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    Indian Freedom Fighters- क्रांतिकारी विचारों के जनक, जानिए बिपिन चंद्र पाल की जीवनी

  • August 12, 2023

    नई दिल्‍ली (New Dehli) । 19वीं सदी (century) के अंत और 20वीं सदी के शुरु में भारत (India) में आजादी (independence) का आंदोलन अपना स्वरूप (nature) लेने के लिए छटपटा रहा था.19वीं सदी के अंतिम (Last) दशक में नरम (Soft) और गरम (hot) दल में बंट गई थी. शुरू में नरम दल के नेता प्रभावी दिखे, लेकिन बाद में गरम दल के नेता ज्यादा सुर्खियों में रहे और इनमें लाल बाल और पाल (Lal Bal Pal) की तिकड़ी बहुत प्रसिद्ध हुई पंजाब के लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र से बाल गंगाधर तिलक और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल अपने क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि देशभर में लोकप्रिय हो गए थे. इस तिकड़ी में बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) को क्रांतिकारी विचारों का जनक के तौर पर जाना जाता है.


    क्रांतिकारी विचारों के जनक
    बिपिन चंद्र पाल को भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी कहा जाता है. बचपन से ही पाल के विचारों में ओज और स्पष्टता साफ झलकती थी और वे अपनी बात रखने में कभी पीछे नहीं रहते थे. जितने स्पष्टवादी वे अपने सार्वजनिक जीवन में रहे उतने ही स्पष्टवादी और क्रांतिकारी अपने निजी जीवन में भी रहे. अपनी पहले पत्नी की मौत के बाद उन्होंने एक विधवा से शादी की जो उनके समय में बहुत ही बड़ी बात थी.

    विरोध के विरोध के उग्र स्वरूप
    कांग्रेस से जुड़ते ही पाल जल्दी ही एक बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गए हैं. जल्दी ही उनकी दोस्ती लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक से हो गई. तीनों ने मिलकर क्रांतिकारी परिवर्तन के विरोध के उग्र स्वरूपों को अपनाया और जल्दी ही देश में लाल बाल पाल के नाम से मशहूर हो गए. पूर्ण स्वराज, स्वदेशी आंदोलन, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा देश के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख हिस्से हो गए जिसमें पास के साथ अरविंद घोष का भी नाम जुड़ गया था.

    स्वदेशी और राष्ट्रवाद की भावना पर जोर
    पाल ने स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार जैसे उपायों के जरिए देश में गरीबी और बेरोजगारी को कम करने की वकालत की. उन्होंने रचनात्मक आलोचना के जरिए देश के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना पैदा करे पर जोर दिया. उनका में बंगाल पब्लिक ओपिनियन, द इंडिपेंडेंट इंडिया, लाहौर ट्रिब्यून, द हिन्दू रिव्यु , द न्यू इंडिया, परिदर्शक, द डैमोक्रैट, बन्देमातरम, स्वराज, बंगाली में पत्रिकाओं में उनके ऐसे इरादे साफ तौर पर झलकते थे.

    चरम लोकप्रियता का दौर
    1905 के बाद लाल बाल और पाल की तिकड़ी बंगाल विभाजन के विरोध में विशेष तौर से देश भर में लोकप्रिय हुई. पाल तो बंगाल में पहले से ही लोकप्रिय हो चुके थे. इस मौके पर अंग्रेजी सरकार के वे मुखर विरोधी हो गए. उनके उग्र और सुधारवादी तरीकों से अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का काम करते रहे.

    अंग्रेजों पर नहीं था कोई भरोसा
    बिपिन चंद्र पाल को अंग्रेजों पर बिलकुल भरोसा नहीं था. वे मानते थे कि निवेदन, तर्क, असहयोग जैसे तरीकों से अंग्रेजों को देश से नहीं भगाया जा सकता. इस वजह से वे महात्मा गांधी से भी सहमत नहीं होते थे और उसे जाहिर करने में भी कभी संकोच नहीं करते थे. यहां तक कि कई बार उन्होंने गांधी जी तक का खुल कर विरोध भी किया.

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