नई दिल्ली (New Delhi)। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार मौजूदा मानसून सीजन (monsoon season) पिछले 11 दिनों से लगातार ठहराव पर है। यह और अधिक सूखे दिनों का संकेत (sign of dry days) दे रहा है। ग्यारह दिनों तक बारिश (no rain for 11 days) न होना अच्छा संकेत नहीं है। अल नीनो का प्रभाव (effect of el nino) जो अभी चरम पर है, मौजूदा ठहराव की स्थिति में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार मानसून ब्रेक तब होता है जब मानसून ट्रफ उत्तर की ओर शिफ्ट हो जाता है। यह स्थिति हिमालय की तलहटी और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में वर्षा को बढ़ाती है, जबकि देश के बाकी हिस्सों में कमजोर कर देती है। विशेष रूप से मुख्य मानसून क्षेत्र या पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल और ओडिशा तक फैला क्षेत्र इसके दायरे में आता है। सक्रिय चरण से मानसून का विराम काफी सामान्य है।
वर्तमान स्थिति के बारे में चिंताजनक बात यह है कि यह ठहराव 1951 के बाद सबसे लंबे ठहराव की ओर इशारा कर रहा है। आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि पिछले 73 सालों में कुल 10 ऐसे मौके आए हैं जब ठहराव का दौर 10 दिनों से ज्यादा रहा है। 1972 में लगातार 17 दिनों तक वर्षा नहीं हुई थी। 1966 और 2002 में ठहराव का दौर कई मौकों पर 10 दिनों तक रहा था। विशेषज्ञ के अनुसार मानसून अभी भी उपमहाद्वीप से वापस जाने में डेढ़ महीने दूर है लेकिन यह देखना बाकी है कि इस सीजन में देशभर में बारिश का अनुपात और खरीफ उत्पादन कैसा रहता है।
268 जिलों में हुई सबसे कम बारिश
भारत मौसम विज्ञान विभाग के वर्षा वर्गीकरण के अनुसार इस सीजन में मानसून दीर्घकालिक औसत की तुलना में छह प्रतिशत कम लेकिन ‘सामान्य’ रहा है। लेकिन यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इसका वितरण विषम हो गया है। 717 में से कुल 268 जिलों में बारिश कम से लेकर बहुत कम तक हुई है। अब तक के मानसूनी सीजन में बारिश में काफी विसंगति नजर आई। उत्तराखंड और हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में बारिश ने भारी तबाही मचाई तो पश्चिमी राजस्थान और सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र भी तरबतर रहे। वहीं, केरल, गंगीय प.बंगाल, बिहार और झारखंड जैसे आर्द्र क्षेत्र कम वर्षा के कारण शुष्क रहे।
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