भोपाल। लोकसभा चुनावों से पहले सबसे महत्वपूर्ण माने जा रहे मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा नेतृत्व बेहद गंभीर है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को चुनाव प्रभारी बनाकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि चुनावी रणनीति में वह राज्य की खेमेबाजी और आपसी नाराजगी को आड़े नहीं आने देगी। पार्टी सत्ता के ऊपर संगठन को तरजीह देगी और सभी बड़े नेताओं को साथ लेकर चलेगी। राज्य में अब तीन संगठन प्रभारियों के साथ दो चुनाव प्रभारी होंगे। मध्य प्रदेश में भाजपा नेतृत्व 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवाने को लेकर शुरू से ही काफी सतर्क रहा है। लगभग सवा साल बाद कांग्रेस में हुई टूट से वह सत्ता में वापस तो आया है, लेकिन वह मौजूदा स्थिति में कांग्रेस की स्थिति को लेकर किसी तरह की गलतफहमी भी नहीं रखना चाहता है। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि राज्य में 20 सालों ( बीच के सवा साल छोड़कर) से भाजपा लगातार सत्ता में है। ऐसे में सत्ता विरोधी माहौल होना स्वाभाविक है। पिछले चुनाव में भी इसका सामना करना पड़ा था, जिसका नुकसान भी हुआ था, लेकिन इस बार भाजपा सतर्क है।
ग्वालियर-चंबल पर फोकस
सूत्रों के अनुसार भाजपा के अंदरूनी आकलन में मौजूदा विधायकों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। चुनावी योजना में लगभग आधे विधायकों को बदलने की बात सामने आ सकती है। इसके अलावा भूपेंद्र यादव के सामने एक बड़ी चुनौती ग्वालियर-चंबल संभाग की होगी, जहां सिंधिया के साथ कांग्रेस से आए नेताओं और भाजपा के पुराने नेताओं के बीच सामंजस्य बनाना है। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय नेतृत्व राज्य में संगठन प्रभारियों की भूमिका को लेकर बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं है। ऐसे में चुनावों तक चुनाव प्रभारी रणनीति के केंद्र में रहेंगे और सभी उनके साथ मिलकर काम करेंगे।
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