इंदौर, राजेश ज्वेल। संभवत: यह पहला मौका है, जब प्राधिकरण जैसी संस्था को विधिक राय लेना महंगा पड़ गया। अभी तक प्राधिकरण को होने वाले आर्थिक नुकसान को अवश्य ऐसे मामलों में गंभीरता से देखा जाता रहा है। मगर आश्चर्य की बात है कि योजना 140 के विवादित और बेशकीमती 98 भूखंडों को पांच साल पूर्व बुलाए टेंडर के आधार पर आवंटित किए जाने का विधिक अभिमत एडवोकेट जनरल की ओर से प्राप्त हुआ और अगर प्राधिकरण उस पर अमल करता है तो 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान उसे उठाना पड़ेगा, जबकि इतनी बड़ी राशि से शहर के कई फ्लायओवरों, मास्टर प्लान से लेकर प्रमुख सडक़ों के विकास कार्य किए जा सकते हैं। मजे की बात यह है कि इस विधिक अभिमत में जो राशि प्राधिकरण के खाते में जमा ही नहीं हुई, उस पर ब्याज देने की अनुशंसा तक कर डाली है।
कोर्ट-कचहरी में तारीखें बढ़वाने से लेकर कई अन्य तरह की जमावट तो होती ही रही है। मगर इस तरह का मामला पहली बार सामने आया, जिसमें प्राधिकरण के आर्थिक हितों की पूरी तरह से अनदेखी कर दी गई, जबकि उससे जुड़े तमाम दस्तावेज प्राधिकरण के पक्ष वाले ही हैं। हकीकत यह है कि योजना 140 के 5 साल पहले बुलाए टेंडर पर हाईकोर्ट ने ही स्टे दे दिया था, जिसके चलते प्राधिकरण कोई निर्णय नहीं ले पाया और यहां तक कि अपने खाते में टेंडरदाताओं द्वारा दिए गए ड्राफ्ट की राशि को भी जमा नहीं किया और दूसरी तरफ विधिक अभिमत में यह कहा गया कि अगर भूखंड नहीं दिए जाते हैं तो प्राधिकरण ब्याज सहित राशि लौटाए। प्राधिकरण बोर्ड द्वारा गठित कमेटी इस संबंध में स्पष्ट अभिमत दे चुकी है कि 5 साल पुरानी दर पर इन भूखंडों का आवंटन अब संभव नहीं है और ऐसा करने पर 300 करोड़ से ज्यादा का नुकसान प्राधिकरण को उठाना पड़ेगा।
इस संबंध में जब अग्निबाण ने मध्यप्रदेश के एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह से उनके द्वारा दिए गए अभिमत पर चर्चा करना चाही तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किए। यहां तक कि वाट्सऐप पर भी खबर के साथ उनसे अभिमत लेने का प्रयास किया गया। मगर उसका भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। दूसरी तरफ प्राधिकरण इस बात पर भी भौंचक है कि अभिमत में लिखा गया कि प्राधिकरण द्वारा इस मामले में ब्रीफिंग नहीं की गई, जबकि प्राधिकरण के ही अभिभाषक और अधिकारी जबलपुर जाकर एडवोकेट जनरल से मिले और उन्हें प्रकरण की जानकारी दी और इसकी पुष्टि बिल की राशि में जोड़ी गई 40 हजार की कॉन्फ्रेंस फीस भी सबूत है।
प्राधिकरण बाध्य नहीं ऐसे विधिक अभिमत मानने को
प्राधिकरण ऐसे कई प्रकरण जो हाईकोर्ट की डीबी में हार चुका है उसे सुप्रीम कोर्ट तक जाकर लड़ता है। लिहाजा एडवोकेट जनरल द्वारा दिए गए विधिक अभिमत को मानने के लिए प्राधिकरण कतई बाध्य नहीं है और बोर्ड अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने के लिए पूरी तरह सक्षम है और योजना 140 के इन 98 भूखंडों के टेंडर बोर्ड बैठक में निरस्त किए जा सकते हैं और ऐसा ही प्राधिकरण करेगा भी। वरना लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू से लेकर तमाम जांच भविष्य में अध्यक्ष, सीईओ, कलेक्टर सहित अन्य बोर्ड सदस्यों के गले पड़ेगी।
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