नई दिल्ली (New Delhi) । इंडिया (India) के बाद एनडीए (NDA) ने भी ज्यादा से ज्यादा छोटे दलों को एकजुट कर शक्ति प्रदर्शन किया है, लेकिन क्या दोनों राजनीतिक गठबंधनों में छोटे दलों को महज ताकत दिखाने के लिए जुटाया जा रहा है या फिर वास्तव में चुनाव में भी इनसे कोई फायदा है? यह प्रश्न इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि दोनों खेमों में साथ खड़े दिख रहे कई छोटे दल ऐसे हैं, जिनका विधानसभाओं (Assemblies) और लोकसभा (Lok Sabha) में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।
पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा को शानदार बहुमत मिलने के बावजूद 10-12 फीसदी मत अत्यधिक छोटे दलों को हासिल हुए हैं, जिनकी आमतौर पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहचान नहीं है। अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनावों में छोटे दलों का मत प्रतिशत कहीं ज्यादा है। महाराष्ट्र में यह पिछले चुनाव में 18 फीसदी तक दर्ज किया गया था, जो एनसीपी के 16 फीसदी के मत प्रतिशत की हिस्सेदारी से भी ज्यादा है। इसलिए इन छोटे दलों के पास एक बड़ा मत प्रतिशत मौजूद है।
2019 के लोकसभा चुनावों में ऐसे 65 दल थे जिन्हें 0.10 फीसदी से अधिक, लेकिन एक फीसदी से कम मत मिले। पर इनमें से 19 दल ही सीटें जीत पाए। 13 दलों ने एक-एक सीट, चार दलों ने दो-दो, एक दल ने तीन तथा एक दल ने छह सीटें जीती। इस प्रकार कुल 30 सीटें छोटे दलों की झोली में आई। छोटे दल आमतौर पर जातीय समूहों, वर्गों या क्षेत्रीयता के आधार पर बने हैं तथा संबंधित समूहों तथा क्षेत्रों में इनका सीमित प्रभाव रहता है। वह इतना सीमित होता है कि अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने से इनके जीतने की संभावना बेहद क्षीण होती है। जब भी यह दल अकेले दम पर मैदान में आए तो उन्हें खास सफलता नहीं मिली। लेकिन जब वह किसी राष्ट्रीय दल के साथ मैदान में उतरने हैं तो फायदा होता है। जैसे, जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा ‘हम’ ने बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में एनडीए के साथ मिलकर सात सीटों पर चुनाव लड़ा तथा चार सीटें जीतीं। उसे कुल 0.89 फीसदी मत मिले। दूसरी तरफ अकेले मैदान में उतरने वाली लोक जनशक्ति पार्टी को 135 सीटों पर लड़कर महज एक सीट हासिल हुई। हालांकि उसे 5.6 फीसदी मत मिले। परंपरागत रूप से ‘हम’ का राज्य में तीन फीसदी और लोजपा का करीब आठ फीसदी मत प्रतिशत माना जाता है।
गठबंधन में छोटे दलों को फायदा
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बड़े दलों के साथ गठबंधन में छोटे दलों को ज्यादा फायदा है। उन्हें खुद को खड़ा करने का अवसर मिल जाता है, जिसे वह अब समझ रहे हैं। जाति या वर्ग समूहों पर बने दलों का मत प्रतिशत कुछ स्थानों पर ज्यादा होता है तथा कुछ पर कम। ऐसे में जहां वह खुद नहीं लड़ेंते हैं, वहां गठबंधन में शामिल बड़े दलों को कुछ हद तक इस छोटे मत प्रतिशत का फायदा मिलता है। कभी-कभी यह हारजीत में निर्णायक भूमिका निभाता है, लेकिन बड़े दलों को इससे भी ज्यादा फायदा यह है कि छोटे दलों की सीटों का संख्याबल ऐन वक्त पर उनके लिए मददगार साबित होता है।
बड़े दलों के लिए नफा-नुकसान
महाराष्ट्र में छोटे दलों के सबसे ज्यादा 18 फीसदी मत प्रतिशत हैं तथा पिछले लोकसभा चुनावों में भी आठ छोटे दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छोटे दलों की भूमिका किस प्रकार बड़े दलों के लिए नफा-नुकसान का कार्य करती है, उसका बेहतरीन उदाहरण प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) का दिया जाता है। जिसने पिछले चुनाव में एमआईएम के साथ गठबंधन कर औरंगाबाद सीट पर उसके उम्मीदवार को जिताया। लेकिन इस क्षेत्र की तीन अन्य सीटों पर इस गठबंधन के कारण महा विकास अघाड़ी को हार का सामना करना पड़ा।
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