चेन्नई (Chennai) । मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) में मंगलवार को उस समय अद्भुत नजारा देखने को मिला जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी (Former Attorney General Mukul Rohatgi) ने 14 जून को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तमिलनाडु (Tamil Nadu) के मंत्री वी सेंथिल बालाजी (Minister V Senthil Balaji) की गिरफ्तारी (arrest) की वैधता पर एक खंडपीठ के सामने गर्मागरम बहस की।
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने जब तर्क दिया कि ईडी द्वारा मंत्री को गिरफ्तारी से पूर्व नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं थी क्योंकि उसका इरादा जांच के आधार पर उन्हें “सामने” लाने का था, इस पर पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सवाल किया कि क्या एजेंसी के पास किसी भी व्यक्ति की हिरासत मांगने का अधिकार है। उन्होंने कहा, “ईडी पुलिस नहीं है, इसलिए उसके पास किसी भी आरोपी की हिरासत मांगने का कोई अधिकार नहीं है।”
SG मेहता ने इसका विरोध किया और कहा कि Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के तहत ईडी के पास किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार है बशर्ते कि सीआरपीसी की धारा 41 के तहत गिरफ्तारी पूर्व सूचना का अभाव हो और उसे लगता है कि कोई विशेष अपराध उस कानून के तहत दंडनीय है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पीएमएलए और सीआरपीसी के तहत गिरफ्तारी की शक्ति के बीच अंतर है। उन्होंने कहा कि धारा 41 के तहत नोटिस तब जरूरी है जब ईडी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं करना चाहता हो।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीएमएलए प्रावधानों के अनुसार, किसी व्यक्ति को सबूत नष्ट करने से रोकने के लिए भी गिरफ्तार किया जा सकता है।
जस्टिस जे निशा बानू और जस्टिस डी भरत चक्रवर्ती की खंडपीठ गिरफ्तार मंत्री वी सेंथिल बालाजी की पत्नी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दोनों पक्षों की 16 घंटे की बहस पूरी होने पर पीठ ने वकीलों को 28 जून तक अपना लिखित बयान जमा करने का निर्देश दिया।
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा बालाजी को हिरासत में लेने के दौरान उनकी गिरफ्तारी का आधार नहीं बताने के बारे में सवालों का जवाब देते हुए, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कानून कहता है कि इसका उल्लेख “जितनी जल्दी हो सके, न कि गिरफ्तारी के तुरंत बाद” किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया, “गिरफ्तारी के आधार सत्र न्यायाधीश द्वारा तब पढ़े गए, जब याचिकाकर्ता गिरफ्तारी के 11 घंटे के भीतर अस्पताल में मंत्री से मिलने गईं।”
सॉलिसिटर जनरल ने मंत्री के हॉस्पिटलाइजेशन की अवधि को घटाकर हिरासत की अवधि बढ़ाने की मांग की। मंत्री की ईडी में हिरासत की अवधि 28 जून को खत्म हो रही है।
इस पर रोहतगी ने कहा कि हिरासत में पूछताछ की इजाजत देने के लिए अस्पताल में भर्ती होने की अवधि को बाहर करने का कोई कानूनी प्रावधान उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा, “भले ही भूकंप या महामारी हो, आरोपी की गिरफ्तारी के 15 दिनों से अधिक हिरासत में पूछताछ की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”
उन्होंने तर्क दिया कि बालाजी के मामले में, 15 दिनों की अवधि 28 जून को समाप्त हो रही है और इसलिए, प्रवर्तन निदेशालय हिरासत में पूछताछ का अनुरोध नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि मंत्री की पत्नी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका विचारणीय है क्योंकि गिरफ्तारी और रिमांड दोनों अवैध है।
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