भोपाल। मप्र में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस चुनाव के नतीजे लोकसभा चुनाव की आगे की कहानी तय करेंगे। भाजपा को इस राज्य को बनाए रखने के लिए कड़ी लड़ाई का सामना करना पड़ेगा, जहां वह लगभग 20 वर्षों से सत्ता में है। राज्य में चुनावी विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा के लिए चुनौती के केंद्र में 1980 के बाद से विधानसभा चुनावों में उसका उतार-चढ़ाव वाला वोट शेयर है, जो बढ़ नहीं रहा है, जबकि लोकसभा चुनावों में वोट शेयर 1984 के बाद से लगातार बढ़ रहा है।
लोकसभा चुनाव के वोट शेयर में हालिया उछाल नरेंद्र मोदी के कारण होने की संभावना है, जबकि लगभग दो दशकों के लगातार शासन के बाद मतदाताओं की रूझान कम होना भी एक बाधा है। साल (दिसंबर 2018 से मार्च 2020) को छोड़कर, पार्टी दिसंबर 2003 से मध्य प्रदेश में सत्ता में है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 2008 से सत्ता में हैं। भाजपा मप्र में सत्ता बरकरार रखने की चुनौती को जिस गंभीरता से ले रही है, वह इस सप्ताह के शुरू में उन 39 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करने के निर्णय को दिखाता है। जहां उसे लगता है कि वह कमजोर स्थिति में हैं। ऐसे में प्रत्याशी अपने क्षेत्र में कड़ी मेहनत कर जीत को हासिल कर सकें। पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में खंडित जनादेश आया। 230 सदस्यीय सदन में 109 सीटों के साथ भाजपा बहुमत के आंकड़े 116 से पीछे रह गई। कांग्रेस ने अपने 114 विधायकों और निर्दलियों के समर्थन के साथ सरकार बनाई। पार्टी के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने सीएम पद संभाला, लेकिन यह सरकार अल्पकालिक थी, केवल 15 महीने तक चली और ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ 21 विधायकों बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गई। जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान सूबे के सीएम बने।
क्या कहते हैं आंकड़े
ऐसे में बीजेपी शासित सूबे मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए क्या चुनौतियां हैं। जहां वो कमोबेश दो दशकों से निर्बाध रूप से चल रही है? 1980 में अपनी स्थापना के बाद से भाजपा ने मध्य प्रदेश में नौ विधानसभा चुनाव लड़े हैं (पांच अविभाजित मध्य प्रदेश में और चार 2000 में राज्य के विभाजन के बाद)। इसमें से बीजेपी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1990 में था, जब उसने 312 सीटों पर चुनाव लड़ा और उनमें से 220 पर जीत हासिल की। जिसका वोट शेयर 46.5 प्रतिशत रहा। सीटों के मामले में इसका सबसे खराब प्रदर्शन 2018 में था, लेकिन वोट शेयर 41.33 प्रतिशत रहा। 2013 में यह 45.19 प्रतिशत था,जबकि 2020 में कमल नाथ की सरकार गिरने के बाद भाजपा सत्ता में लौटने में कामयाब रही, लेकिन 2018 के आंकड़े सवाल खड़े करते हैं। 1980 से 2018 के बीच एमपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी के वोट शेयर के विश्लेषण से पता चलता है कि पार्टी ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा है, वहां उसका वोट शेयर 31.38 प्रतिशत से 46.5 प्रतिशत के बीच रहा है।
लोकसभा चुनावों की अलग कहानी
लोकसभा चुनावों में यह एक पूरी तरह से अलग कहानी है. जहां पार्टी का वोट शेयर 1984 के बाद से लगातार बढ़ रहा है। 1990 के दशक के मध्य से वोट शेयर के विश्लेषण से एक अलग प्रवृत्ति उभरती है, जो बताती है कि मध्य प्रदेश में भाजपा को राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में अधिक वोट शेयर मिलता रहा है। उदाहरण के तौर पर राज्य में बीजेपी के वोट शेयर पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि 1993 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 38.82 प्रतिशत वोट मिले थे। 1996 में अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी को राज्य में 41.32 प्रतिशत वोट मिले। 2018 के विधानसभा चुनावों में 41.33 प्रतिशत वोट शेयर के बाद पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में अपना ग्राफ ऊंचा किया और कुछ ही महीनों बाद वोट शेयर बढ़कर 58.23 प्रतिशत हो गया। यह 2014 के 54.76 प्रतिशत वोट शेयर से भी अधिक था। भाजपा ने 2019 में 2.14 करोड़ वोट हासिल किए, जो 2018 के विधानसभा चुनावों में उसे मिले कुल वोटों – 1.56 करोड़ से अधिक था।
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