उज्जैन। शहर में भगवान इंद्र की सवारी ऐरावत हाथी के वंशज हाथियों में से एक हाथी का विशाल मस्तक बहुत सुरक्षित तरीके से रखा गया है। बहुत कम ही लोग यह बात जानते हैं कि भारत के सबसे विशाल हाथी का मस्तक उज्जैन में बहुत ही सुरक्षित रखा है..आश्चर्य की बात है कि इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है तथा इस कारण बाहर से लोग नहीं आ पाते।
मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन धर्म, इतिहास, साहित्य और पुरातत्व के मान से विश्व पटल पर कई बार अपना नाम अंकित कर चुकी है। उज्जैन के प्राचीन इतिहास की गौरव गाथा समझने और देखने के लिए भारत सहित विश्व भर के इतिहासकार, साहित्यकार और पुराविद् समय-समय पर उज्जैन आते रहते हैं। देशभर के आयुर्वेद से जुड़े, साहित्य से जुड़े और प्राचीन कला से जुड़े महान जानकारों का उज्जैन में अखिल भारतीय स्तर पर सम्मेलन भी आयोजित होते हैं। इसका यही कारण है कि उज्जैन इतिहास और पुरातात्विक धरोहर के रूप में अमूल्य है। पुरातत्व के रूप में उज्जैन की बात की जाए तो इस प्राचीन नगरी में चारों और अनेक जानकारियाँ बिखरी पड़ी है लेकिन ऐसी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ है जिसके बारे में आज भी कई लोगों को नहीं पता है। ऐसी ही एक अनमोल और ऐतिहासिक धरोहर उज्जैन में है जिसकी जानकारी लगते ही हर कोई अचंभित हो उठेगा।
उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय में कांच के बड़े शोकेस में विशाल और बड़े मस्तक को बहुत ही सहज के रखा गया है। इस विशाल मस्तक को देखकर जब इसकी जानकारी के बारे में अग्रिबाण ने विशेष पड़ताल की तो जो जानकारी सामने आई वह अचंभित कर देने वाली थी। दरअसल यह एक हाथी का मस्तक है जो कांच के बड़े शोकेस में बड़े ही सुरक्षित तरीके से रखा गया है। हाथी के इतने बड़े इस मस्तक को देखकर इसके बारे में जब जानकारी जुटाई गई तो इस बारे में उज्जैन विक्रम विश्वविद्यालय के पुराविद् डॉ. रमण सोलंकी ने अग्रिबाण को बताया कि यह मस्तक हाथी का ही है और यह मस्तक पूराविद् डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर को मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर की देवाकचार नदी से 12 जून 1979 को खुदाई के वक्त मिला था जिसे उज्जैन लाया गया। आपने कहा कि हाथी के मस्तक के बारे में जो जानकारियाँ प्राप्त हुई थी उसके अनुसार यह भगवान इंद्र के ऐरावत हाथी के संप्रदाय के एक हाथी का मस्तक है और भारत के सबसे बड़े हाथी का मस्तक होने का भी प्रमाण मिला है। डॉ. रमण सोलंकी के अनुसार इस हाथी के मस्तक को मिलने के बाद इसकी जो तिथि आई है वह लगभग 5 लाख वर्ष पुरानी है। आपने कहा कि इस हाथी के मस्तक के साथ ही उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के संग्रहालय में लाखों वर्ष पुराने गेंडे का सींग, दरियाई घोड़े का दांत सहित करीब 200 फॉसिल्स मौजूद हैं जिन्हें बहुत ही सहज और संभाल कर रखा गया है।
भगवान इंद्र के हाथी ऐरारवत का क्या है शास्त्रों के हिसाब से महत्व
हिंदू शास्त्रों में, ऐरावत को एक बेदाग सफेद विशाल हाथी के रूप में दर्शाया गया है। वह पानी से उठने वाले सभी हाथियों के पूर्वज हैं। ऐरावत की उत्पत्ति के संबंध में कई किंवदंतियाँ हैं। प्राचीन लिपियों के एक संस्करण के अनुसार, देवताओं और असुरों, राक्षसों द्वारा मंथन के दौरान समुद्र से ऐरावत प्रकट हुआ था। वह समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से एक हैं।भगवान विष्णु और असुर राजा बलि से अनुमति लेने के बाद, राजा इंद्र ने ऐरावत को अपने आकाशीय वाहन के रूप में स्वीकार किया।
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