नई दिल्ली (New Delhi) । मणिपुर (Manipur) में जारी हिंसा (violence) के बीच स्थानीय स्तर पर चुनौती बढ़ती जा रही है। गृह मंत्रालय (home Ministry) द्वारा गठित शांति समिति ने जमीन पर काम करना शुरू नहीं किया। दोनों समूहों के नेता साथ बैठने को तैयार नहीं नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह (Chief Minister N. Biren Singh) को लेकर असंतोष की वजह से भी शांति की ठोस पहल जमीन पर नजर नहीं आ रही। गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) के दौरे के बाद शांति की ठोस जमीन तैयार करने का प्रयास किया गया था, लेकिन स्थानीय स्तर पर असंतोष और एक-दूसरे के प्रति भरोसा टूटने की वजह से कुकी और मैतेई समूहों के बीच दरार कम नहीं हो पा रही है।
प्रशासन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उग्रवादी गुट आग में घी झोंकने का काम कर रहे हैं। उन्हे म्यांमार सीमा पर मौजूद उग्रवादी गुटों से भी मदद मिल रही है। जानकारों का कहना है कि हालात बहुत जटिल हैं। उग्रवादी और हिंसा करने वालों के प्रति सख्ती के साथ दोनों समूहों के बीच खाई पाटने के लिए बातचीत ही रास्ता है। इसके लिए केंद्र और राज्य की सामूहिक भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। साथ ही अन्य दलों, समूहों को भी भरोसे में लेकर सबका सुझाव और सहयोग शांति के लिए जरूरी है।
दोनों समूहों को भरोसा दिलाना जरूरी
बीएसएफ के पूर्व एडीजी पीके मिश्रा ने कहा कि स्थानीय स्तर पर दोनों समूहों को भरोसा दिलाना होगा कि शासन-प्रशासन कोई भेदभाव या पक्षपात नहीं कर रहा। बिना बातचीत के हिंसा रुकने वाली नहीं है। इसलिए जल्द बात हो, इसके लिए हर स्तर पर प्रयास जरूरी हैं।
जानकारों का कहना है कि अगर जल्द स्थिति नही संभली तो इसका असर पूर्वोत्तर की समग्र शांति पर पड़ सकता है और उग्रवादी गुट इस मौके की आड़ में नई परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
केंद्र की हालात पर नजर
फिलहाल केंद्र और राज्य प्रशासन की कोशिश है कि दोनों पक्षों के नेता बातचीत के लिए साथ बैठे और खुले मन से बातचीत की जाए। अधिकारियों का कहना है कि थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन स्थिति को काबू में लाने के सभी प्रयास हो रहे हैं। केंद्र स्थिति पर पूरी तरह नजर बनाए हुए है।
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