मथुरा (Mathura)। वृंदावन के बंदरों में टीबी की बीमारी (TB disease in monkeys of Vrindavan) पनप रही है, जांच रिपोर्ट (Report) में इनके फेफड़ों में संक्रमण मिला है। इसका खुलासा आईवीआरआई, (IVRI) बरेली के वैज्ञानिकों की यहां के बंदरों पर की गई रिसर्च में हुआ है। इसका कारण टीबी ग्रसित बीमार लोगों के खाकर फेंके गए फल खाने और, दूषित भोजन खाना बताया गया है। साथ ही बंदरों के व्यवहार में खूंखारता भी पाई गई है, इसके लिए उन्हें पर्याप्त मात्रा में भोजन न मिलने की बात कही गई है।
वृंदावन के बंदरों की समस्या से यहां देश-विदेश से आने वाले करोड़ों लोग वाकिफ हैं। इनको पकड़ने की कई बार कवायद की जा चुकी है। बीते 15 अगस्त को वृंदावन में श्री बांकेबिहारी मंदिर से महज 200 मीटर की दूरी पर कुछ खूंखार बंदरों ने एक जर्जर मकान के छज्जे और मुंडेर को गिरा दिया था, जिसके मलबे में दबने से पांच श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। करीब पांच माह पूर्व नगर निगम ने इन बंदरों को पकड़कर वन्य क्षेत्रों में छोड़ने का प्लान तैयार किया था। वन विभाग से इस संबंध में वार्ता हुई तो विभाग ने बंदरों के स्वास्थ्य परीक्षण की सलाह दी, वह इसलिए कि यदि आबादी क्षेत्र में रहने के दौरान इन्हें अगर कोई बीमारी लगी हो तो वह अन्य वन्य जीवों में न फैल सके।
आईवीआरआई के वैज्ञानिकों ने कहा है कि बंदरों में टीबी यानी क्षय रोग होने को रिवर्स जूनोसिस कहते हैं।
दरअसल, जानवरों से इंसान में होने वाले रोग को जूनोसिस बीमारी कहते हैं। वहीं, जब इंसान से जानवरों को कोई बीमारी होती है तो उसे रिवर्स जूनोसिस कहा जाता है। टीबी ग्रसित लोगों द्वारा खाकर फेंके गए फल, भोजन आदि खाने से बंदरों को यह बीमारी हुई। बीमारी और भूख के कारण बंदरों का स्वभाव भी आक्रामक हो रहा है।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद वन विभाग को अन्य वन्य जीवों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता होने लगी है। दरअसल, वृंदावन में बंदरों को पकड़कर वन्य क्षेत्रों में छोड़े जाने का अभियान चल रहा है। चूंकि वन्य क्षेत्र में पहले से अन्य जीव रहते हैं। ऐसे में इन बंदरों से उनमें भी बीमारी फैलने की आशंका है। डीएफओ रजनीकांत मित्तल का कहना है कि आईवीआरआई की रिपोर्ट के बाद देखा जा रहा है कि अन्य वन्य जीवों को इन टीबी ग्रसित बंदरों से कैसे बचाया जाए।
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