आष्टा। धर्म आवरण की नही बल्कि आचरण की विषय वस्तु है । धर्म का प्रत्यक्ष सम्वन्ध प्राणी मात्र के कल्याण से जुड़ा हुआ है धर्म हमारी आत्मा के कल्याण का भी हेतुक है । निष्काम भक्ति में ही शक्ति होती है । यह संदेश पूज्य मुनि प्रशम सागर जी महाराज ने ग्राम किलेरामा में मंगल आशीर्वाद के रूप में दिया। साधु संतों को वर्षा ऋतु आगमन के पूर्व किसी एक स्थान पर पहुंच कर वर्षा वास् करना होता है यह अवधि चौमासा कहलाती है पहले सभी साधु संत इस धार्मिक नियम का पालन करते थे परंतु अब जैन साधु ही इस कठोर नियम का पालन कर पाते हैं।उस अवधि में जैन साधु संकल्पपूर्वक कठोर साधना करते हैं वहीं उनके सानिध्य में जैन श्रावक औऱ श्राविकाएं भी आत्म कल्याण के लिए व्रत उपवास एवम करते हुए धार्मिक गतिविधियों में सलग्न रहते हैं।
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