टियां कांग्रेस और भाजपा का वोट काटने का काम करेंगी?
बसपा ने किस सीट पर किसे दिया मौका
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा के मामले में बसपा ने सबसे पहले बाजी मारी है। बीएसपी ने उत्तर प्रदेश से सटे 7 विधानसभा क्षेत्रों के लिए प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया है। इसमें चंबल से एक, बुंदेलखंडे से दो और विंध्य क्षेत्र की चार सीटें शामिल हैं। उम्मीदवारों की लिस्ट में एक दलित वर्ग से, तीन ब्राह्मण, दो पटेल और एक ठाकुर वर्ग से हैं। बीएसपी ने जिन सात जनप्रतिनिधियों को उम्मीदवार बनाया है, उसमें पहला नाम रीवा जिले की सिरमौर सीट से पुलिस विभाग से रिटायर डीएसपी विष्णुदेव पांडेय का है। दूसरा नाम रीवा जिले की सेमरिया विधानसभा सीट से पंकज सिंह पटेल का है। सतना जिले की रैगांव सीट से देवराज अहिरवार, खजुराहो की राजनगर विधानसभा सीट से रामराजा पाठक और निवाड़ी विधानसभा सीट से अवधेश प्रताप सिंह राठौर पर पार्टी ने विश्वास जताया है। वहीं मुरैना जिले की दिमनी सीट से बलवीर सिंह डंडौतिया और सतना जिले की रामपुर बघेलान सीट से रिटायर्ड तहसीलदार मणिराज सिंह पटेल प्रत्याशी बनाए गए हैं।
समाजवादी पार्टी का प्रभाव
वहीं समाजवादी पार्टी की भूमिका की बात करें, तो उत्तरप्रदेश से लगे बुंदेलखंड इलाके में इसका कुछ हद तक प्रभाव है। 2018 के विधानसभा चुनाव में सपा मध्यप्रदेश में 1 सीट जीतने में सफल रही थी। पूरे प्रदेश में उसने 52 प्रत्याशी उतारे थे। उसे 1.3 प्रतिशत वोट शेयर प्राप्त हुआ था।इससे पहले, 2003 के विधानसभा चुनाव में एसपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा था। तब 161 सीटों पर एसपी ने चुनाव लड़ा था और उसके 7 प्रत्याशियों की जीत हुई थी। उस समय पार्टी को प्रदेश में 5 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे।
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