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    आज भारत आएंगे श्रीलंका के राष्ट्रपति, द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देने पर होगी चर्चा

  • July 20, 2023

    नई दिल्ली (New Delhi) । बीते वर्ष विषम आर्थिक व राजनीतिक स्थिति के बीच श्रीलंका (Sri Lanka) के राष्ट्रपति बने रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe became the President) गुरुवार को भारत (India) पहुंचेंगे। राष्ट्रपति के रूप में पहली बार भारत की यात्रा कर रहे रानिल विक्रमसिंघे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देने के उद्देश्य से आ रहे हैं।

    आर्थिक संकट के समय भारत ने अपने इस द्वीपीय पड़ोसी की आगे बढ़कर सहायता की है। विक्रमसिंघे 20-21 जुलाई को भारत की आधिकारिक यात्रा पर रहेंगे। भारत के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आमंत्रण पर श्रीलंकाई राष्ट्रपति विक्रमसिंघे भारत आ रहे हैं।

    इस दौरे में वह पीएम मोदी के साथ दोनों देशों के साझा हितों पर चर्चा करेंगे। वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से भी भेंट करेंगे। श्रीलंका के राष्ट्रपति का भारत के अन्य गणमान्यों से मुलाकात का भी कार्यक्रम है। लंबे समय तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल चुके रानिल विक्रमसिंघे भारत के साथ संबंधों को विशेष महत्व देते हैं। राष्ट्रपति की इस यात्रा में श्रीलंका का ध्यान भारत से निवेश आकर्षित करने पर भी हो सकता है।


    रानिल विक्रमसिंघे: राजनीति के साथ विदेश नीति का समृद्ध अनुभव
    रानिल विक्रमसिंघे यानी श्रीलंका की राजनीति का सबसे अनुभवी चेहरा। कई बार कैबिनेट मंत्री, पांच बार प्रधानमंत्री, दो बार नेता विपक्ष और वर्तमान में राष्ट्रपति। यह परिचय उनकी प्रशासनिक व राजनीतिक दक्षता को पुख्ता करता है।

    24 मार्च 1949 को जन्मे रानिल पहली बार राष्ट्रपति के तौर पर भारत आ रहे हैं, पर परंपरा तोड़कर। उनके पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति पदभार ग्रहण करने के कुछ ही समय में भारत की यात्रा करते रहे हैं। रानिल राष्ट्रपति बनने के करीब एक वर्ष बाद आ रहे हैं। रानिल के राजनीतिक दल यूनाईटेड नेशनल पार्टी की पश्चिम के साथ रिश्ते मजबूत करने में विशेष रुचि रही है।

    रानिल 2002 में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश से मिले और तब यह किसी श्रीलंकाई पीएम की अमेरिकी राष्ट्रपति से 18 वर्ष के बाद हुई भेंट थी। रानिल भारत के साथ भी मधुर व सशक्त वाणिज्यिक संबंध के पक्षधर हैं। हालांकि उन्होंने एक बार कहा था कि अपनी समुद्री सीमा में आने पर श्रीलंका के पास भारतीय मछुआरों पर गोली चलाने का अधिकार होगा। कानून की पढ़ाई करने के बाद राजनीति की तरफ बढ़े रानिल का जन्म श्रीलंका के एक प्रतिष्ठित और राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ।

    उनके सहपाठियों में तत्कालीन श्रीलंकाई पीएम एस. भंडारनायके के पुत्र अनुरा और ख्यात समाजवादी नेता फिलिप गुणावर्धने के बेटे दिनेश रहे। श्रीलंका में सबसे कम उम्र में कैबिनेट मंत्री बने रानिल की वर्ष 2002 में लिट्टे के साथ समझौता कराने में भी अहम भूमिका रही। इसमें उन्होंने नार्वे की सहायता ली थी। वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका के बीच समझौते से लेकर 2002 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से भेंट तक भारत के साथ विक्रमसिंघे का विदेश नीति में अनुभव समृद्ध है।

    रानिल विक्रमसिंघे की ताजा भारत यात्रा दोनों देशों के संबंधों को नए परिदृश्य में नया आयाम देने को लेकर है। भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने इस यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए इस माह के आरंभ में श्रीलंका का दौरा किया था। आइए समझें क्या हैं अहम मुद्दे:

    बीते कुछ वर्षों में श्रीलंका की विदेश नीति में चीन का अहम स्थान रहा है। रानिल की सरकार में ही चीन को अति महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह 99 वर्ष की लीज पर दिया गया। भारत के लिए फिलहाल यही सबसे अहम मुद्दा है। अक्टूबर में रानिल चीन भी जाएंगे।

    बीते वर्ष आर्थिक संकट के समय भारत ने श्रीलंका का चार बिलियन डालर की मदद दी है। साथ ही आइएमएफ से बात करने के अलावा जापान सहित अपने अन्य मित्र देशों के साथ श्रीलंका का संपर्क भी कराया है, लेकिन एक सच यह भी है कि श्रीलंका पर चीन का सबसे अधिक कर्ज है।

    हंबनटोटा के अलावा कोलंबो बंदरगाह के पास 1.4 अरब डालर की भूमि सुधार योजना श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भारत की नई चिंता है। चीन के साथ नजदीकियों के बीच विक्रमसिंघे का हालिया बयान काबिलेगौर है जिसमें वह कह चुके हैं कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में यह भारत का समय है।

    एक और अहम मुद्दा श्रीलंका के तमिल समुदाय का है। रानिल विक्रमसिंघे के भारत आने से ठीक पहले श्रीलंका के तमिल राजनीतिक दलों के संगठन टीएनए और प्रबुद्धजन ने पीएम नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख मामला सुलझाने में मदद मांगी है। रानिल ने गत मंगलवार ही श्रीलंका के संविधान में बहुप्रतीक्षित 13वें संशोधन पर नया प्रस्ताव दिया है जिसे तमिल राजनीतिक दलों ने अस्वीकार कर दिया। यह संशोधन तमिल प्रभुत्व वाले प्रांतों सहित सभी नौ प्रांतों को अधिक स्वायत्तता के लिए है।

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