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    रूस ने भी चांद पर भेजा अंतरिक्ष यान, लांच हुआ लूना-25, जानिए चंद्रयान-3 से कितना है अलग

  • August 12, 2023

    नई दिल्ली। भारत (India) के बाद रूस ने भी चांद पर अपना अंतरिक्ष यान (Space ship) भेज दिया है। रूस ने 47 साल बाद शुक्रवार को चांद पर अपना पहला अंतरिक्ष यान (first space shuttle) भेजा। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रासकास्माज (Russian space agency Raskasmaz) के मुताबिक, लूना-25 मून लैंडर 21 या 22 अगस्त को चांद की कक्षा में प्रवेश कर सकता है। इस चंद्रयान मिशन के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रूसी अंतरिक्ष एजेंसी को बधाई दी है। एजेंसी ने यह भी उम्मीद जताई कि चंद्रयान-3 और लूना-25 दोनों मिशन अपने लक्ष्य हासिल करेंगे। इस बीच हमें जानना जरूरी है कि आखिर लूना-25 क्या है? मिशन के उद्देश्य क्या हैं? यह चंद्रमा की सतह पर कब पहुंचेगा? रूस का लूना-25 भारत के चंद्रयान-3 से क्यों अलग है? आइए जानते हैं…

    रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रासकास्माज ने शुक्रवार को लूना- 25 अंतरिक्ष यान लांच किया। इसे मास्को से लगभग 3,450 मील (5,550 किमी) पूर्व में स्थित वोस्तोचनी कोस्मोड्रोम से स्थानीय समायानुसार सुबह आठ बजकर 10 मिनट पर लॉन्च किया गया। लूना- 25 को सोयुज 2.1 बी रॉकेट में भेजा गया है। इसे लूना- ग्लोब मिशन का नाम दिया गया है। किट की लंबाई करीब 46.3 मीटर है और इसका व्यास 10.3 मीटर है। इसके बाद 313 टन वजनी रॉकेट 7-10 दिनों तक चांद का चक्कर लगाएगा।

    उम्मीद जताई जा रही है कि लूना- 25 21 या 22 अगस्त को यह चांद की सतह पर पहुंच जाएगा। वहीं, चंद्रयान-3 भारत ने 14 जुलाई को लॉन्च किया था, जो 23 अगस्त को चांद पर लैंड करेगा। अगर इसने लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया तो भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव या साउथ पोल पर उतरने वाला रूस के बाद दूसरा देश होगा। लूना- 25 और चंद्रयान-3 के चांद पर उतरने का समय करीब-करीब एक ही होगा। लूना कुछ घंटे पहले चांद की सतह पर लैंड करेगा। रूस इससे पहले 1976 में चांद पर लूना-24 उतार चुका है। विश्व में अबतक जितने भी चांद मिशन हुए हैं, वे चांद के भूमध्य रेखा पर पहुंचे हैं। लूना-25 सफल हुआ तो ऐसा पहली बार होगा कि कोई देश चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करे।

    रूस की योजना लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की है। जानकारों का कहना है कि चांद के इसी ध्रुव पर पानी मिलने की संभावना है। दरअसल, 2018 में नासा ने कहा था कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी है। लूना- 25 में रोवर और लैंडर हैं। इसका लैंडर करीब 800 किलो का है। लूना- 25 सॉफ्ट लैंडिंग की प्रैक्टिस करेगा। लैंडर में एक खास यंत्र है, जो सतह की छह इंच की खुदाई करेगा। लूना- 25 पत्थर और मिट्टी के सैंपल जमा करेगा। इससे जमे हुए पानी की खोज हो सकती है। रूस का मकसद है कि भविष्य में जब भी इंसान चांद पर अपना बेस बनाए तो उसके लिए पानी की समस्या न हो।


    इस बीच, रासकास्माज ने एक बयान में कहा कि लूना-25 और चंद्रयान-3 दोनों मिशन एक-दूसरे के रास्ते में नहीं आएंगे। हम किसी देश या स्पेस एजेंसी के साथ प्रतियोगिता नहीं कर रहे हैं। दोनों मिशन में लैंडिंग के लिए अलग- अलग क्षेत्रों की योजना है। वहीं, इसरो ने कहा कि लूना 25 के सफल लॉन्च पर रासकास्माज को हमारी तरफ से बधाई। यह हमारी अंतरिक्ष यात्रा में एक और अद्भुत पड़ाव है। चंद्रयान-3 और लूना 25 मिशन को अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए शुभकामनाएं।

    चंद्रयान-3 की कुल लागत 615 करोड़ रुपये से कम है, जो एक सामान्य हॉलीवुड फिल्म के बजट से काफी कम है। इस बीच, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रासकास्माज ने आधिकारिक तौर पर अपने लूना-25 मिशन के कुल बजट का खुलासा नहीं किया है। यूं तो लूना-25 और भारत के चंद्रयान-3 के लॉन्चिंग तिथियों में करीब एक महीने का फर्क है लेकिन लैंडिंग लगभग एक ही समय पर होने वाली है। इससे लोगों के मन जिज्ञासा हो रही है कि रूसी रॉकेट केवल छह से सात दिनों में चंद्रमा तक 3.84 लाख किमी की दूरी कैसे पार कर सका और इसरो को पीछे छोड़ दिया। जबकि इसरो को ऐसा करने में एक महीने का समय लगा था। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वैश्विक अंतरिक्ष शक्तियों रूस, चीन और अमेरिका के विपरीत, भारत चंद्रमा की सीधी यात्रा की योजना नहीं बनाता है। इसके बजाय, यह चरण में चलता है, जो 40 दिनों तक चलता है।

    चंद्रयान-3 करीब 40 दिन बाद चंद्रमा की सतह पर उतरेगा जिसके पीछे कई बारीकियां हैं। दरअसल, चंद्रयान में ईंधन की मात्रा सीमित है और अगर हम इसे सीधे चंद्रमा पर भेजेंगे तो सारा ईंधन खर्च हो जाएगा। इसके बजाय इसे पृथ्वी के चारों ओर घूमने के लिए छोड़ा जाता है। इस दौरान ईंधन का इस्तेमाल बहुत कम होता है। आगे की प्रक्रिया को समझें तो यान को पृथ्वी की गति और गुरुत्वाकर्षण की मदद से आगे फेंका जाता है। ठीक वैसे ही जैसे जब हम चलती बस से उतरते हैं तो आगे की दिशा में दौड़ते हैं। पृथ्वी जिस गति से अपनी धुरी पर घूमती है उसका लाभ चंद्रयान-3 को मिल रहा है। धीरे-धीरे मिशन अपनी कक्षा बदल रहा है। इस तरह से देखें तो पांच कक्षाएं बदलने में वक्त लगेगा।

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