नई दिल्ली: देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने एक्सरसाइज शुरू कर दी है. यूसीसी से जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए चार केंद्रीय मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी है. वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दो दिन की बैठक करने के बाद बुधवार को समान नागरिक संहिता पर अपनी आपत्तियों का ड्राफ्ट विधि आयोग को सौंप दिया है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साफ-साफ शब्दों में कहा कि यूसीसी मुस्लिम शरियत के तहत नहीं है और मुसलमान अपने पर्सनल लॉ में किसी तरह का बदलाव मंजूर नहीं करेगा. इस तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मसौदा मोदी सरकार के मंशा से कोसो दूर नजर आता है.
‘बिना सुझाव के आयोग ने मांगी राय’
विधि आयोग ने यूसीसी के मुद्दे पर पिछले महीने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) से राय मांगी थी. इस पर बोर्ड ने विधि आयोग को यूसीसी पर अपना मसौदा सौंप दिया है और साथ ही आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि बिना किसी तरह के सुझाव का खाका बनाकर उस पर राय मांगना हैरान करने वाला है. भारतीय संविधान में सभी को धर्मों को अपनी-अपनी शरियत के लिहाज से जीने और उस पर चलने की आजादी है. इस लिहाज से समान नागरिक संहिता लाया जाता है तो मुस्लिम समुदाय उसका विरोध करेगा.
कुरान और शरियत से बंधा है मुस्लिम
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधि आयोग से कहा कि मुस्लिम कुरान और शरियत के लिहाज से चलते है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 इस बात की इजाजत देता है कि सभी धर्म के लोग अपने-अपने धर्म के नियमों का पालन कर सकते हैं. मुसलमान अपनी निजी जिंदगी में कुरान और शरियत से बंधा हुआ है और उसी का पालन कर रहे, जिसे वो किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता है.
भारत की एकता और विविधता को बनाए रखने के लिए मुसमलानों को अपने धर्म के कानून पर चलने की इजाजत दी जाए. इतना ही नहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आदिवासी सहित सभी धर्मों के पर्सनल लॉ (निजी कानूनों) का भी हवाला दिया है.
आदिवासियों पर पड़ेगा UCC का प्रभाव
AIMPLB ने विधि आयोग को भेजे गए ड्राफ्ट में आदिवासी समुदाय के पर्सनल लॉ का जिक्र करते हुए कहा कि आदिवासी समुदाय प्रथा और रीत-रिवाजों को अपनी मान्यताओं के लिहाज से करते हैं. आदिवासी समाज और अन्य दूसरे समुदाय अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार भी अपने हिसाब से पालन करते हैं. समान नागरिक संहिता को लाकर उनके निजी कानूनों को खत्म नहीं करना चाहिए. इतना ही नहीं, बोर्ड ने कहा कि परिवारिक कानूनों का विश्लेषण किया जा सकता है, लेकिन धार्मिक कानूनों में हस्तक्षेप सही नहीं है.
‘अल्पंसख्यकों की धार्मिक आजादी को खतरा’
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि समान नागरिक संहिता के दायरे का विश्लेषण दो तरह से किया जा सकता है. पहला यह है कि देश में मौजूदा समय में संभावित समान नागरिक संहिता क्या सभी परिवारों के लिए एक समान है और दूसरा सभी समुदाय के पर्सनल लॉ क्या एक समान हैं. इसका विश्लेषण करेंगे तो साफ तौर पर देखेंगे कि देश में सभी के लिए एक समान कानून नहीं है. ऐसे में समान नागरिक संहिता आसान नहीं बल्कि काफी जटिल है.
पूर्व में विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर जांच-पड़ताल करके फैसला किया था कि यूसीसी आवश्यक नहीं है. इसके बावजूद सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करके क्या अल्पंसख्यकों की धार्मिक आजादी और उनके पर्सनल लॉ कानूनों को खत्म करने की मंशा है. इसे थोपा जाता है तो उसका हम विरोध करेंगे, क्योंकि यह हमारे संवैधानिक अधिकारों को खिलाफ है.
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