नई दिल्ली (New Delhi)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अमेरिका यात्रा (America trip) कई मायने में महत्वपूर्ण है। यात्रा के नतीजे चीन (China) के लिए साफ संदेश होंगे कि भारत (India) रक्षा क्षेत्र में अपनी ताकत (Increased strength in defense sector) बढ़ा रहा है। वहीं, यूक्रेन मुद्दे पर भारत अपने रुख पर कायम रहते हुए रूस से संबंधों की प्रगाढ़ता भी बरकरार रखेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि यात्रा के दौरान जीई के अत्याधुनिक जेट इंजन एफ-414 के भारत में निर्माण और प्रीडेटार ड्रोन खरीद समझौते को हरी झंडी मिल जाएगी। इन दो कदमों से भारत की सैन्य ताकत में भारी इजाफा होगा।
जीई के इंजनों के जरिये भविष्य में भारत तेजस को जहां पांचवीं पीढ़ी के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान के रूप में तैयार कर सकेगा, वहीं प्रीडेटार ड्रोन से तीनों सेनाओं की मारक क्षमता में इजाफा होगा। यह सीमा पर अक्सर आक्रामकता दिखाने वाले और विस्तारवादी मानसिकता के चीन के लिए कड़ा संदेश होगा कि भारत की सैन्य ताकत तेजी से बढ़ रही है तथा उसे मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है।
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) संजय कुलकर्णी कहते हैं कि यदि क्वाड समूह को ध्यान में रखकर देखें तो भारत की स्थिति रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। ऐसे में भारत की सैन्य ताकत में इजाफा करना अमेरिका की रणनीति के हिसाब से भी सही है।
बेहतरीन एयर डिफेंस सिस्टम
कुलकर्णी ने कहा कि यह कहना ठीक नहीं होगा कि अमेरिका से रक्षा करार से रूस के साथ संबंधों पर कोई प्रतिकूल असर पड़ेगा। हम रूस से भी हथियार लेते हैं। कुछ समय पूर्व तक 60 फीसदी तक हथियार रूस से ही खरीदे जा रहे थे। लेकिन, कई और देशों से भी लेते हैं। जिस देश के पास जो बेहतरीन उपकरण होते हैं, वे उससे लिए जाते हैं। जो रक्षा उपकरण अमेरिका से लिए जा रहे हैं, वह हमारी सेनाओं के लिए बेहतरीन हैं। लेकिन, अमेरिका से विरोध के बावजूद हमने रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा है। यह बेहतरीन एयर डिफेंस सिस्टम है।
रूस के लिए भी भारत पर भरोसा करना जरूरी
दरसअल, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जिस प्रकार से वैश्विक भू राजनीति चल रही है, उसमें रूस के लिए भी भारत पर भरोसा करना जरूरी है। भारत-रूस यूक्रेन पर तटस्थ होकर भी रूस के साथ है, क्योंकि वह बड़ी मात्रा में रूस से तेल की खरीद कर रहा है। मौजूदा परिस्थितियों में रूस को भारत जैसे बड़े तेल खरीदारों की दरकार है, क्योंकि यूरोप में उस पर प्रतिबंध है। जितना तेल भारत खरीद रहा है, उतना और वह कहां बेचेगा। इसलिए आज कुछ मामलों में भारत रूस पर निर्भर है तो रूस भी भारत पर निर्भर हो रहा है। दूसरे, विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत का रुख पहले की भांति कायम रहेगा। उस पर दबाव जरूर रहेगा, लेकिन भारत अपने रुख से टस से मस नहीं होगा।
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