1584 नक्शा शीटों को लेमिनेट करने के साथ स्कैन भी किया, अलमारियों में सुरक्षित रखे रिकॉर्ड, सिर्फ 17-18 जागीरी व अन्य गांवों के त्रुटिपूर्ण रिकॉर्डों को सुधार रहे हैं
इंदौर, राजेश ज्वेल। 117 साल पुराने महाराजा होलकर (Maharaja Holkar) द्वारा बनवाए गए बेशकीमती राजस्व रिकॉर्डों को जहां सहेजने का काम किया गया, वहीं इंदौर (Indore) के सभी 676 गांवों के राजस्व रिकॉर्डों को भी डिजिटल किया गया। 1584 नक्शा शीटें, जिनमें से अधिकांश जीर्ण-शीर्ण हो चुकी थीं उन्हें लेमिनेट करवाने के साथ उनको डिजिटल करने के लिए स्कैन भी करवाया गया और सभी राजस्व रिकॉर्ड अलमारियों में सुरक्षित रिकॉर्ड रूम में रखवा दिए हैं। सिर्फ 17-18 जिले के गांव ऐसे हैं जिनके त्रुटिपूर्ण रिकॉर्ड हैं, उन्हें भी दुरुस्त किया जा रहा है, जिसमें खजराना सहित कुछ जागीरी वाले गांव शामिल हैं। हालांकि खजराना का भी काफी कुछ रिकॉर्ड व्यवस्थित किया जा चुका है। अब एमपी लैंड रिकॉर्ड के माध्यम से इन सभी राजस्व रिकॉर्ड को ऑनलाइन भी उपलब्ध करा दिया है।
भू-अभिलेखों के डिजिटलाइजेशन और उनको सहेजने का काम मध्यप्रदेश लैंड रिकॉर्ड मुख्यालय ग्वालियर द्वारा कराया जा रहा है और यही कारण है कि अब ऑनलाइन जिले, गांव और खसरा नंबर डालते ही उससे जुड़ी जानकारी कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाती है। इतना ही नहीं, आधार कार्ड की तरह केन्द्र सरकार यूनिक लैंड पार्सल आईडेंटीफिकेशन नम्बर भी तैयार करवा रही है। इंदौर की लैंड रिकॉर्ड शाखा में पदस्थ अनुलेखक यानी ट्रैसर अशफाक खान का कहना है कि 1905-06 में महाराजा होलकर ने जमीनों के रिकॉर्ड तैयार करवाए थे, जिनमें से 2001 में कई नक्शे पानी में भीग भी गए थे। लिहाजा तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने इनकी सुध ली और संरक्षिदत करने के निर्देश दिए, जिसके चलते सभी 676 गांवों के राजस्व रिकॉर्ड को संरक्षित करने का काम किया गया और अलमारियों में यह रिकॉर्ड रख दिए हैं। ये रिकॉर्ड इतने बेशकीमती हैं कि तहसील न्यायालयों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चलने वाले राजस्व प्रकरणों में मददगार साबित होते हैं और कई सरकारी जमीनों की लड़ाई शासन-प्रशासन इन रिकॉर्ड के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट तक जीता है। इन रिकॉर्डों को संरक्षित करने वाले श्री खान सहित आधा दर्जन कर्मचारियों को पूर्व कलेक्टर श्री सिंह ने 25-25 हजार रुपए का पुरस्कार देने के साथ प्रशस्ति-पत्र भी सौंपे। दरअसल ग्वालियर स्थित लैंड रिकॉर्ड मुख्यालय भी सभी राजस्व रिकॉर्डों को ऑनलाइन उपलब्ध करा रहा है और यह काम इंदौर जिले में सबसे बेहतर तरीके से हुआ है। सिर्फ खजराना सहित जागीरी के ऐसे 17-18 ऐसे गांव हैं, जिनमें राऊ-मानपुर व अन्य शामिल है, जहां के त्रुटिपूर्ण रिकॉर्डों को अब ठीक किया जा रहा है।
1925 के बाद इंदौर में हुआ ही नहीं मिसल बंदोबस्त भी
अंग्रेजों ने 1925 से लेकर 30 तक पूरे देश में जमीनों के एक-एक इंच के रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण किया था, जिसे राजस्व भाषा में मिसल बंदोबस्त कहा जाता है। इसी रिकॉर्ड के आधार पर केन्द्र और राज्य सरकारें जमीनों का प्रबंधन करती है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलग होने के चलते कई जिलों के मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड गायब भी हो गए और इंदौर का मिसल बंदोबस्त भी 1925 में हुआ था, उसके बाद सिर्फ सांवेर के ही 30 गांवों का ही मिसल बंदोबस्त हो सका। 2001-02 में तत्कालीन दिग्गी सरकार ने नए सिरे से मिसल बंदोबस्त के प्रयास किए, मगर जमीनी जादूगरों ने उसे बंद करवा दिया। हालांकि देवास, रतलाम, झाबुआ सहित कुछ जिलों में ही मिसल बंदोबस्त हुए और इंदौर में चूंकि जमीनों के बड़े खेल हुए, लिहाजा अब मिसल बंदोबस्त होता है तो कई नए विवाद भी उठ खड़े होंगे।
इंदौर कलेक्टर को आज राष्ट्रपति के हाथों मिलेगा सम्मान भी
इंदौर जिले में राजस्व यानी भू-अभिलेखों के रिकॉडों को संरक्षित किया गया, वहीं उनके आधुनिकीकरण, डिजिटलाइजेशन के चलते इंदौर कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी को आज दिल्ली में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा सम्मानित भी किया जा रहा है। प्लेटिनम सर्टिफिकेट के साथ राष्ट्रपति कलेक्टर को भूमि सम्मान देंगी। कलेक्टर का कहना है कि इंदौर के राजस्व रिकॉर्ड को सम्पदा पोर्टल से जोडऩे का भी काम किया है और भविष्य में जो केन्द्र सरकार यूनिक लैंड पार्सल आईडेंटिफिकेशन नम्बर व्यवस्था शुरू करेगी उसमें भी ये डिजिटाइजेशन काम आएगा। रिकॉर्ड रूम को बकायदा डिजिटली कर दिया है। उल्लेखनीय है कि देश के 75 जिलों का चयन इस कार्य के लिए हुआ है, जिसमें इंदौर जिला भी शामिल है और आज राष्ट्रपति द्वारा भूमि सम्मान दिया जा रहा है
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