भोपाल। करीब पांच साल पहले मप्र की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में तहलका मचाने वाले 3,000 करोड़ रुपए से अधिक के बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट पेश करने की तैयारी में है। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले सामने आए करीब तीन हजार करोड़ रुपये के ई-टेंडर कथित घोटाले की जांच कर रही आर्थिक अपराध शाखा को इस मामले में किसी भी तरह की अनियमितता नहीं मिली है। वहीं सात महीने पहले इसके सभी छह आरोपी भी न्यायालय से दोष मुक्त हो चुके हैं। बड़ी बात ये है कि हार्ड डिस्क में टेम्परिंग की पुष्टि होने के बाद भी जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू यह पता नहीं कर सकी कि आखिर टेंडर में छेड़छाड़ किसने की थी। इसीलिए इसकी जांच ठंडे बस्ते में चली गई। गौरतलब है कि जल संसाधन, सड़क विकास निगम, नर्मदा घाटी विकास, नगरीय प्रशासन, नगर निगम स्मार्ट सिटी, मेट्रो रेल, जल निगम, एनेक्सी भवन सहित निर्माण कार्य करने वाले विभाग इस घोटाले में शामिल हैं। इन टेंडर्स में ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन और एंटेरस सिस्टम कंपनी के पदाधिकारियों के माध्यम से निविदा में टेंपरिंग किए जाने तथा इसमें कई दलालों, विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों और राजनेताओं के शामिल होने का आरोप था। हालांकि इस कथित घोटाले के पीछे कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों के आपसी झगड़े को भी कारण माना गया था।
ईओडब्ल्यू नहीं दे पाई सबूत
नवंबर 2020 में लोकायुक्त की एक विशेष अदालत ने ईओडब्ल्यू की तरफ से दर्ज कथित ई-टेंडर मामले में सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया है। दरअसल ईओडब्ल्यू कोई सबूत नहीं दे पाई। मामले में विनय चौधरी, वरुण चतुर्वेदी और सुमित गोलवरकर आरोपी थी, जिनकी संयुक्त उद्यम कंपनी ओस्मो आईटी सॉल्यूशंस की तलाशी कंप्यूटर और लैपटॉप की जब्ती के लिए की गई थी। कंपनी के मालिक चौधरी ने ईओडब्ल्यू को दिए अपने बयान में एमपी स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेपलपमेंट कॉरपोरेशन की तरफ से जारी किसी भी निविदा में अपनी भूमिका से इनकार किया था। आरोप था कि निविदा के दस्तावेजों के साथ इन्होंने छेड़छाड़ की थी। ईओडब्ल्यू का कहना है कि जांच जारी है, पिछले महीने ही बीपीएन डेटा और बैकअप फाइल कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पोंस टीम (सर्ट-इन) को भेजी हैं। हालांकि मामले में छह आरोपियों को विशेष अदालत सात महीने पहले सबूतों के अभाव में बरी कर चुकी है, क्योंकि जांच एजेंसी कोर्ट में यह साबित करने में नाकाम रही कि आखिर टेंडर में छेड़छाड़ किसने की। ईओडब्ल्यू ने जांच के दौरान 40 से 50 हार्ट डिस्क जब्त की थीं।
इन्हें जांच के लिए सर्ट-इन भेजा है। इसके पूर्व जो हार्ड डिस्क भेजी गईं थी, उनकी रिपोर्ट सितंबर 2021 में आईं थी, जिसमें टेम्परिंग की पुष्टि हुई थी, लेकिन सर्ट-इन यह स्पष्ट नहीं कर सकी थी कि टेम्परिंग किसने की। जांच एजेंसी भी अब तक उन आरोपियों तक नहीं पहुंच सकी, जिनके द्वारा टेंडर में टेम्परिंग की थी। जांच एजेंसी का कहना है कि धारा 173 (8) के तहत जांच जारी है।
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