बंगलूरू। भारत से आउटसोर्स करने वाली विदेशी आईटी कंपनियों में नौकरियों में कटौती और मौजूदा कर्मचारियों के साथ परियोजनाएं पूरी करने की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है। विदेशी कंपनियों के इस कदम से इंजीनियरिंग छात्रों के सामने नौकरी का संकट खड़ा हो सकता है, जो सूचना प्रौद्योगिकी (IT) को दशकों से पसंदीदा क्षेत्र के रूप में देख रहे हैं।
मांग में वैश्विक अनिश्चितता से बढ़ा मंदी का खतरा एक ऐसे उद्योग के लिए संकट बन गया है, जिसने 1990 के दशक के बाद से भारत के सेवा क्षेत्र में सबसे अधिक भर्तियां की है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रोहित आजाद का कहना है कि आईटी क्षेत्र में कमजोर भर्तियों के दो अलग-अलग कारण हो सकते हैं। पहला…निकट अवधि में नकारात्मक मांग और दूसरा… श्रम-बचत प्रौद्योगिकियों के कारण लंबी अवधि में छंटनी।
मंदी और अमेरिकी बैंकिंग संकट ने बढ़ाई चिंता
स्टाफिंग फर्म एनएलबी सर्विसेज के सीईओ सचिन अलुग ने बताया कि महामारी के बाद के दौर में कंपनियों ने बाजार में नई मांगों को पूरा करने के लिए उत्पादन में बढ़ोतरी की। इससे आईटी कंपनियों की भर्तियों में तेजी देखी गई। हालांकि, यह उछाल जल्द ही वैश्विक आर्थिक संकट और बढ़ती मंदी के सामने फीका पड़ गया। अमेरिका के तीन बैंकों के दिवालिया होने और क्रेडिट सुइस संकट ने वैश्विक वित्तीय उद्योग को हिला कर रख दिया।
लागत घटाने का असर
आईटी क्षेत्र आमतौर पर देश में हर साल ग्रेजुएट होने वाले 15 लाख इंजीनियरों में से 20-25 फीसदी को नौकरी देता है। लेकिन, इस क्षेत्र के अनिश्चित भविष्य ने छात्रों के सामने संकट खड़ा कर दिया है। पंजाब से इंजीनियरिंग कर रहे छात्र गौतम ने बताया कि लागत घटाने के कारण कुछ कंपनियों ने कई छात्रों की इंटर्नशिप रद्द कर दी है।
जीडीपी के लिए महत्वपूर्ण है आईटी क्षेत्र
विप्रो के चेयरमैन रिशद प्रेमजी के मुताबिक, घरेलू जीडीपी में आईटी क्षेत्र का योगदान बढ़कर करीब 8 फीसदी पहुंच गया है। करीब 30 साल पहले यह एक फीसदी से भी कम था।
आईटी क्षेत्र से बाहर नौकरी खोजने में मुश्किल
भारतीय इंजीनियरों को आईटी क्षेत्र से बाहर नौकरी खोजने में मुश्किल हो सकती है क्योंकि फंडिंग की कमी से स्टार्टअप भी छंटनी कर रहे हैं। आईटी उद्योग के कुछ दिग्गजों ने कहा, भारतीय छात्रों को अन्य क्षेत्रों में नौकरी की तलाश करनी चाहिए।
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