बुरहानपुर। मध्य प्रदेश में बच्ची से रेप और हत्या के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फांसी की सजा पाए शख्स को बरी करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट के जस्टिस स्पेशल कोर्ट के फैसले को देखने के बाद इस कदर भड़ गए कि उन्होंने ओपन कोर्ट में पुलिस और स्पेशल जज को फटकार लगा दी। उन्होंने फैसले में लिखा कि पुलिस ने बचकानी विवेचना की। लेकिन स्पेशल जज ने भी तह में जाए बगैर उनकी कहानी पर भरोसा कर फांसी दे डाली।
मामले के मुताबिक बुरहानपुर में एक 3 साल की बच्ची की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी। वारदात के बाद लोग गुस्से में थे तो पुलिस ने बच्ची की लाश बरामद होने के पांच दिन बाद विजय उर्फ पिंटिया को अरेस्ट करके जेल में डाल दिया। पुलिस के पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं था। केवल शक के आधार पर पिंटिया को पकड़ा गया था। 2012 में बुरहानपुर के स्पेशल जज ने पिंटिया को दोषी मानकर फांसी की सजा दे डाली।
विजय खुद को बेकसूर मानता था। लिहाजा 2019 में उसने सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस संजय पाल और जस्टिस एके पालीवाल की बेंच ने मामले की फिर से सुनवाई की। सारे एविडेंस पर फिर से नजर डाली गई तो बेंच हत्थे से उखड़ गई। हाईकोर्ट का कहना था कि पुलिस ने पब्लिक के प्रेशर को देखते हुए बचकानी कहानी रच डाली। जांच ऐसे की गई जैसे कोई नौसिखिया करता है।
हाईकोर्ट का कहना था कि एक भी साक्ष्य पुलिस ऐसा पेश नहीं कर सकी जो विजय को दोषी ठहरा सके। लेकिन स्पेशल जज को ये सारी खामी नजर नहीं आईं। उन्होंने भी तथ्यों को देखे बगैर आरोपी को फांसी दे डाली। हाईकोर्ट ने विजय उर्फ पिंटिया को बरी करते हुए कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य प्रसीक्यूशन पेश नहीं कर सका जिससे विजय पर दोष साबित होता हो।
जस्टिस संजय पाल और जस्टिस एके पालीवाल का कहना था कि पीड़िता की पोस्टमार्टम और डीएनए रिपोर्ट में सेक्सुअल असाल्ट का कोई निशान नहीं मिला। हाईकोर्ट का सवाल था कि ऐसे में रेप का केस कैसे बनता है? पुलिस ने पीड़िता के नाखूनों का सैंपल भी कब्र से उसके शव को निकालकर लिया। उस समय तक इतना समय बीत चुका था कि सैंपल लेने का कोई फायदा ही नहीं था। पुलिस की थ्योरी में एक फ्राक भी है जो बच्ची की लाश से 14-15 फीट दूर मिली थी। लेकिन प्रसीक्यूशन ऐसा कोई गवाह पेश नहीं कर सका जो ये बताए कि फ्राक बच्ची की ही थी।
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