धार्मिक आयोजनों के बहाने इवेंट वालों की दुकान
कांग्रेस में विधानसभा चुनाव लडऩे के जितने भी दावेदार हैं वे धरम की राजनीति के सहारे अपनी दुकान सजाने लगे हैं। इनमें से एक ऐसे दावेदार हैं, जो पहले कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। धर्म में कुछ ज्यादा ही विश्वास रखने वाले इन नेताजी के पास इवेंट मैनेजमेंट करने वालों की ऐसी टीम है कि एक आयोजन निपटता नहीं और वे दूसरा धार्मिक आयोजन करने की सलाह दे डालते हैं। नेताजी को विधानसभा दिख रही है, वे चाहकर भी जेब ढीली करने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते हैं। जैसा-जैसा इवेंट वाले बता रहे हंै नेताजी वैसे ही किए जा रहे हैं। पिछले 6 महीने से वे हर महीने दो धार्मिक आयोजन कर रहे हैं और अब फिर श्रावण मास में आयोजन की तैयारी है। मोटा-मोटा अंदाज लगाया जाए तो एक आयोजन में लाखों रुपया इवेंट मैनेजमेंट के बाद इन मैनेजरों की जेब में ही जा रहा है।
अब आप से भी सामने आने लगे दावेदार
आम आदमी पार्टी ने चुनावी आगाज तो कर दिया है और अब विधानसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक दावेदार भी आगे आने लगे हैं। पिछले दिनों ग्वालियर में हुई सभा में भीड़ ले जाने में आप के एक पदाधिकारी ने रुचि दिखाई। हालांकि भीड़ कांग्रेस-भाजपा के मुकाबले तो नहीं जुट पाई, लेकिन दावा किया जा रहा है कि इंदौर की कुछ सीटों पर आप प्रभाव जरूर डालेगी। इसको लेकर भाजपाई तो निश्चिंत हैं कि वह कांग्रेस का वोट बैंक प्रभावित करेगी और कांग्रेसी कह रहे हैं कि भाजपा सरकार के विरोध के चलते उसे फायदा होगा।
नहीं बन पा रहा बैठकों का समन्वय
पांच नंबर विधानसभा में जयवर्धन को बैठक लेने आना था, लेकिन वहां से दावेदारी कर रहे कोठारी और पटेल के बीच पटरी नहीं बैठ पाने के कारण समय भी तय नहीं हो पा रहा है। 25 जून की तारीख तय हुई थी, लेकिन यह टल गई और अभी तक नई तारीख तय नहीं हुई है। चूंकि इंदौर का संगठन अध्यक्ष के बिना ही चल रहा है, इसलिए भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है। चुनाव सिर पर है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो कांग्रेस को संगठनात्मक तौर पर नुकसान उठाना ही पड़ेगा।
मालिनी गौड़ का मिसेस नड्डा से राजनीतिक कनेक्शन
इंदौर आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा से विधायक मालिनी गौड़ भी एयरपोर्ट पर मिलीं और उन्हें बताया कि उनका मिसेस नड्डा से राजनीतिक कनेक्शन है। जब वे विद्यार्थी परिषद में काम किया करती थीं, तब मिसेस नड्डा भी राजनीति में सक्रिय थीं। यह सुनकर नड्डा तो चौंके ही और मालिनी गौड़ से नमस्ते कहकर आगे बढ़ गए, लेकिन उनके साथ ही चौंकने की बारी दूसरे भाजपाइयों की भी थी। उन्हें ये नहीं मालूम था कि मालिनी सीधे नड्डा के किचन से जुड़ी हुई हैं। जिस तरह से चार नंबर में मालिनी गौड़ की खिलाफत कई नेता पर्दे के पीछे से कर रहे हैं, उनको इस घटना ने झटका तो दे ही दिया है। वे इस नए राजनीतिक कनेक्शन के बाद फूंक-फूंककर कदम उठाने की योजना पर काम करने का मन बना रहे हंै।
विस्तारकों की रुचि महाकाल दर्शन में ज्यादा
मुंबई-पुणे से आए भाजपा के विस्तारकों को मंडल की जवाबदारी तो मिली, लेकिन इनमें से कई ऐसे निकले, जो घूमने-फिरने में रुचि ले रहे हैं। इनमें से कुछ वरिष्ठ नेताओं ने महाकाल घूमने की इच्छा जताई और एक मंडल के प्रभारी को बस से उन्हें भिजवाने पर राजी भी कर लिया, लेकिन जब बाद में उन्हें मालूम पड़ा कि इस व्यवस्था में घर बैठे हजारों रुपए खर्च हो जाएंगे तो उन्होंने यह कहकर मामला टाल दिया कि ये जवाबदारी प्रोटोकॉल अधिकारी काकाणी की है।
फिर फंसे भाजपा के मंडल अध्यक्ष
चार नंबर से भाजपा के मंडल अध्यक्ष सचिन जेसवानी की विधायक से पटरी नहीं बैठ रही हैं तो उनके परिवार के खिलाफ ही राजस्थान में एक मामला दर्ज हो गया। उनकी भाभी ने जेसवानी सहित पूरे परिवार पर आरोप लगा डाला कि उन्हें परेशान किया गया, मारपीट की गई और इंदौर में पुलिस ने रिपोर्ट भी नहीं लिखी। मामला चाहे कुछ भी हो, लेकिन जेसवानी पर अब संगठन के अनुशासन की तलवार लटकती नजर आ रही है।
एक से चार नंबर में आए दावेदार चुनाव से हटे
खबर आ रही है कि चार नंबर से एक कांग्रेसी नेता ने दावेदारों की लिस्ट से अपना नाम हटा लिया है या कहे कि उन्हें दावेदार से ज्यादा कोई और पद दिखाई दे रहा है। पहले ये दावेदार 1 नंबर में टिकट ला चुके थे, लेकिन बाद में हालात ऐसे बने कि संजय शुक्ला पार्टी के अधिकृत दावेदार हो गए। शुक्ला ने तगड़ी किलेबंदी एक नंबर में कर ली है और अब यहां कांग्रेस के दावेदार आने से डरने लगे हैं। भोपाल-दिल्ली में अपने नाम का डंका बजाने वाले शुक्ला ही इस बार चुनाव लड़ेंगे, यह भी तय है। बताया जा रहा है कि चार नंबर में जिस तेजी से एक युवा नाम सामने आया है, उससे पुराने दावेदार ने अपना नाम पीछे कर लिया है। अब देखना यह है कि यह केवल भ्रमजाल है या वास्तव में उन्होंने अपना नाम पीछे हटाकर संकेत दिया है कि उनकी चार नंबर में रूचि नहीं है।
कांग्रेस में अभी जो कुछ हैं वो सदाशिव यादव ही हैं। उन्हीं के पास जिलाध्यक्ष का पद है और जब भी कोई बड़ा नेता आता है तो प्रोटोकॉल के नाते वे ही आगे-पीछे होते हैं। पुराने शहर अध्यक्ष होने के नाते विनय बाकलीवाल भी दिख जाते हैं, लेकिन गोलू अग्निहोत्री और अरविंद बागड़ी आते तो हैं, लेकिन अध्यक्ष के दावेदार की हैसियत से नहीं। अब कौन आगे हैं और कौन पीछे? इसे लेकर कांग्रेस में चर्चा चल रही है। वैसे फैसला जल्दी होने वाला है। -संजीव मालवीय
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